सोलन/अर्की: राजा राजेंद्र सिंह जी पँवार बाघल जितने अपनी प्रजा के प्यारे थे, आजादी के बाद केंद्र सरकार के भी वे उतने ही विश्वासपात्र थे। जब रियासतों का विलीनीकरण और प्रीवी पर्स खत्म हो जाने से अधिकांश राजा या तो शोक में डूबे थे या अकड़ से उबर नहीं पाए थे, तब अर्की राज्य के इस अंतिम राजा ने देश भक्ति का परिचय दिया। तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भी उन पर खूब भरोसा किया। 1962 में भारत पाक युद्ध के दौरान केंद्र सरकार ने उन्हें हिमाचल की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी थी। केंद्रीय गृह मंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निर्देश पर उन्होंने 6 दिसंबर 1962 को हिमाचल होमगार्ड की स्थापना की।
शास्त्री जी ने उन्हें हिमाचल होमगार्ड का कमांडेंट जनरल और सिविल डिफेंस का डायरेक्टर बनाया। उनका पद सेना के मेजर जनरल, पुलिस के आईजी के समकक्ष था। होमगार्ड के इस पद पर उन्होंने निशुल्क सेवा दी। वेतन के नाम पर वे मात्र एक रुपया लेते थे। उन्होंने 6 दिसंबर 1962 से 28 फरवरी 1986 तक इस पद पर कार्य किया। होमगार्ड को मजबूत करने के लिए उन्होंने न सिर्फ अपनी जेब से पूंजी लगाई वरन अपने महल के अस्त्र—शस्त्र भी दान कर दिए थे।
311 किलोमीटर में फैली थी रियासत
राजा राजेंद्र सिंह जी की बाघल रियासत 311 किलोमीटर क्षेत्र में फैली थी। अर्की के आसपास के करीब 457 गांव शामिल थे। इनकी राजधानी अर्की रही। 1901 में बाघल रियासत की जनसंख्या 25, 720 थी।
स्वेच्छा से छोड़ा राज
देश की स्वतंत्रता के बाद जब तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को रिसासतों के विलय के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ी, लेकिन राजेंद्र सिंह ने देश भक्ति दिखाते हुए स्वेच्छा से प्रजातंत्र में विश्वास करते हुए राजा का पद छोड़
तीन बार विधायक रहे
करीब एक दशक तक राजा राजेंद्र सिंह जी ने तत्कालीन सुन्नी विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1952 से 1962 तक तीन बार सुन्नी क्षेत्र से विधायक चुने गए। उस समय अर्की सुन्नी के तहत आता था।
वे थे बाघल के अंतिम राजा
राजेंद्र सिंह जी बाघल रियासत के अंतिम राजा थे। उनका जन्म 29 फरवरी, 1928 को हुआ था। उनके पिता का नाम राजा सुरेंद्र सिंह जी था। 21 दिसंबर, 1945 में 17 साल 10 माह की अल्पायु में उन्हें राजगद्दी प्राप्त हो गई थी। हालांकि 1946 में इनका राज्याभिषेक किया गया। इन्होंने करीब दो साल तक राज किया। उन्होंने लाहौर से बीए की डिग्री हासिल की थी।
राजा भोज की नगरी से यहां बसे थे पूर्वज
अर्की क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य से मोहित होकर ही बाघल रियासत के पूर्वज यहां बस गए थे। असल में वे राजा भोज की धारा (धार, मध्यप्रदेश) नगरी से आए थे। 1305 ई. में अलाऊद्दीन से उज्जैन के शासक के पराजित होने पर धारानगरी से पलायन कर हिमालय के इस क्षेत्र में सिरमौर से होते हुए पहुंचे। बंदोबस्त रिपोर्ट के अनुसार यह चार भाई धारानगरी से आए थे। इनमें अजय देव, विजय देव, मदन देव और चौथे भाई का नाम जगदेव (धारावाला देव) था।
यह भाई बद्रीनाथ और ज्वालाजी की यात्रा पर निकले थे लेकिन अर्की की रमणीयता में खोकर यहीं बस गए। सर्वप्रथम राणा अजय देव ने अर्की क्षेत्र से मावी लोगों को भज्जी की ओर धकेल दिया। दूसरे भाई बघाट और तीसरे भाई टिहेरी गढ़वाल के राजा बने। चौथे भाई समीपवर्ती राजा से युद्ध में मारे गये, जिसकी स्मृति में सेरीघाट (कुनिहार) में मंदिर बना है। इनको धारवाले देव कहा जाता है। राजा के पास धारा नगरी से आया नगाड़ा, खाण्डा, छड़ी और लक्ष्मी नारायण की मूर्ति है।