इज़राइली टेक्नोलॉजी से व्हाट्सऐप में सेंध लगाकर पत्रकारों, वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जासूसी के मामले में अनेक खुलासे हुए हैं। पर पूरा सच अभी तक सामने नहीं आया। इज़राइली कंपनी NSO के स्पष्टीकरण को सच माना जाए तो सरकार या सरकारी एजेंसियां ही पेगासस सॉफ़्टवेयर के माध्यम से जासूसी कर सकती हैं। ख़ुद अपना पक्ष रखने के बजाय, सरकार ने व्हाट्सऐप को 4 दिनों के भीतर जवाब देने को कहा है।
कागज़ों से ज़ाहिर है कि व्हाट्सऐप में सेंधमारी का यह खेल कई सालों से चल रहा है। तो अब कैलिफ़ोर्निया की अदालत में व्हाट्सऐप द्वारा मुकदमा दायर करने के पीछे क्या कोई बड़ी रणनीति है ?
व्हाट्सऐप ने अमरीका के कैलिफ़ोर्निया में इजरायली कंपनी एनएसओ और उसकी सहयोगी कंपनी Q साइबर टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर किया है। दिलचस्प बात यह है कि व्हाट्सऐप के साथ फ़ेसबुक भी इस मुकदमे में पक्षकार है। फ़ेसबुक के पास व्हाट्सऐप का स्वामित्व है लेकिन इस मुक़दमे में फ़ेसबुक को व्हाट्सऐप का सर्विस प्रोवाइडर बताया गया है जो व्हाट्सऐप को इंफ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
पिछले साल ही फ़ेसबुक ने यह स्वीकारा था कि उनके ग्रुप द्वारा व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम के डाटा को इन्टेग्रेट करके उसका व्यवसायिक इस्तेमाल किया जा रहा है। फ़ेसबुक ने यह भी स्वीकार किया था कि उसके प्लेटफ़ॉर्म में अनेक ऐप के माध्यम से डाटा माइनिंग और डाटा का कारोबार होता है.
कैंब्रिज एनालिटिका ऐसी ही एक कंपनी थी जिसके माध्यम से भारत समेत अनेक देशों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की गई। व्हाट्सऐप अपने सिस्टम में की गई कॉल, वीडियो कॉल, चैट, ग्रुप चैट, इमेज, वीडियो, वॉइस मैसेज और फ़ाइल ट्रांसफ़र को इंक्रिप्टेड बताते हुए, अपने प्लेटफ़ॉर्म को हमेशा से सुरक्षित बताता रहा है।
कैलिफ़ोर्निया की अदालत में दायर मुक़दमे के अनुसार इज़रायली कंपनी ने मोबाइल फ़ोन के माध्यम से व्हाट्सऐप के सिस्टम को भी हैक कर लिया। इस सॉफ़्टवेयर के इस्तेमाल में एक मिस्ड कॉल के ज़रिए स्मार्ट फ़ोन के भीतर वायरस प्रवेश करके सारी जानकारी जमा कर लेता है। फ़ोन के कैमरे से पता चलने लगता है कि व्यक्ति कहां जा रहा है, किससे मिल रहा है और क्या बात कर रहा है?
गौरतलब है कि सोशल मीडिया कंपनियों के असंतोष को भाजपा और आप जैसी पार्टियों ने राजनीतिक लाभ में तब्दील किया। मोदी सरकार ने डिजिटल इंडिया के नाम पर इंटरनेट कंपनियों को .. विस्तार की अनुमति दी, पर उनके नियमन के लिए कोई प्रयास नहीं किये। राष्ट्रीय सुरक्षा पर लगातार बढ़ते ख़तरे और न्यायिक हस्तक्षेप के बाद पिछले वर्ष दिसंबर 2018 में इंटरमीडिटीयरी कंपनियों की जवाबदेही बढ़ाने के लिए ड्राफ़्ट नियम का मसौदा जारी किया गया।
इन नियमों को लागू करने के बाद व्हाट्सऐप जैसी कंपनियों को भारत में अपना कार्यालय स्थापित करने के साथ नोडल अधिकारी भी नियुक्त करना होगा। इसकी वजह से इन कंपनियों को भारत में कानूनी तौर पर जवाबदेह होने के साथ बड़ी मात्रा में टैक्स भुगतान भी करना होगा।
राष्ट्रहित और जनता की प्राइवेसी के रक्षा का दावा कर रही सरकार भी इन कंपनियों के साथ मिलीभगत में है जिसकी वजह से इन नियमों को अभी तक लागू नहीं किया गया। पिछले महीने सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा देकर कहा कि अगले 3 महीनों में इन नियमों को लागू करके सोशल मीडिया कंपनियों की जवाबदेही तय कर दी जायेगी। अमरीका में मुक़दमा दायर करके और सेंधमारी के भय को दिखाकर, व्हाट्सऐप कंपनी कहीं, भारत में सरकारी नियमन को रोकने का प्रयास तो नहीं कर रहीं ?