शिमला: आप सोच रहे होंगे मनुष्य के तीन शरीर कैसे हो सकते है लेकिन यही सच है की मनुष्य के तीन शरीर होते है। शुक्ष्म अन्वेषणों से ज्ञात होता हैं की मनुष्यों की सत्ता केवल वही नहीं जो सामने है बल्कि इससे भी परे मनुष्य का अस्तित्व है।
अध्यात्म विज्ञानं के गहन अध्यन से पता चलता है की मनुष्य के तीन शरीर है। एक स्थूल शरीर, दूसरा शूक्ष्म शरीर, जिसमे हमारा मन, बुद्धि आती है। इसका सामर्थ्य भौतिक सरीर से सेंकडो गुना कहीं अधिक है। मनोबल, साहस, आत्मविश्वाश आदि अति सूक्ष्म शरीर की शक्ति है और अंत में तीसरा शरीर है यानि इसमे भाव , संवेदना व करुणा आती है यही इसका सामर्थ्य है जो स्थूल व सूक्ष्म से हजारो गुना सामर्थवान है।
आज की भौतिकवादी जीवनशैली के कारण हम सिर्फ भौतिक शरीर तक ही सिमित रह गए हैं। बस उसी को सवारने के लिए हम हजारो रुपये के कॉस्मेटिक, तेल, पर्फूयम् उड़ा लेते हैं, इससे पर हमारी सोच ही नहीं जाती है कि इससे परे भी तो हमारा अस्तित्व है। शुक्ष्म और कारण शरीर की सेहत का तो हमें ख्याल ही नहीं आता फलस्वरूप मन खिन्न, उदिग्न रहता है। हमारे विचारो में सकारात्मकता नहीं होती है और भावनाएं , विचारधाराएँ गड़बड़ाने के परिणामसवरूप हमारे समाज की सवेदनाए सूख गयी है।
आज दुसरो के प्रति प्रेम, दयाभाव, भातृत्व प्रेम , सेवा, सहायता व निष्काम परोपकार की भावनाएं एकमात्र भी किसी में देखने को नहीं मिलती। आज जरूरत है तो आध्यात्मिक जीवन दृश्टिकोण की , जिसमे भौतिकता के साथ आध्यात्मिकता का समावेश भी हो।
आज जब हम घंटो टीवी पर न्यूज व सीरियल देखने पर जाया कर सकते है तो 10 मिनट हम आँखे बंद करके ध्यान नहीं कर सकते या पांच मिनट हम किसी प्रेरणाप्रद पुस्तक का स्वाध्याय नहीं कर सकते। समग्र जीवन की यही अनिवार्य आवश्यकता है। अतः हमें दैनिक जीवन में ध्यान स्वाध्याय आदि को स्थान देना चाहिए।