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हिमाचल

मरीज मजबूरी में आता है, मार खाने नहीं! IGMC डॉक्टर की बर्खास्तगी पर सुक्खू सरकार सख़्त: सरकार का फैसला न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम, हड़ताल और अवसरवादी राजनीति 'शर्मनाक' - पढ़े पूरी रिपोर्ट..

December 27, 2025 08:33 AM
प्रतीकात्मक तस्वीर
Om Prakash Thakur

अस्पताल वह स्थान होता है जहां मरीज इलाज और राहत की उम्मीद लेकर पहुंचता है। लेकिन जब उपचार की जगह मरीज के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट जैसी घटनाएं सामने आती हैं, तो यह न केवल संबंधित व्यक्ति बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर सवाल खड़े करती हैं। IGMC शिमला में मरीज के साथ हुई मारपीट के मामले में राज्य सरकार द्वारा आरोपी डॉक्टर को सेवा से बर्खास्त करने का फैसला इसी दिशा में उठाया गया एक अहम कदम माना जा रहा है। यह निर्णय मरीजों की सुरक्षा, चिकित्सा नैतिकता और संस्थागत जवाबदेही के संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पढ़े विस्तार से..


 अस्पताल की दहलीज और टूटता विश्वास

अस्पताल वह पवित्र स्थान है जहाँ एक व्यक्ति अपनी बीमारी, लाचारी और मजबूरी लेकर आता है। वह वहाँ इसलिए आता है ताकि उसे जीवनदान मिल सके, न कि इसलिए कि 'भगवान' का दर्जा पाने वाले डॉक्टर ही उसे बेड पर लिटाकर पीटना शुरू कर दें। आईजीएमसी शिमला में डॉ. राघव नरूला और उनके साथी द्वारा मरीज अर्जुन सिंह की पिटाई ने पूरे समाज को झकझोर दिया है। बेड पर असहाय लेटे मरीज को जकड़ना और उस पर मुक्के बरसाना किसी भी तर्क से जायज नहीं ठहराया जा सकता। 

सांकेतिक तस्वीर

सरकार का फैसला: न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार ने इस मामले में बिना किसी दबाव के जो त्वरित फैसला लिया है, वह सराहनीय है। गहन जांच के बाद दोषी डॉक्टर को बर्खास्त करना इस बात का प्रमाण है कि कानून सबके लिए बराबर है। यह सरकार का पहला ऐसा 'सर्जिकल स्ट्राइक' है जिसने यह साफ कर दिया है कि मरीजों के साथ दुर्व्यवहार करने वालों की स्वास्थ्य संस्थानों में कोई जगह नहीं है। यह निर्णय हिमाचल की जनता और पीड़ित मरीज के घावों पर मरहम जैसा है।

बेहद दुखद पहलू यह है कि रेजिडेंट डॉक्टर अपने उस साथी के समर्थन में हड़ताल पर चले गए हैं जिसने सरेआम एक बेबस मरीज को पीटा। क्या ये डॉक्टर भविष्य में मरीजों को पीटने का अधिकार मांग रहे हैं? अस्पताल में दाखिल सैकड़ों गंभीर मरीजों की जान को जोखिम में डालकर हड़ताल करना न केवल अनैतिक है बल्कि पेशे के साथ गद्दारी है। गलत कृत्य का समर्थन करने वाला भी उतना ही दोषी है, और आज हड़ताल पर बैठे डॉक्टर न्याय के विरुद्ध खड़े नजर आ रहे हैं।

राजनीति का दोगलापन: गिरते सियासी मापदंड

इस गंभीर मामले में विपक्ष की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। कल तक जो नेता डॉक्टर को सस्पेंड करने की मांग कर रहे थे, आज सरकार की कड़ी कार्रवाई को 'जल्दबाजी' बता रहे हैं। यह सिर्फ राजनीतिक रोटियां सेंकने का खेल है। जनहित में लिए गए फैसलों पर राजनीति करना बंद होना चाहिए। जब रक्षक ही जान का दुश्मन बन जाए, तो सरकार का कड़ा रुख ही व्यवस्था में सुधार की उम्मीद जगाता है।

समय है आत्ममंथन का

यह समय डॉक्टरों के लिए आत्ममंथन का है। उन्हें समझना होगा कि उनकी लड़ाई एक 'अन्याय' को बचाने के लिए है, जबकि सरकार की लड़ाई 'इंसानियत' को बचाने के लिए है। समाज सरकार के इस कड़े और सही फैसले के साथ खड़ा है।


 "अस्पताल 'इलाज' का मंदिर है, 'आक्रोश' का अखाड़ा नहीं। सरकार ने दोषी डॉक्टर को बर्खास्त कर एक स्पष्ट नजीर पेश की है कि मानवता और मरीज की गरिमा से ऊपर कोई पद या पेशा नहीं हो सकता। 'भगवान' कहे जाने वाले डॉक्टरों का एक बेबस और बीमार मरीज पर इस तरह टूट पड़ना कतई स्वीकार्य नहीं है। रेजिडेंट डॉक्टरों द्वारा एक गलत कृत्य का समर्थन कर हड़ताल पर जाना न केवल अनैतिक है, बल्कि उन हजारों मरीजों के साथ विश्वासघात है जो अपनी जान बचाने की उम्मीद लेकर IGMC आते हैं। अंततः, राजनीति अपनी जगह है, लेकिन जब बात किसी गरीब और बेसहारा मरीज के साथ हुए अन्याय की हो, तो व्यवस्था का कड़ा रुख ही समाज में विश्वास बहाल करता है। जनहित सर्वोपरि है, और सरकार का यह फैसला इसी दिशा में एक साहसिक कदम है।"

डिस्क्लेमर : यह रिपोर्ट जनहित और उपलब्ध तथ्यों पर आधारित एक संक्षिप्त विश्लेषण है। इसमें व्यक्त विचार मरीजों के अधिकारों और मानवीय संवेदनाओं को प्राथमिकता देते हैं। हमारा पोर्टल किसी भी प्रकार की हिंसा का विरोध करता है और शासन द्वारा न्यायोचित कार्रवाई का समर्थन करता है। समाचार का उद्देश्य किसी पेशे की छवि धूमिल करना नहीं, बल्कि जवाबदेही तय करना है।

 

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