हिंदी ENGLISH E-Paper Download App Contact us Saturday | September 13, 2025

Himachal

सरकार का वित्तीय तमाशा: कर्ज़ की गठरी, वादों की फुलझड़ी और जनता की मुसीबत, पढ़े विस्तार से ..

May 30, 2025 09:58 AM

 

🖊️ लेखक: ओम प्रकाश ठाकुर 📅 प्रकाशन तिथि: 30 मई 2025 📍 हिमाचल प्रदेश


जब एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार 30, 000 करोड़ रुपये का कर्ज लेकर जनता की भलाई के बजाय खुद का वेतन बढ़ाने और चहेतों को लाभ पहुंचाने में व्यस्त हो जाए, तो यह सवाल उठाना लाज़मी हो जाता है — क्या यह जनसेवा है या सत्ता का उत्सव?

वादों की सरकार, हकीकत से इनकार

चुनावों से पहले बड़े-बड़े वादे:

  • हर महिला को ₹1500 प्रतिमाह
  • सभी सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना (OPS)
  • महंगाई राहत, स्वास्थ्य सुरक्षा और जनकल्याण

लेकिन सत्ता में आने के बाद:

  • डीए नहीं मिला,
  • OPS अभी भी अधर में,
  • महिलाओं के ₹1500 सिर्फ पोस्टरों में,
  • और हिम केयर जैसी स्वास्थ्य योजना को बंद करने की तैयारी!

क्या सत्ता में आने के बाद वादे निभाने की कोई नैतिक या संवैधानिक ज़िम्मेदारी नहीं रह जाती?

'हिम केयर' की बलि — स्वास्थ्य पर राजनीतिक मुनाफा

हिमाचल की ‘हिम केयर’ योजना ने हजारों ज़रूरतमंदों को इलाज की सुविधा दी। लेकिन अब इस जनकल्याणकारी योजना पर कैंची चलाई जा रही है। क्या इसलिए कि यह किसी पूर्व सरकार की पहल थी?

अगर राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का असर जनता की सेहत पर पड़े, तो यह न सिर्फ शर्मनाक है, बल्कि घातक भी।

कर्मचारियों को 'न' और खुद को 'हाँ'

जब राज्य के कर्मचारी महंगाई से जूझ रहे हैं, उन्हें डीए तक नहीं दिया जा रहा, वहीं नेता अपने वेतन और सुविधाएं बढ़ा रहे हैं। कुछ आंकड़े देखें:

  • विधायकों का वेतन वृद्धि ✅
  • मंत्रियों की गाड़ियों का अपग्रेड ✅
  • अफसरों के लिए एसी दफ्तर ✅
  • आम कर्मचारी के डीए पर चुप्पी ❌
  • OPS पर ठोस कार्यवाही ❌

क्या लोकतंत्र का मतलब सिर्फ चुनाव जीतना है? या फिर जनहित भी इसका अनिवार्य अंग है?

जनता पूछ रही है...

  1. चुनाव पूर्व किए वादों पर अमल कब?
  2. OPS का वादा सिर्फ वोट बैंक के लिए था?
  3. हिम केयर जैसी योजनाओं को क्यों बंद किया जा रहा है?
  4. क्या राज्य की वित्तीय दुर्दशा की सज़ा जनता को दी जा रही है?

निष्कर्ष: कर्ज़ की राजनीति, भरोसे की मौत

आज प्रदेश की आर्थिक स्थिति बेहद गंभीर है, लेकिन सरकार की प्राथमिकता अब भी जनता नहीं, सत्ता और सजावट है। जनता को स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार चाहिए — वादों की रील नहीं।

सरकार को चाहिए कि वह अपने गिरेबान में झाँके और याद करे कि लोकतंत्र में असली मालिक जनता होती है, राजा नहीं।


📌 अगर आपको यह लेख पसंद आया तो शेयर करें, ताकि सरकार को नींद से जगाया जा सके। 📧 आप अपनी राय नीचे कमेंट कर सकते हैं या हमें editor@himdarshan.com पर मेल भेज सकते हैं।


 

Have something to say? Post your comment

Spirituality

Religion

Religious Places

Yog