हिमाचल के कंडाघाट-चायल मार्ग पर स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कल्होग के 170 छात्र बीते दो साल से टीन शेड में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। 2023 की बरसात में आई आपदा ने स्कूल भवन को इतना क्षतिग्रस्त कर दिया कि छह कमरों को असुरक्षित घोषित कर दिया गया। तब से अब तक सरकार और जनप्रतिनिधियों के तमाम आश्वासन धरे के धरे रह गए हैं। न तो नया भवन बना और न ही पुराने की मरम्मत हुई, नतीजा यह कि बच्चों को धूप, ठंड और बारिश के बीच असुविधाजनक और असुरक्षित माहौल में पढ़ाई करनी पड़ रही है। पढ़ें पूरी खबर..
कंडाघाट (HD News): कहते हैं “शिक्षा राष्ट्र की नींव है”, लेकिन हिमाचल में कंडाघाट-चायल मार्ग पर स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कल्होग की हालत देखकर यह नारा खोखला लगता है। वर्ष 2023 की बरसात में आई आपदा ने इस स्कूल भवन को इतना क्षतिग्रस्त कर दिया कि तकनीकी टीम ने छह कमरों को असुरक्षित घोषित कर दिया। तब से अब तक, पूरे दो साल बीत चुके हैं, लेकिन सरकार और जनप्रतिनिधियों के तमाम वादे कागज़ों में कैद होकर रह गए।

आज हालात यह हैं कि छठी से जमा दो तक के 170 छात्र धूप, ठंड और बारिश के बीच टीन शेड में बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं। न पंखे, न रोशनी और न ही मौसम से बचाव का इंतज़ाम — बरसात में शेड टपकता है, गर्मियों में तपता है और सर्दियों में जमा देता है। यह सब तब हो रहा है, जब स्कूल के लिए 2016 में 69 लाख रुपये स्वीकृत हो चुके थे और 2023 की आपदा के बाद नया भवन बनाने का प्रस्ताव भी तैयार कर सरकार को भेजा गया था।
सीएम से लेकर मंत्रियों तक गुहार बेअसर
एसएमसी प्रधान सुनंदा, प्रधानाचार्य राधा कश्यप और ग्राम पंचायत तुंदल की प्रधान चित्र रेखा का कहना है कि प्रतिनिधिमंडल स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धनीराम शांडिल से लेकर मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू तक से मिल चुका है। मगर नतीजा — ढाक के तीन पात। स्कूल के लिए तीन अस्थायी टीन शेड पंचायत के तीन लाख रुपये से बनाए गए, जो महज एक ‘फौरी राहत’ है, स्थायी समाधान नहीं।
शर्मनाक लापरवाही, बच्चों के भविष्य से खिलवाड़
सरकारी तंत्र की यह सुस्त रफ्तार और वादाखिलाफी बच्चों के भविष्य पर सीधा वार है। दो साल में न तो नया भवन बना, न ही पुराने की मरम्मत हुई। बच्चों को इस तरह असुरक्षित माहौल में पढ़ाई कराने के लिए मजबूर करना, किसी भी सभ्य समाज के लिए कलंक है।
जनता का अल्टीमेटम
स्थानीय लोग अब चेतावनी दे रहे हैं कि अगर जल्द ही भवन निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ, तो वे आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे। उनका कहना है - “हम अपने बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा से समझौता नहीं करेंगे।”
कल्होग स्कूल की यह स्थिति सिर्फ एक इमारत की कमी नहीं, बल्कि व्यवस्था की सुस्त रफ्तार और बच्चों के भविष्य के प्रति लापरवाही का जीता-जागता सबूत है। शिक्षा को प्राथमिकता बताने वाली सरकार यदि दो साल में भी सुरक्षित कक्षाएं उपलब्ध नहीं करा पाती, तो यह पूरे तंत्र पर सवालिया निशान है। अब वक्त आ गया है कि जिम्मेदार विभाग तुरंत कार्रवाई करें, ताकि 170 मासूमों का भविष्य अंधेरे से निकलकर रोशनी की ओर बढ़ सके।