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लाइफ स्टाइल

खेती बाड़ी: लहसुन की खेती कैसे करे ? जानिए विस्तार से

March 28, 2020 05:49 PM

आम तौर पर लहसुन का इस्तेमाल खाने के स्वाद को बढ़ाने के लिए किया जाता है लेकिन बहुत कम लोगों को पता होता है कि लहसुन के कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं। लहसुन में एलिसिन नामक मुख्य कम्पाउंड होता है, जो कि एन्टीवैक्टीरियल, एंटीवायरल, एंटीफंगल और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है।साथ ही इसमें विटामिन और पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में होते हैं। विटामिन बी1, बी6, सी होने के साथ ही इसमें मैगनीज़, कैल्शियम, कॉपर, सेलेनियम और दूसरे प्रमुख लवण प्रचुर मात्रा में होते हैं।

लहसुन की खेती किसानों के लिए वरदान हो सकती है। क्योंकि कंदीय फसलों में आलू और प्याज के बाद लहसुन एक महत्वपूर्ण फसल हैं। यह नगदी फसल के रूप में हमारे देश में उगायी जाती है यदि कृषक लहसुन की जैविक विधी से खेती करें तो एक तो उनकी उत्पादन लागत कम होगी दूसरा स्वस्थ और उच्च गुणवता के फल प्राप्त होंगे । मानव स्वस्थ्य और पर्यावरण पर भी कोई दुष्परिणाम नही होगा।जबकि दूसरी ओर रसायनिक खेती से रसायनों और कीटनाशकों के प्रयोग से लहसुन के कंद विषैले हो जाते है। जिसके उपयोग से मानव शरीर में अनेक बीमारियां जन्म ले सकतीं हैं, और पर्यावरण को भी नुकसान होता है। इसलिए लहसुन की जैविक खेती आवश्यक है।किसान भाई थोड़ी सी जागरुकता के साथ लहसुन की जैविक खेती सफलतापूर्वक कर सकते हैं और अच्छी पैदावार भी प्राप्त कर सकते हैं।

जलवायु: लहसुन एक ऐसी फसल है, जिसके पौधे में पाला बर्दाश्त करने की क्षमता अधिक होती है। इसलिए इसकी वृद्धि के समय ठण्डा और नम मौसम तथा कंदों के परिपक्वता के समय अपेक्षाकृत शुष्क और गरम् जलवायु की आवश्यकता होती है। लहसुन की खेती मुख्यतः सर्दी के मौसम में ही की जाती है, क्योंकि अत्यन्त गर्म तथा लम्बे दिनों वाला समय इसके कंदों की बढ़वार के लिए उपयुक्त नहीं होता है। ऐसी जगह जहाँ न तो बहुत गर्मी हो और न ही बहुत ठण्ड हो, लहसुन की जैविक खेती के लिए उपयुक्त है।

उपयुक्त भूमि: लहसुन की जैविक खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में की जा सकती है। परन्तु जीवांशयुक्त दोमट मिटटी इसकी अच्छी पैदावार के लिये उपयुक्त है। यद्यपि इसकी खेती बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिटटी में भी की जा सकती है। भारी भूमि में कंद टेढ़े-मेढ़े तथा छोटे बनते हैं और खुदाई भी कठिन होती है। इसकी खेती हेतु मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक होने के साथ-साथ जल निकास की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए। मिट्टी का पी एच मान 6 से 7 होना चाहिए। बहुत क्षारीय भूमि लहसुन की जैविक खेती हेतु उपर्युक्त नहीं होती है। मिटटी सुधारक के प्रयोग के उपरान्त आंशिक रूप से सुधरी हुई भूमि में जीवांश की पर्याप्त मात्रा मिलाकर 8.5 पी एच तक लहसुन की जैविक खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।

किसान भाइयों को लहसुन की जैविक फसल से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए अपने क्षेत्र की प्रचलित और उत्तम पैदावार देने वाली के साथ विकार रोधी किस्म का चयन करना चाहिए और जहां तक संभव हो सके जैविक प्रमाणित बीज ही उपयोग में लायें। जिसकी जानकारी कृषि विभाग के स्थानीय अधिकारियों से प्राप्त की जा सकती है।

बुवाई की विधि:

(क) इस विधि में सिंचाई की सुविधानुसार खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बाँट लिया जाता है। इसके बाद जवे (फाक) का नुकीला भाग ऊपर रखते हुए 5 से 7 सेंटीमीटर की गहराई पर जवे की बुवाई कर दी जाती है।

(ख) इस विधि में हैंड हो की सहायता से वांछित दूरी पर कूड़े बना ली जाती हैं। इन कूड़ो में लहसुन के जवे को हाथ की सहायता से गिरा दिया जाता है। इसके बाद इनको भुरभुरी मिट्टी से ढक दिया जाता है।

बुवाई का समय: लहसुन की जैविक खेती से अच्छी पैदावार के लिये लहसुन की बुवाई का उपयुक्त समय अक्टूबर से नवम्बर तक है।

बुवाई की विधि: लहसुन के कंदों में कई कलिया (क्लोव्स) होती हैं।इन्हीं कलियों को गांठों से अलग करके बुवाई की जाती है।अधिक पैदावार और अच्छी गुणवत्ता के लिये लहसुन की बुवाई हेतु बड़े आकार के क्लोव्स (जवे) जिनका व्यास 8 से 10 मिलीमीटर हो, प्रयोग करना चाहिए। इसके लिये कंद के बाहरी तरफ वाली कलियों को चुनना चाहिए। कंद के केन्द्र में स्थित लंबी खोखली कलियाँ बुवाई के लिए ठीक नहीं होती हैं।क्योंकि इनसे अच्छे कंद प्राप्त नहीं होते। इस प्रकार एक हैक्टेयर क्षेत्र में 15 X 10 सेंटीमीटर रोपण दूरी रखने पर लहसुन की बुवाई हेतु 8 से 10 मिलीमीटर व्यास के लगभग 5 से 7 कुंटल (500 से 700 किलोग्राम) जवा की आवश्यकता पड़ती है।

सम्पूर्ण गुणवत्ता उत्पादन के लिए लहसुन की जैविक फसल को पर्याप्त धूप, हवा एवं कर्षण क्रियायें सुविधाजनक ढंग से संपन्न करने हेतु जवों (क्लोव) को उपयुक्त दूरी (पंक्ति से पंक्ति x पौधे से पौधे) प्रदान करते हुए बीज बुवाई की जानी चाहिए। लहसुन में रोपण की दूरी अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग होती है। कम दूरी पर रोपाई करने से लहसुन के रोगों में विशेषकर बैगनीं धब्बा रोग का प्रकोप अधिक होता है। लहसुन की जैविक खेती हेतु बुवाई उपरोक्त दूरी पर लगभग 5 से 6 सेंटीमीटर गहरी करते हैं। बुवाई करते समय यह ध्यान देना आवश्यक है, कि कलियों (क्लोव्स) का नुकीला भाग ऊपर ही रखा जाये। बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना अत्यंत आवश्यक है।

आवश्यक उर्वरक तथा खाद: लहसुन की रसायनिक खेती से अच्छी पैदावार के लिये 100 से 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा पोटाश 40 किलोग्राम की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता पड़ती है।

परन्तु लहसुन की जैविक खेती में उपरोक्त तत्वों की पूर्ति के लिए 125 से 175 कुंटल कम्पोस्ट खाद या 40 से 50 टन सडी गोबर की खाद के साथ 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जैव उर्वरक को अन्तिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए। इससे मुख्य पोषक तत्वों और सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति संभव है।

सिंचाई विधी: समान्य तौर पर लहसुन को वानस्पतिक वृद्धि के समय 7 से 8 दिन के अन्तर पर तथा परिपक्वता के समय 10 से 15 दिन के अन्तर पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के बाद की जाती हैं। अंकुरण के लिए उपयुक्त भूमि नमीं, फील्ड क्षमता की 80 से 100 प्रतिशत होती है। लहसुन के वृद्धि काल में भूमि में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए अन्यथा कंदों का विकास प्रभावित होता हैं। लहसुन उथली जड़ वाली फसल है।

जिसकी अधिकांश जड़ें भूमि के उपर 5 से 7 सेंटीमीटर के स्तर में रहती है। इसलिए प्रत्येक सिंचाई में मिटटी को इस स्तर तक नम कर देना चाहिए। उत्तर भारत में साधारणतया सर्दी के मौसम में 10 से 15 दिन के अन्तर पर सिंचाई करते हैं, परन्तु गर्मियों में सिंचाई प्रति सप्ताह करते हैं। जिस समय गांठें बन रहीं हों, सिंचाई जल्दी-जल्दी करते हैं। जब फसल परिपक्वता पर पहुँच जाये तो सिंचाई बंद कर खेत सूखने देना चाहिए।

निराई गुड़ाई:.लहसुन की फसल से अच्छी उपज और गुणवत्तायुक्त कंद प्राप्त करने के लिए समय समय पर निराई-गुड़ाई करके लहसुन की क्यारी को साफ रखना आवश्यक है। पहली निराई रोपण या बुआई के एक माह बाद एवं दूसरी निराई, पहली के एक माह बाद अर्थात बुआई के 60 दिन बाद करनी चाहिए। कंद बनने के तुरन्त पहले निराई-गुड़ाई करने से मिट्टी ढीली हो जाती है। जिससे बड़े आकार के तथा जवे से अच्छी तरह भरे कंदों को बनने में सुगमता होती है। लहसुन की जड़े अपेक्षाकृत कम गहराई तक जाती हैं। इसलिए गुड़ाई हमेशा उथली करके खरपतवार निकाल देते हैं।  बुआई के 45 दिन पश्चात् एक बार निराई-गुड़ाई कर देने से फसल अच्छी पनपती है।

लहसुन की खुदाई: खुदाई के बाद कंदों को 3 से 4 दिनों तक छाया में सुखा लेते हैं। फिर 2 से 2.5 सेंटीमीटर छोड़कर पत्तियों को कंदों से अलग कर कंदों को साधारण भण्डारण में पतली तह में रखते हैं। फर्श पर नमी नहीं होनी चाहिए, लघु कृषकों को सीमित क्षेत्र में लहसुन की खेती करने पर खुदाई के बाद सम्पूर्ण पौध के साथ ही छाया में बांस अथवा रस्सियों पर टांग कर भण्डारित करना चाहिए।

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