"भूकंप" नहीं, "बादल फटा था" जब सांसद को अपने ही क्षेत्र की त्रासदी की जानकारी नहीं, तो जनता किससे उम्मीद करे ? मंडी की तबाही में जब उम्मीद थी कि सांसद कंगना रनौत दिल्ली में त्रासदी की आवाज़ बनेंगी, तब उनके एक बयान ने पूरे भरोसे को झकझोर दिया। “भारी-भरकम भूकंप आया था मंडी में, ” यह कहना सिर्फ तथ्यात्मक भूल नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदार पद पर बैठे नेता की संवेदनहीनता और अपरिपक्वता का प्रतीक है। यह खबर केवल एक बयान पर नहीं, जनप्रतिनिधित्व के पूरे ताने-बाने पर सवाल उठाती है। पढ़ें विस्तार से..
शिमला: (HD News); मंडी की सांसद कंगना रनौत एक बार फिर अपने गैर-जिम्मेदार और तथ्यहीन बयान को लेकर विवादों में हैं। जब पूरा जिला बाढ़ और भूस्खलन की भीषण त्रासदी से जूझ रहा है, लोग अपने घर-परिवार गंवाकर खुले आसमान तले बेघर हो गए हैं उसी वक्त सांसद कंगना दिल्ली में मीडिया को यह बताती नज़र आईं कि "मंडी में भारी भूकंप आया है।" यह बयान न सिर्फ उनके ज्ञानहीनता का प्रमाण है, बल्कि पीड़ित जनता की भावनाओं के साथ क्रूर मज़ाक भी है।
दिल्ली में एक एजेंसी को इंटरव्यू देते हुए कंगना का यह बयान अब सोशल मीडिया पर वायरल है और हर ओर गुस्सा और हैरानी फैल चुकी है - आखिर अपने ही क्षेत्र की आपदा की सही जानकारी तक नहीं, तो राहत और पुनर्वास के नाम पर संसद में क्या प्रतिनिधित्व करेंगी ?
यह न केवल तथ्यात्मक गलती है, बल्कि त्रासदी की गंभीरता के प्रति उनकी संवेदनहीनता और गैर-जवाबदेही का आईना भी है। एक सांसद को अपने क्षेत्र की आपदा का सही कारण तक न पता होना, क्या यह लोकतंत्र के लिए शर्मनाक नहीं ?

जहां एक ओर मंडी की जनता को विश्वास था कि उनकी सांसद इस त्रासदी को केंद्र सरकार के समक्ष मजबूती से रखेंगी, वहीं कंगना का यह ग़ैर-जिम्मेदाराना बयान लोगों के घावों पर नमक छिड़कने जैसा साबित हुआ। जनता को भरोसा था कि वह दिल्ली में उनके दर्द की आवाज़ बनेगी, पर अब सवाल उठ रहा है जिसे अपने ही क्षेत्र की त्रासदी की सही जानकारी नहीं, वो पीड़ितों के लिए क्या राहत दिला पाएगी?
क्या चेहरा ही सांसद बनने की योग्यता है ?
अब समय आ गया है कि यह सवाल ज़ोर से पूछा जाए - क्या संसद में भेजने के लिए अभिनय और प्रसिद्धि ही काफी हैं ? जब एक सांसद को यह भी पता नहीं कि उनके क्षेत्र में भूकंप नहीं, बादल फटा था, तो क्या वे वाकई जनता की नुमाइंदगी कर सकते हैं ? फिल्मी ग्लैमर क्या ज़मीनी हकीकतों को समझ सकता है ? मंडी की जनता के लिए यह सवाल अब कड़वा लेकिन ज़रूरी बन चुका है।
जिला मंडी में इतनी बड़ी आपदा के बाद अब कंगना का ‘भूकंप’ वाला बयान उन मां-बाप की चीखों का मजाक है जिन्होंने अपने बच्चों को खोया, उन ग्रामीणों की बेबसी की हंसी उड़ाता है जो अपने घरों को टूटते देख रहे थे। सांसद के इस गैर-जिम्मेदार बयान से यह साफ हो गया कि उन्हें अपने शब्दों की गंभीरता का एहसास नहीं, न ही जनता के ज़ख्मों की फिक्र।
क्या संसद अब सिर्फ किरदार निभाने का मंच बन गई है?
जिस समय मंडी में लोग अपने उजड़े घरों और बहते खेतों पर आंसू बहा रहे थे, उसी समय उनकी सांसद दिल्ली में बैठकर त्रासदी की गलत जानकारी दे रही थीं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या सिर्फ चेहरा और स्टारडम ही संसद पहुंचने की योग्यता रह गई है?
कंगना रनौत जिस तरह त्रासदी के समय सजी-संवरी मीडिया बाइट्स दे रही थीं, उसे देखकर ऐसा लगा जैसे संसद अब अभिनय का ही विस्तार बन चुका हो। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और प्रधानमंत्री की तारीफ़ें करते हुए वे त्रासदी के मूल मुद्दे से भटक गईं। सवाल यह है - क्या ये असंवेदनशीलता है या प्रचार की प्राथमिकता?
सोशल मीडिया पर जनता का फूटा गुस्सा
सोशल मीडिया पर कंगना के बयान को लेकर जनता भड़क उठी है। एक यूज़र ने लिखा - "कम से कम गूगल पर देख लेते कि क्या हुआ था", तो दूसरे ने कहा - "जिसे क्षेत्र की आपदा तक नहीं पता, उसे सांसद किसने बना दिया ?" यह गुस्सा केवल एक बयान पर नहीं, बल्कि प्रतिनिधित्व की ज़िम्मेदारी को लेकर उठ रहे व्यापक अविश्वास का संकेत है।
त्रासदी ने खोल दिए संवेदनशीलता के मुखौटे..
मंडी की त्रासदी केवल प्राकृतिक आपदा नहीं थी, यह उन नेताओं की पोल खोलने वाला क्षण भी था जो केवल प्रचार के समय नज़र आते हैं। अब जब जनता को सबसे अधिक ज़रूरत थी, उनका सांसद बयानबाज़ी में व्यस्त था। यह घटना बताती है कि अब हमें केवल चेहरा नहीं, समझदार और ज़िम्मेदार नेता चाहिए।
अब वक्त है कि जनता इस घटनाक्रम को सिर्फ ट्रेंडिंग मुद्दा न मानकर, एक चेतावनी के रूप में ले। यह जरूरी है कि हम अपने प्रतिनिधियों से जवाब मांगें - क्या वे केवल प्रचार का चेहरा हैं या असली ज़मीन से जुड़े नेता ? लोकतंत्र तभी बचेगा जब जनप्रतिनिधियों को उनकी ज़िम्मेदारी का एहसास होगा और जनता चुप्पी नहीं, जवाब मांगेगी।