हिमाचल हाईकोर्ट ने कहा कि सूचना और शिकायत मिलने के बाद 48 घंटों के भीतर एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है, बावजूद इसके संवेदनशील मामलों में शिकायत मिलने के बाद भी पुलिस केस दर्ज नहीं कर रही। पढ़ें पूरी खबर..
शिमला: (HD News); हिमाचल हाईकोर्ट ने सूचना या शिकायत मिलने के बाद एफआईआर दर्ज करने में देरी किए जाने पर दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने तीन अलग-अलग मामलों में सुनवाई करते हुए ये आदेश पारित किए। खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट की एक जजमेंट का हवाला देते हुए कहा कि सूचना और शिकायत मिलने के बाद 48 घंटों के भीतर एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है, बावजूद इसके संवेदनशील मामलों में शिकायत मिलने के बाद भी पुलिस केस दर्ज नहीं कर रही।
खंडपीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत की संवैधानिक पीठ के निर्देशों के बाद भी पुलिस थानों में आदेशों की धज्जियां उड़ रही हैं और लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में साफ कहा है कि यदि सूचना मिलने से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है तो एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य होगा और ऐसी परिस्थिति में कोई प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है। पुलिस को अगर जानकारी पुख्ता नहीं लगती तो ऐसे मामलों में शिकायतकर्ता को एक सप्ताह के भीतर मामले को बंद करने के बारे में जानकारी देनी होगी।
इन मामलों में पुलिस ने देरी से की एफआईआर
केस एक :मंडी के बल्ह में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। मरने वाले के पिता ने पुलिस थाने में शिकायत दी कि कोई फिरौती की मांग कर रहा है। पुलिस ने युवक की मौत के 8 दिन बाद एफआईआर दर्ज की। हाईकोर्ट ने मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं।
केस दो : बद्दी में उद्योगों से निकलने वाली काली राख नदी में फेंकने से पानी के स्रोत दूषित हो रहे हैं। इसकी शिकायत पुलिस से की गई तो तुरंत कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई। एफआईआर दर्ज न करने पर अदालत ने इस मामले में सरकार से हलफनामा मांगा है।
केस तीन : कुल्लू में घूमने आए हरियाणा के वैभव यादव की मौत मामले में पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की। वैभव के पिता के पत्र के बाद डीजीपी ने एसपी कुल्लू को जांच करने को कहा था। इसके बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई।