शिमला नगर निगम की मासिक बैठक गुरुवार को राजनीतिक अखाड़ा बन गई, जब सरकार द्वारा मेयर और डिप्टी मेयर का कार्यकाल ढाई साल से बढ़ाकर पाँच साल करने के फैसले ने माहौल को पूरी तरह गरमा दिया। बैठक शुरू होते ही भाजपा पार्षदों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की, तो वहीं कांग्रेस के भीतर से भी असहमति की आवाज़ें उठीं। हंगामा इतना बढ़ा कि महापौर को बैठक स्थगित करनी पड़ी, जबकि विरोध के बीच कई पार्षद बैठक छोड़कर बाहर चले गए। इस अप्रत्याशित हंगामे ने न सिर्फ निगम की राजनीति को झकझोर दिया, बल्कि सरकार के इस फैसले को लेकर दलगत सीमाओं से परे असंतोष भी उजागर कर दिया है। पढ़ें विस्तार से..
शिमला (HD News): शिमला नगर निगम की मासिक बैठक गुरुवार को उस समय राजनीतिक अखाड़े में बदल गई, जब हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा नगर निगम के मेयर और डिप्टी मेयर का कार्यकाल ढाई साल से बढ़ाकर पाँच साल करने के फैसले ने पूरी बैठक का माहौल गरमा दिया। यह मुद्दा इतना संवेदनशील साबित हुआ कि बैठक की शुरुआत से ही विपक्षी भाजपा पार्षदों ने सरकार के खिलाफ जोरदार नारेबाजी शुरू कर दी। वहीं, कांग्रेस के भीतर से भी असहमति के स्वर उठने लगे, जिससे माहौल और अधिक तनावपूर्ण हो गया।

बैठक की कार्यवाही बनी हंगामे का केंद्र
बैठक शुरू होते ही भाजपा पार्षदों ने सरकार पर लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी का आरोप लगाया। उनका कहना था कि सरकार ने यह फैसला एकतरफा और तानाशाहीपूर्ण तरीके से लिया है। भाजपा पार्षदों का आरोप था कि यह कदम न केवल लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ है, बल्कि महिला प्रतिनिधित्व को भी नुकसान पहुंचाने वाला है।
हंगामा इतना बढ़ गया कि महापौर को बैठक स्थगित करनी पड़ी। विरोध के दौरान कई पार्षद अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए बैठक छोड़कर बाहर निकल गए। महापौर और कुछ कांग्रेस पार्षदों ने भी स्थिति को काबू में न आता देख, अस्थायी रूप से बैठक को स्थगित करने का फैसला लिया।

कांग्रेस के भीतर भी मतभेद के स्वर
हालांकि कांग्रेस सत्तारूढ़ दल है, लेकिन निगम की बैठक में पार्टी के कई पार्षदों ने भी इस निर्णय को लेकर अपनी असहमति खुलकर जताई।
नाभा वार्ड की पार्षद सिमी नंदा ने कहा कि वह सरकार और पार्टी के साथ हैं, लेकिन निगम में पहले से तय ढाई-ढाई साल के रोस्टर सिस्टम को बरकरार रखा जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा किसी व्यक्ति विशेष से जुड़ा नहीं, बल्कि समान अवसर और लोकतांत्रिक परंपरा के सम्मान का विषय है।
इसी तरह, कांग्रेस पार्षद कांता सुयाल ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि इस बार नगर निगम में महिलाओं की संख्या अधिक है, ऐसे में उन्हें प्रतिनिधित्व देने का अवसर मिलना चाहिए था। कांता सुयाल ने बताया कि कांग्रेस पार्षदों ने मौन रहकर विरोध जताया, जबकि भाजपा पार्षदों ने नारेबाजी और वॉकआउट के ज़रिए अपनी नाराजगी प्रकट की।

भाजपा का आरोप - “तानाशाही और महिला विरोधी फैसला”
विपक्षी भाजपा पार्षदों ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए कहा कि यह फैसला पूरी तरह तानाशाहीपूर्ण और महिला विरोधी है।भाजपा पार्षद बिट्टू पाना ने कहा कि “एक तरफ कांग्रेस के नेता संविधान की दुहाई देते हैं, वहीं दूसरी ओर उसी संविधान की भावना को तोड़ रहे हैं।” उन्होंने कहा कि नगर निगम की परंपरा रही है कि ढाई साल बाद महिला प्रतिनिधि को मेयर पद का अवसर दिया जाए, लेकिन इस बार सरकार ने जानबूझकर उस प्रणाली को समाप्त कर दिया।
भाजपा पार्षदों ने चेतावनी दी कि जब तक सरकार इस निर्णय पर पुनर्विचार नहीं करती, उनका विरोध निरंतर जारी रहेगा। विपक्ष का कहना है कि यह फैसला जनता की आवाज़ को दबाने और सत्ता को केंद्रीकृत करने का प्रयास है।
राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में बड़ा असर
यह विवाद केवल नगर निगम तक सीमित नहीं है, बल्कि राजनीतिक तौर पर भी बड़ा संकेत देता है। सरकार का तर्क है कि मेयर और डिप्टी मेयर का लंबा कार्यकाल स्थायित्व और बेहतर विकास कार्यों के निष्पादन के लिए आवश्यक है। उनका कहना है कि ढाई साल में किसी भी परियोजना को गति नहीं मिल पाती, इसलिए यह निर्णय प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने की दिशा में उठाया गया कदम है।
वहीं दूसरी ओर, विरोधी पार्षदों का कहना है कि यह निर्णय लोकतांत्रिक व्यवस्था में असंतुलन पैदा करेगा और इससे नगर निगम में समान प्रतिनिधित्व की भावना कमजोर होगी।
अब निगाहें सरकार के अगले कदम पर
साफ है कि मेयर और डिप्टी मेयर का कार्यकाल बढ़ाने का फैसला केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक गर्मी का केंद्र बन चुका है। एक ओर सरकार इसे स्थायित्व और विकास की दिशा में कदम बता रही है, वहीं विपक्ष और खुद सत्तारूढ़ दल के पार्षद इसे लोकतंत्र और महिला प्रतिनिधित्व के साथ समझौता मान रहे हैं।
अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या सरकार इस बढ़ते विरोध के बावजूद अपने फैसले पर अडिग रहती है, या जनप्रतिनिधियों की असहमति को ध्यान में रखकर पुनर्विचार करती है। फिलहाल, यह मुद्दा शिमला नगर निगम को राजनीतिक टकराव के केंद्र में लाकर खड़ा कर चुका है, जो आने वाले समय में राज्य की राजनीति पर भी असर डाल सकता है।