गुरुवार का पंचाग : 26 सितंबर 2024
हिन्दू पंचांग पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-
1) तिथि (Tithi), 2) वार (Day), 3) नक्षत्र (Nakshatra), 4) योग (Yog), 5) करण (Karan)
पंचांग का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचांग का श्रवण करते थे ।
* शास्त्रों के अनुसार तिथि के पठन और श्रवण से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है ।
* वार के पठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है।
* नक्षत्र के पठन और श्रवण से पापो का नाश होता है।
* योग के पठन और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है। उनसे वियोग नहीं होता है ।
* करण के पठन श्रवण से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है ।
इसलिए हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए नित्य पंचांग को देखना, पढ़ना चाहिए ।
जानिए आज गुरुवार का पंचांग
मंगल श्री विष्णु मंत्र :-
मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥
दिन (वार) – गुरुवार के दिन तेल का मर्दन करने से धनहानि होती है । (मुहूर्तगणपति)
गुरुवार के दिन धोबी को वस्त्र धुलने या प्रेस करने नहीं देना चाहिए ।
गुरुवार को ना तो सर धोना चाहिए, ना शरीर में साबुन लगा कर नहाना चाहिए और ना ही कपडे धोने चाहिए ऐसा करने से घर से लक्ष्मी रुष्ट होकर चली जाती है ।गुरुवार को पीतल के बर्तन में चने की दाल, हल्दी, गुड़ डालकर केले के पेड़ पर चढ़ाकर दीपक अथवा धूप जलाएं । इससे बृहस्पति देव प्रसन्न होते है, दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है ।
गुरुवार को चने की दाल भिगोकर उसके एक हिस्से को आटे की लोई में हल्दी के साथ रखकर गाय को खिलाएं, दूसरे हिस्से में शहद डालकर उसका सेवन करें। इस उपाय को करने से कार्यो में अड़चने दूर होती है, भाग्य चमकने लगता है, बृहस्पति देव की कृपा मिलती है। यदि गुरुवार को स्त्रियां हल्दी वाला उबटन शरीर में लगाएं तो उनके दांपत्य जीवन में प्यार बढ़ता है। और कुंवारी लड़कियां / लड़के यह करें तो उन्हें योग्य, मनचाहा जीवन साथी मिलता है।
*विक्रम संवत् 2081, * शक संवत – 1945, *कलि संवत 5124, * अयन – दक्षिणायन, * ऋतु – वर्षा ऋतु, * मास – अश्विन माह* पक्ष – कृष्ण पक्ष*चंद्र बल – मिथुन, कर्क, तुला, धनु, कुम्भ, मीन,
गुरुवार को बृहस्पति देव की होरा :-
प्रात: 6.11 AM से 7.11 AM तक
दोपहर 01.12 PM से 2.12 PM तक
रात्रि 20.12 PM से 9.12 PM तक
आज गुरुवार के दिन बृहस्पति की होरा के समय दाहिने हाथ की तर्जनी ऊंगली ( अंगूठे के बगल वाली उंगली ) के नीचे गुरु पर्वत और उस पूरी ऊंगली पर बृहस्पति देव के मंत्र का जाप करते हुए अधिक से अधिक रगड़ते / मसाज करते रहे ( कम से कम 10 मिनट अवश्य ) I
गुरुवार को बृहस्पति की होरा में अधिक से अधिक बृहस्पति देव के मंत्रो का जाप करें । शिक्षा, मान – सम्मान, व्यापार, कारोबार, नए कार्यो के प्रारम्भ के लिए गुरुवार की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।
गुरुवार के दिन बृहस्पति की होरा में बृहस्पति देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।
बृहस्पति देव के मन्त्र
ॐ बृं बृहस्पतये नमः।। अथवा
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः।।
तिथि (Tithi) :- नवमी 12.25 PM तक तत्पश्चात दशमीतिथि का स्वामी – नवमी तिथि की स्वमिनी माँ दुर्गा जी और दशमी तिथि के स्वामी यमराज जी है ।नवमी तिथि की स्वामी देवी दुर्गा जी हैं ऎसे में जातक को दुर्गा जी की उपासना अवश्य करनी चाहिए।
जीवन में यदि कोई संकट है अथवा किसी प्रकार की अड़चनें आने से काम नही हो पा रहा है तो जातक को चाहिए की दुर्गा सप्तशती के पाठ को करे और मां दुर्गा जी को लाल पुष्प अर्पित करके अपने जीवन में आने वाले संकटों को दूर करने की प्रार्थना करे।
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
नवमी तिथि में माँ दुर्गा के 9 स्वरूपों स्मरण, उनके नमो के उच्चारण से जीवन में शुभ समय आता है ।
जय माँ शैलपुत्री 2. जय माँ ब्रह्मचारिणी 3. जय माँ चंद्रघंटा 4. जय माँ कुष्मांडा 5. जय माँ स्कंदमाता 6. जय माँ कात्यायनी 7. जय माँ कालरात्रि 8. जय माँ महागौरी 9. जय माँ सिद्धिदात्री ।
शुक्ल पक्ष की नवमी में भगवान शिव का पूजन करना वर्जित है लेकिन कृष्ण पक्ष की नवमी में शिव का पूजन करना उत्तम माना गया है।
नवमी तिथि में माँ सिद्धिदात्री की उपासना परम फलदाई मानी जाती है।
हिंदू पंचाग की नौवीं तिथि नवमी (navami) कहलाती है। इस तिथि का नाम उग्रा भी है क्योंकि इस तिथि में शुभ कार्य करना वर्जित होता है।
लेकिन जब नवमी तिथि शनिवार के दिन आती है, तो सिद्धिदा योग बनता है, अर्थात इस तिथि में किए गए सभी कार्यो में कार्यसिद्धि की प्राप्ति होती है
किसी भी प्रकार के युद्ध में विजय पाने के लिए ये तिथि अनुकूल मानी गई है।
शास्त्रों के अनुसार किसी भी पक्ष की नवमी तिथि में लौकी और कद्दू नहीं खाना चाहिए।
नक्षत्र (Nakshatra) – पुनर्वसु 23.34 PM तक तत्पश्चात पुष्यनक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी – पुनर्वसु नक्षत्र के देवता अदिति (पृथ्वी देवी), बृहस्पति, एवं नक्षत्र के स्वामी गुरु बृहस्पति जी है । पुनर्वसु अर्थ पुन: शुभ या पुन: बसना होता है। पुनर्वसु नक्षत्र आकाश मंडल में 7वां नक्षत्र है ।
ज्योतिषशास्त्र में पुनर्वसु नक्षत्र को सबसे बड़ा और बहुत ही शुभ माना जाता है । यह मर्यादा पुरषोतम भगवान श्री राम जी का जन्म नक्षत्र है। मान्यता है कि पुनर्वसु जातक के यहा केवल पुत्र ही होता है।
माना जाता है कि जिसका जन्म इस नक्षत्र में होता है, वे दूसरों की सेवा करने, भलाई करने के लिए सदैव तैयार रहते हैं । पुनर्वसु प्रत्येक कार्य के शुभारम्भ के लिए, नयी शुरुआत के लिए श्रेष्ठ होता है।
पुनर्वसु नक्षत्र का आराध्य वृक्ष: बांस / बांबू और नक्षत्र का स्वभाव चर माना गया है ।
इस नक्षत्र में जन्मे जातक व्यव्हार कुशल, शांत, परोपकारी, धार्मिक, सुखी, दानी, न्यायप्रिय, लोकप्रिय, पुत्रवान होते हैं।
लेकिन यदि गुरु, बुध और चन्द्रमा शुभ ना जो तो ऐसा जातक कामुक, दब्बू, , बुद्धिहीन, कंजूस और थोड़े में ही संतुष्ट रहने वाला होता है।
इस नक्षत्र की स्त्रियां शांत लेकिन अकस्मात उग्र होने वाली, विलासी जीवन जीने वाली, कामुक, सौन्दर्यप्रेमी और आशावादी मानी जाती है ।
पुनर्वसु नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 3, भाग्यशाली रंग, सुनहरा, भाग्यशाली दिन गुरुवार का माना जाता है ।
पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ आदित्याय नम:”। मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।
योग :- परिध 23.41 PM तक तत्पश्चात शिव
योग के स्वामी, स्वभाव :- परिध योग की स्वामी विश्वकर्मा जी एवं स्वभाव हानिकारक माना जाता है ।
प्रथम करण :- गर 12.25 PM तक
करण के स्वामी, स्वभाव :- गर करण के स्वामी भूमि तथा स्वभाव सौम्य है ।
द्वितीय करण :- वणिज 12.47 AM, 27 सितम्बर तक
करण के स्वामी, स्वभाव :- वणिज करण की स्वामी लक्ष्मी देवी और स्वभाव सौम्य है ।
दिशाशूल (Dishashool)– बृहस्पतिवार को दक्षिण दिशा एवं अग्निकोण का दिकशूल होता है । यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से सरसो के दाने या जीरा खाकर जाएँ ।
सूर्योदय – प्रातः 06:12
सूर्यास्त – सायं 18:13
विशेष – शास्त्रों के अनुसार किसी भी पक्ष की नवमी तिथि में लौकी और कद्दू का सेवन नहीं करना चाहिए ।
आज का शुभ मुहूर्त 26 सितंबर 2024 :
ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 36 मिनट से 5 बजकर 24 मिनट तक। विजय मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 13 मिनट से 3 बजकर 1 मिनट तक रहेगा। निशिथ काल मध्यरात्रि रात में 11 बजकर 49 मिनट से से 12 बजकर 37 मिनट तक। गोधूलि बेला शाम 6 बजकर 14 मिनट से 6 बजकर 38 मिनट तक। अमृत काल सुबह 6 बजकर 11 मिनट से 7 बजकर 41 मिनट तक।
आज का अशुभ मुहूर्त 26 सितंबर 2024 :
राहुकाल दोपहर में 1 बजकर 30 मिनट से 3 बजे तक। वहीं, सुबह में 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक गुलिक काल रहेगा। सुबह में 6 बजे से 7 बजकर 30 मिनट तक यमगंड रहेगा। दुर्मुहूर्त काल सुबह 10 बजकर 12 मिनट से 11 बजे तक।
आज का उपाय : आज विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी ), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस गुरुवार का पंचाग, Guruwar Ka Panchag, सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।