ऐतिहासिक व धार्मिक धरोहर सूरजकुण्ड का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर, प्रशासन व क्षेत्रवासियों की अनदेखी का शिकार सुंदरनगर का सूरजकुंड मंदिर, बदहाली के आंसू रो रहा सुकेत रियासत का सूर्य देव मंदिर परिसर
सुंदरनगर: (हिमदर्शन समाचार); 1721 ईसवी से शुरू हुए रियासत काल के महाराजा गुरुड़ सेन की रानी पन्छमु देई द्वारा राजमहल के समीप सूरजकुंड मंदिर की स्थापना की गई। भेछनी धार की तलहटी में बनोण नाले के समीप तकरीबन 400 वर्ष पूर्व स्थापित यह ऐतिहासिक व धार्मिक धरोहर आज नगरपरिषद सुंदरनगर के बनेड वार्ड में प्रशासन की लालफीताशाही और क्षेत्रवासियों की अनदेखी का शिकार हो अपना अस्तित्व खो रही है। सूर्य देव मंदिर का परिसर आज बदहाली के आंसू रो रहा है लेकिन ना तो पुरातत्व विभाग ना सरकार इसकी सुध लेने को तैयार है।
हैरानी की बात यह भी है कि जहा यह मंदिर स्थापित है वहा के तीन किलोमीटर के दायरे में सैकड़ों उच्च पदों से सेवानिवृत, राजकीय सेवाओं में कार्यरत अधिकारियो, राजनेताओं, अधिवक्ताओं व बुद्धिजीवी वर्ग की रिहायशे है लेकिन बहुत ही हैरानी की बात है कि सुंदरनगर की प्रबुद्ध जनता भी इस धरोहर के खत्म हो रहे वजूद पर मुक दर्शक बनी हुई है।
दुखद पहलू यह भी है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व निर्मित आस्था का मंदिर प्रतिदिन अतिक्रमण का शिकार हो रहा है कुछेक मामलों में चंद लोग मंदिर के हक की लड़ाई पिछले तीन दशकों से न्यायलय में लड़ रहे है। लेकिन इस दौरान लालफीताशाही व भ्रष्ट तन्त्र के चलते अनेक बार मंदिर प्रेमियों को विफलता भी देखनी पड़ी है।
प्रशासन पर है सूर्य मंदिर का दायित्व
सूर्य मंदिर की देखरेख का दायित्व स्थानीय प्रशासन पर है। सुविधा तो दूर मंदिर में स्थाई पुजारी तक की व्यवस्था नहीं है। मंदिर के मुख्यद्वार पर अक्सर ताला लटका रहता है। मंदिर परिसर के अंदर विभिन्न दिशाओं में स्तिथ भवनों की हालात खस्ता हाल हो चुकी है। जर्जर हो चुके भवन की पिछली दिवारे गिर चुकी है। भवन कभी भी धराशाही हो सकता है। खस्ता हाल स्तिथि श्रद्धालुओं की श्रद्धा को ठेस पहुंचा रही है। राजस्व विभाग के रिकार्ड में मंदिर के नाम करीब पौने आठ बीघा भूमि है लेकिन अतिक्रमण से भूमि सिंकुड़कर करीब पांच बीघा रह गई है। जीर्णोद्धार तो दूर प्रशासन मंदिर को रंग-रोगन करवाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाता है। संरक्षण के अभाव में मंदिर इतिहास के पन्नों में सिमटने के कगार पर पहुंच गया है।
सुकेत की रानी से जुड़ा है सुरजकुंड मंदिर का इतिहास
मंडी जिला के सुंदरंनगर में स्तिथ सूरजकुंड मंदिर का इतिहास सुकेत रियासत से जुड़ा हुआ है। जानकारी अनुसार जीत सेन की मृत्यु के बाद गुरुड़ सेन को नरसिंह मंदिर में राजगद्दी पर बिठाया गया।उसके उपरांत जब गुरुड सेन कुल्लू से कांगड़ा होकर सुकेत लौट रहे थे तो उन्होंने हीमली के राणा की पुत्री से विवाह किया।इसी समय वो करतारपुर से अपनी राजधानी को वनेड ले आए। राजमहल के समीप भेछनी धार की तलहटी में बनोण नाले के समीप महाराजा गुरुरसेन की रानी पन्छमु देई ने सूरजकुंड मंदिर का निर्माण किया।
पंछमु देई सूर्य नारायण भगवान की थी बड़ी उपासक, पास था दैवीय शक्तियों का भंडार..
बताया जाता जाता है कि पंछमु देई सेन वंश की सबसे धार्मिक और विद्वान स्त्री थी। उन्होंने यहा पर अष्टधातु की सूर्य की मूर्ति की स्थापना प्राकृतिक जल स्त्रोत से ऊपर की और मंदिर का निर्माण करवाया और सामने जलकुंड का सम्पूर्ण निर्माण करवाया। मूर्ति के नीचे से जल धारा प्रवाहित होकर उस जलकुंड में गिरती थी।यह भी कहा जाता है कि पंछमु देई सूर्य नारायण भगवान की बड़ी उपासक थी। रानी नित्य प्रति दिन सूर्य की पूजा के लिए सूरजकुण्ड मन्दिर में जाया करती थी। सूर्य नारायण भगवान के बर्तन, सूर्य यन्त्र से वे बच्चों का झाड़ा नेत्र रोग व निसन्तान पति पत्नी को सन्तान प्राप्ति के लिए जल अभिमन्त्रित करके देती थी।
कहा जाता है कि सूर्य स्नान के अभिमंत्रित जल का अभिषेक करने से चर्म रोग दूर होते थे। सूर्य की उपासना से उनके पास दैवीय शक्तियों का भंडार था। गरुर सेन के कार्यकाल में आए उतार-चढ़ावों पर पंछमू देई नियंत्रण करती रही।कहा जाता है कि मंदिर में मौजूद चमत्कारी बर्तन में सूर्य नारायण भगवान की यंत्र पूजा के साथ अष्टधातु की मूर्ति को स्नान करवाया जाता था। सूर्य नारायण भगवान स्नान के समय इस बर्तन से किरणें निकलती थी। स्नान के बाद बचे हुए जल को अभिमंत्रित कर रोगियों को दिया जाता था।इस जल को ग्रहण करने के बाद नेत्र रोग, चर्म रोग और बच्चों को बीमारियों से मुक्ति मिलती थी।
हिमाचल में दो मंदिरों से एक है सुंदरंनगर का सूरजकुंड मंदिर देश भर में स्थित प्राचीन चंद सुरजकुंडो में व प्रदेश में स्थित मात्र दो में से एक है सुंदरनगर का सूरजकुंड मंदिर । वही दूसरा शिमला जिला के अंतर्गत 120 किलोमीटर दूर नीरथ गांव में है जो कि रामपुर तहसील के अंतर्गत आता है।इसका निर्माण महाभारत युद्ध उपरांत का हुआ बताया जाता है। जो कि सतलुज के किनारे पर है ।
बीएसएल परियोजना निर्माण से सूखा कुंड का जल, बीबीएमबी ने नही की फूटी कोड़ी की मदद
स्थानीय पुजारी परिवार के लक्ष्मीदत का कहना है कि पिछले कई दशकों से उनके पूर्वज मंदिर की देख रेख कर रहे है। 1970 के दशक में जब ब्यास सतलुज लिंक परियोजना निर्माण हुआ तो सूरजकुंड का पानी सुख गया। लेकिन बार बार मांग व बीबीएमबी की सहमति के बावजूद ना तो पानी की ही बहाली की गई ना ही मंदिर के जीर्णोद्धार में कोई मदद की गई।
रोटरी क्लब सूरजकुंड के जीर्णोद्धार के लिए वचनवद्ध है। इसके लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे।इसी कड़ी में सुरजकुंड के बाहर की जमीन की सफाई के साथ जेसीबी से समतल भी करवाया गया है।
- राम पाल गुप्ता , अध्यक्ष रोटरी क्लब सुंदरनगर
हमारी मुख्यमंत्री जयराम, उपायुक्त मंडी और पुरातत्व विभाग से मांग है कि मंदिर के पुननिर्माण के लिए फंड का प्रावधान कर निर्माण करवाया जाए और अवैध कब्जे से मंदिर सपति को मुक्त करवाया जाए।
-लक्ष्मीधर, पुजारी सूरजकुंड मंदिर सुंदरनगर