भारत के बैंकिंग सेक्टर में एक बार फिर बड़ा बदलाव होने जा रहा है। केंद्र सरकार छोटे सरकारी बैंकों को बड़े बैंकों में विलय करने की तैयारी में है। यह फैसला नीति आयोग की सिफारिशों के बाद लिया जा रहा है, जिसका उद्देश्य देश की बैंकिंग प्रणाली को और मजबूत बनाना तथा भारतीय बैंकों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है। प्रस्तावित मर्जर के तहत चार सरकारी बैंकों का अस्तित्व समाप्त हो सकता है, जिससे बैंकिंग ढांचे में एक नया युग शुरू होने वाला है। यह कदम न केवल वित्तीय स्थिरता को नई दिशा देगा, बल्कि बैंकिंग सेवाओं को अधिक आधुनिक और कुशल बनाने की दिशा में भी बड़ा परिवर्तन साबित होगा। पढ़ें विस्तार से -
शिमला: (HD News); भारत के बैंकिंग सेक्टर में जल्द ही एक और बड़ा बदलाव होने जा रहा है। केंद्र सरकार छोटे सरकारी बैंकों को बड़े बैंकों में विलय करने की तैयारी में है। नीति आयोग की सिफारिश के बाद यह कदम उठाया जा रहा है, ताकि भारतीय बैंकिंग प्रणाली को और मजबूत किया जा सके और देश के बैंक वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार हो सकें। यह मर्जर भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में एक और मेगा रिफॉर्म साबित हो सकता है।
इस प्रस्तावित मर्जर के तहत इंडियन ओवरसीज बैंक (IOB), सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (CBI), बैंक ऑफ इंडिया (BOI) और बैंक ऑफ महाराष्ट्र (BoM) जैसे चार सरकारी बैंकों का अस्तित्व समाप्त हो सकता है। इन बैंकों को बड़े सरकारी बैंकों में मिलाया जाएगा। इससे खाताधारकों को नई बैंकिंग प्रक्रिया के तहत पासबुक, चेकबुक और अन्य दस्तावेज अपडेट करवाने होंगे। हालांकि सरकार का दावा है कि इससे ग्राहकों को ज्यादा आधुनिक और एकीकृत बैंकिंग सेवाएं मिलेंगी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, विलय की प्रक्रिया से जुड़ा ‘रिकॉर्ड ऑफ डिस्कशन’ ड्राफ्ट तैयार हो चुका है, जिसे अब कैबिनेट और प्रधानमंत्री कार्यालय के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। यदि सब कुछ तय योजना के अनुसार हुआ, तो यह मेगा मर्जर वित्त वर्ष 2026-27 तक पूरा किया जा सकता है। इससे पहले भी 2017 से 2020 के बीच सरकार 10 सरकारी बैंकों को मिलाकर 4 बड़े बैंक बना चुकी है, जिससे देश में सरकारी बैंकों की संख्या 27 से घटकर 12 रह गई थी।
इस मर्जर के कई फायदे बताए जा रहे हैं। इससे बैंकिंग नेटवर्क मजबूत होगा, एनपीए का दबाव घटेगा, कर्ज वितरण की क्षमता बढ़ेगी और वित्तीय स्थिरता में सुधार होगा। ग्राहकों को तेज़ व बेहतर सेवाएं मिलेंगी और सरकारी बैंकों की बैलेंस शीट भी सुदृढ़ होगी। हालांकि, विलय की प्रक्रिया में खाताधारकों को नई चेकबुक और दस्तावेज़ बनवाने जैसी औपचारिकताएं करनी पड़ेंगी, जबकि कर्मचारियों में नौकरी और ट्रांसफर को लेकर थोड़ी चिंता देखी जा सकती है।

यदि यह मेगा मर्जर तय समय पर हो गया, तो देश में सिर्फ चार बड़े सरकारी बैंक ही बचेंगे - स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), पंजाब नेशनल बैंक (PNB), बैंक ऑफ बड़ौदा (BoB) और कैनरा बैंक। ये चार बैंक आने वाले समय में भारत की सरकारी बैंकिंग प्रणाली की रीढ़ बनेंगे।
सरकार का कहना है कि इस मर्जर से नौकरियों पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा। बल्कि, इससे बैंकिंग व्यवस्था और सशक्त बनेगी तथा ग्राहकों को एक ही प्लेटफॉर्म पर अधिक सुविधाएं मिलेंगी। यह कदम भारत को वैश्विक वित्तीय बाजार में और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है।
अंततः, यह कहा जा सकता है कि भारत के बैंकिंग इतिहास में यह मर्जर एक ऐतिहासिक आर्थिक सुधार साबित हो सकता है। जहां एक ओर यह देश के वित्तीय ढांचे को मजबूती देगा, वहीं खाताधारकों और कर्मचारियों के लिए यह बदलाव एक नई शुरुआत का संकेत भी होगा।
Disclaimer: यह रिपोर्ट उपलब्ध सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर तैयार की गई है। इसमें दी गई जानकारी सरकारी घोषणाओं और आधिकारिक पुष्टि पर आधारित नहीं हो सकती है। बैंकिंग मर्जर और संबंधित विवरणों में समय के साथ बदलाव संभव है। खाताधारकों और निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे किसी भी निर्णय से पहले आधिकारिक बैंक या वित्तीय सलाहकार से जानकारी अवश्य लें।