मंडी: नेरचौक में जिस जमीन पर मेडिकल कॉलेज बना है उस जमीन को मीर बख्श अपने पूर्वजों की बताता है. प्रदेश सरकार ने सोचा कि मीर बख्श के पूर्वज सुलतान मोहम्मद विभाजन के दौरान पाकिस्तान चले गए और जमीन पर कब्जा करके इसे अपने कुछ विभागों को बांट दिया जबकि सुलतान मोहम्मद की मौत साल 1983 में हिमाचल में ही हुई थी.
ऐसे में इन्हें विस्थापित नहीं माना जा सकता. इन सभी दस्तावेजों और पुराने रिकॉर्ड के आधार पर ही मीर बख्श ने इस केस को जीता है. हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को मीर बख्श को जमीन के बदले जमीन देने का आदेश दिया है.
मीर बख्श की 92 बीघा जमीन पर सरकार ने कब्जा करके मेडिकल कॉलेज, एसडीएम कार्यालय और कुछ अन्य विभागों के कार्यालय बनाए हैं. ऐसे में हजारों करोड़ की लागत से बने इन भवनों को हटाकर जमीन खाली करवाना संभव नहीं इसलिए हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को मीर बख्श को जमीन के बदले जमीन देने का आदेश सुना रखा है.प्रदेश सरकार के आदेशों पर मंडी जिला प्रशासन भी जमीन की तलाश कर रहा है लेकिन कहीं पर भी इतनी ज्यादा जमीन उपलब्ध नहीं है.
वहीं, प्रशासन मीर बख्श को जो जमीन उपलब्ध करवा रहा है वो मीर बख्श को मंजूर नहीं है.जमीन नहीं तो 10 अरब मुआवजा दोजमीन के बदले जमीन न मिलता देख अब मीर बख्श ने फिर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और याचिका दायर करके जमीन के बदले मुआवजे की मांग की है. मीर बख्श ने 10 अरब से ज्यादा का मुआवजा मांगा है. अपनी अपील में दलील देते हुए मीर बख्श ने कहा नेरचौक में जो उसकी जमीन है उसकी मौजूदा कीमत 15 लाख रुपए प्रति बिस्वां है. ऐसे में 92 बीघा जमीन के बदले 10 अरब 61 करोड़ 57 लाख 11 हजार 431 रुपये का मुआवजा बनता है. मीर बख्श की इस याचिका पर हाईकोर्ट में अभी सुनवाई होनी है.
कैसे हुई गफलत
दरअसल, मीर बख्श के पूर्वज सुल्तान मोहम्मद विभाजन के दौरान पाकिस्तान चले गए. बाद में हिमाचल सरकार ने जमीन पर कब्जा किया और फिर कुछ जमीन की नीलामी भी की. इस जमीन को निष्क्रांत संपत्ति के तहत सरकार ने कब्जे में लिया था. बाद में यहां पर मेडिकल कॉलेज और अन्य सरकारी दफ्तर बनाए गए. इस मामले में मीर बख्स ने हाईकोर्ट में जमीन को लेकर दावा ठोका और कहा कि उसके पास जमीन के सभी दस्तावेज और पुराने रिकार्ड हैं और इसी के चलते मीर बख्श ने हाईकोर्ट में यह केस जीत लिया.