हिमाचल प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पंचायत चुनावों का मुद्दा सबसे बड़ा राजनीतिक संग्राम बन गया है। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने सदन में दो-टूक कहा कि राज्य में आपदा प्रबंधन एक्ट लागू है और एक्ट हटते ही पंचायत व स्थानीय निकाय चुनाव करवा दिए जाएंगे। सरकार आपदा को चुनाव टालने की "मजबूरी" बता रही है, जबकि विपक्ष इसे "टालमटोल और संवैधानिक उल्लंघन" करार देते हुए सदन से वॉकआउट कर गया। दोनों पक्षों की तीखी तकरार के बीच मामला अब सीधे अदालत की दहलीज तक पहुंच चुका है।
धर्मशाला: (HD News); हिमाचल प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर सदन में तीखी बहस देखने को मिली। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने साफ कहा कि प्रदेश में आपदा प्रबंधन एक्ट लागू है और जब तक यह एक्ट प्रभावी रहेगा, पंचायत चुनाव करवाना संभव नहीं है। जैसे ही एक्ट हटेगा, चुनाव तुरंत करवा दिए जाएंगे। सीएम ने बताया कि आज से इस एक्ट को पूरी तरह लागू किया जा रहा है और राज्य निर्वाचन आयोग भी इसी दायरे में बंधा है, इसलिए वह अलग से किसी भी तरह के दिशानिर्देश जारी नहीं कर सकता। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश में कई नई पंचायतों का गठन करना है और नालागढ़ क्षेत्र की कुछ पंचायतों में आबादी 9, 000 से अधिक तक पहुंच चुकी है। सीएम की इस दलील से असंतुष्ट विपक्ष ने सदन से वॉकआउट कर दिया।

पंचायत चुनाव पर विपक्ष द्वारा लाए गए स्थगन प्रस्ताव का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि चुनाव स्थगित नहीं किए गए हैं, बल्कि आपदा की स्थिति के कारण थोड़े समय के लिए रोके गए हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश में जून से ही चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी, लेकिन इस वर्ष बारिश ने 2023 से भी बड़ा संकट खड़ा कर दिया। मंडी, कुल्लू और फिर पूरे प्रदेश में भारी नुकसान हुआ। सड़कें टूट गईं, सेब सीजन प्रभावित हुआ और सरकार को मध्यस्थता योजना के तहत 100 करोड़ रुपये का सेब खरीदना पड़ा। ऐसी परिस्थितियों में राज्य सरकार ने मजबूरी में आपदा प्रबंधन एक्ट लागू किया और पुनर्वास कार्यों में पूरा प्रशासन लगा हुआ है।
सीएम सुक्खू ने विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा कि जून 2022 से पहले शिमला नगर निगम के चुनाव करवाए जाने चाहिए थे, लेकिन उस समय भाजपा सरकार ने चुनाव नहीं करवाए। उन्होंने कहा कि कई राज्यों में चुनाव देरी से हुए हैं, लेकिन प्रदेश सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं है और चुनाव समय पर करवाने की उनकी प्रतिबद्धता स्पष्ट है।

इधर मुख्यमंत्री के बयान से पहले पंचायती राज मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने सदन में आंकड़े पेश करते हुए बताया कि आपदा के दौरान 631 पंचायत भवन क्षतिग्रस्त हुए हैं और करीब 196.30 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। ऐसे हालात में इन पंचायतों में चुनाव करवाना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि पंचायत चुनाव करवाने के लिए 30 जनवरी तक का समय है और विपक्ष यह गलत भ्रम फैला रहा है कि मुख्यमंत्री और सरकार के बयान अलग-अलग हैं। उन्होंने बताया कि ओबीसी रोस्टर को सही ढंग से लागू करने पर भी सरकार विचार कर रही है। साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि गुजरात, उत्तर प्रदेश, असम, उत्तराखंड और महाराष्ट्र में जब चुनाव आगे किए गए तो सिर्फ हिमाचल पर ही सवाल क्यों उठ रहे हैं।
विपक्ष द्वारा नियम-67 के तहत लाए गए काम रोको प्रस्ताव पर दो दिन तक चली चर्चा में कुल 18 विधायकों ने हिस्सा लिया। मुख्यमंत्री के अनुसार इन 18 में से ज्यादातर कांग्रेस के विधायक थे, जबकि प्रस्ताव भाजपा की ओर से लाया गया था। इससे सरकार ने विपक्ष के आरोपों को राजनीतिक दिखावा बताया।
झंडूता के विधायक जीतराम कटवाल ने सरकार पर संविधान के प्रावधानों का पालन न करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा अधिसूचना जारी होने के बाद किसी भी तरह की देरी असंवैधानिक है और इसे टालना देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ खिलवाड़ है। कटवाल ने कहा कि पंजाब में ऐसा ही मामला सुप्रीम कोर्ट में नहीं टिक पाया था और अदालत ने वहां समय पर चुनाव करवाने के आदेश दिए। हिमाचल में भी पंचायत चुनावों को लेकर हाईकोर्ट में पीआईएल दायर है, जिसमें सरकार को 15 दिसंबर तक जवाब देना है और 22 दिसंबर को सुनवाई निर्धारित है।

स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा के बाद भाजपा विधायक सतपाल सिंह सत्ती ने भी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि मंत्री जगत सिंह नेगी को धार्मिक भावनाओं पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। सत्ती ने कहा कि दुनिया में कोई पूर्ण सेकुलर नहीं है, धर्मनिरपेक्ष होना ही वास्तविकता है, और इस बहस को कॉमरेडों द्वारा गलत दिशा में मोड़ा गया है। उन्होंने कहा कि यदि किसी नेता के रिश्तेदार कोई गलती करते हैं, तो दोष नेता पर ही आता है। सत्ती ने यह भी कहा कि पंचायत चुनाव चुनाव चिह्नन के आधार पर नहीं होते, इसलिए इन्हें समय पर करवाने में कोई तकनीकी बाधा नहीं है।
दो दिन की गर्मागर्म बहस, सरकार और विपक्ष की तकरार और कानूनी पहलुओं के बाद पंचायत चुनावों का मुद्दा अब अदालत की चौखट तक पहुंच चुका है। अब पूरा प्रदेश 15 और 22 दिसंबर को होने वाली हाईकोर्ट की सुनवाई पर निगाहें टिकाए बैठा है, जिससे यह तय होगा कि चुनाव समय पर होंगे या देरी अपरिहार्य है। फिलहाल, हिमाचल में पंचायत चुनाव का मुद्दा राजनीतिक तापमान को लगातार बढ़ा रहा है।