हिमाचल प्रदेश की राजनीति गंभीर उथल-पुथल के दौर में है। चुराह से भाजपा विधायक हंसराज पर नाबालिग से शारीरिक शोषण के आरोप में पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज हुआ है। यह उनके खिलाफ पिछले एक वर्ष में दर्ज हुई तीसरी FIR है, जिसने विवाद को अब संवेदनशील और निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा किया है। पीड़िता के कोर्ट में दर्ज बयान, मेडिकल और परिवार द्वारा लगाए गए दबाव व धमकियों के आरोपों ने जांच की दिशा और धार, दोनों को तेज कर दिया है। उधर विधायक इन आरोपों को राजनीतिक साजिश बता रहे हैं, लेकिन FIR की धाराएं उनके बचाव की सीमाएं अब स्पष्ट रूप से संकुचित करती दिख रही हैं। पढ़ें विस्तार से..
चम्बा: (HD News); हिमाचल प्रदेश की राजनीति एक गंभीर और अस्थिर मोड़ पर पहुंच गई है। चुराह से भाजपा विधायक हंसराज पर नाबालिग से शारीरिक शोषण के आरोप में पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज हुआ है। यह पिछले एक साल में दर्ज हुई तीसरी FIR है, जिसने पूरे मामले को केवल बयानबाज़ी और आरोपों की परिधि से आगे बढ़ाकर अब कानून, जिम्मेदारी और सत्ता के प्रभाव की कठोर कसौटी पर ला खड़ा किया है। शुक्रवार शाम दर्ज हुई इस शिकायत में पीड़िता ने कहा है कि जब वह नाबालिग थी, तब उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव और शोषण किया गया। पुलिस ने उसका मेडिकल करवा लिया है और कोर्ट में बयान भी दर्ज हो चुके हैं। पॉक्सो की धाराएं जुड़ने के बाद अब जांच एक निर्णायक दिशा में बढ़ रही है और मामला गिरफ्तारी की सीमा-रेखा के बेहद करीब पहुंच गया है।

यह विवाद पिछले साल अगस्त से शुरु हुआ था। तब युवती ने विधायक पर अश्लील चैट करने, नग्न तस्वीरें मांगने और दबाव बनाने के आरोप लगाए थे। FIR भी दर्ज हुई, बयान भी हुए। लेकिन उस बयान के कुछ दिनों बाद युवती सोशल मीडिया पर लाइव आई और उसने आरोपों को गलतफहमी और मानसिक तनाव का परिणाम बताया। मामला ठहर गया, लेकिन सच्चाई वहीं खत्म नहीं हुई। छह दिन पहले इसी युवती ने सात मिनट का एक वीडियो जारी किया, जिसमें वह लगातार रोती हुई कहती है कि उसे और उसके परिवार को जान का खतरा है। उसने आरोप लगाया कि पिछले साल गवाही बदलवाने के लिए उस पर दबाव बनाया गया, डराया गया और धमकाया गया। इसी बयान ने मामला फिर से हवा में नहीं, बल्कि सीधे पुलिस रिकॉर्ड में वापस लौटा दिया।
इसके जवाब में विधायक हंसराज भी सामने आए। उन्होंने आरोपों को राजनीतिक षड्यंत्र बताया और कहा कि युवती पहले तीन न्यायिक अधिकारियों के सामने अपने आरोपों से मुकर चुकी है। उन्होंने इसे साम्प्रदायिक तनाव भड़काने की सुनियोजित कोशिश बताया और कहा कि वह मानहानि का दावा करेंगे। लेकिन इसके बाद कहानी ने और गंभीर मोड़ लिया, जब पीड़िता के पिता पहली बार सामने आए। पिता ने दावा किया कि पिछले साल बेटी के कोर्ट में बयान होने के बाद विधायक के कहने पर उनके लोग बेटी को किडनैप कर शिमला ले गए, उन्हें भी जबरन वाहन में बैठाया गया, मोबाइल फोन तोड़ दिए गए और घर जलाने की धमकी देकर उनकी बेटी से बयान बदलवाए गए। इन आरोपों पर पुलिस ने गुरुवार को अलग से FIR दर्ज कर ली।
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अब यह मामला केवल एक युवती और एक विधायक के आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित नहीं है। महिला आयोग ने मामले में संज्ञान लेते हुए एसपी चंबा से रिपोर्ट मांगी है। वहीं भाजपा का ही छात्र संगठन ABVP इस मामले में विधायक के खिलाफ खुलकर सामने आ गया है और निष्पक्ष जांच की मांग कर चुका है। यह संकेत केवल कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक संदर्भों में भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
चंबा पुलिस ने स्पष्ट कहा है कि मामला पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज है, मेडिकल और बयान पूरे हो चुके हैं और जांच सभी तथ्यों, परिस्थितियों, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर की जाएगी। पॉक्सो की धाराओं में गिरफ्तारी केवल संभावना नहीं, बल्कि प्रक्रिया का स्वाभाविक चरण माना जाता है, यदि आरोप प्राथमिक साक्ष्यों के स्तर पर भी पुष्ट दिखते हैं।
अब इस केस की दिशा अदालत, जांच और सबूतों के हाथ में है। लेकिन एक बात साफ है - यह विवाद अब व्यक्तिगत आरोपों का नहीं, बल्कि सत्ता, विश्वास, सुरक्षा और न्याय की विश्वसनीयता की परीक्षा का प्रश्न बन चुका है। और इस बार इस परीक्षा का परिणाम केवल कानूनी नहीं, राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव भी तय करेगा।
मामला अब केवल व्यक्तिगत विवाद नहीं बल्कि न्याय और कानून के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत गंभीर चुनौती बन गया है। पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज होने के साथ ही विधायक पर गिरफ्तारी की संभावना बढ़ गई है। प्रशासन, न्यायिक प्रक्रिया और महिला आयोग की सक्रियता इस केस की निष्पक्षता और पीड़िता के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी। यह मामला प्रदेश की राजनीति और कानून की प्राथमिकताओं पर भी गंभीर सवाल खड़ा करता है।
डिस्क्लेमर: उपरोक्त समाचार विभिन्न शिकायतों, एफआईआर दस्तावेज़ों, पक्षकारों के बयानों और मीडिया स्रोतों पर आधारित है। यह केवल सूचनात्मक उद्देश्य के लिए प्रस्तुत किया गया है। किसी भी व्यक्ति को दोषी या निर्दोष ठहराना न्यायालय का विशेषाधिकार है। मामला अभी जांच और न्यायिक प्रक्रिया के अधीन है, इसलिए आरोपों को अंतिम निष्कर्ष नहीं माना जाना चाहिए। पाठकों से अनुरोध है कि इस विषय पर बयानबाज़ी, अनुमान या पूर्वाग्रह आधारित टिप्पणियों से बचें और कानून की प्रक्रिया का सम्मान करें।