हिमाचल में हिंदुत्व की सियासत; नेताओं को पार्टी से ज्यादा अपनी चिंता, ‘यूपी की योगी सरकार’ के नक्शेकदम पर चलने को तैयार, योगी सरकार तर्ज पर नेम प्लेट लगाने पर मचा बवाल, पढ़ें पूरी खबर.
शिमला: (HD News); विक्रमादित्य सिंह ने बुधवार (25 सितंबर) को कहा था कि उत्तर प्रदेश के तर्ज पर हिमाचल प्रदेश में भी दुकानों पर फोटो युक्त पहचान पत्र लगाना अनिवार्य होगा। इस पर अब सरकार की सफाई आई है। अभी तक सरकार ने विक्रेताओं की ओर से अपनी दुकानों पर नामपट्टिका या अन्य पहचान अनिवार्य रूप से प्रदर्शित करने का कोई निर्णय नहीं लिया है। यह जानकारी गुरुवार को राज्य सरकार के एक प्रवक्ता ने दी। उन्होंने कहा कि सरकार राज्य के रेहड़ी-पहड़ी वालों की चिंताओं को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है और कोई भी निर्णय लेने से पहले सभी सुझावों पर ध्यानपूर्वक विचार करेगी। प्रवक्ता ने बताया कि इस मामले को सुलझाने के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों विधायकों की एक समिति पहले ही गठित की जा चुकी है।
कांग्रेस सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि इस संदर्भ में संसदीय कार्य मंत्री हर्षवर्धन चौहान की अध्यक्षता में कांग्रेस और भाजपा विधायकों की एक समिति का गठन किया गया है। ग्रामीण विकास एवं पंचायती मंत्री अनिरूद्ध सिंह, लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह, विधायक अनिल शर्मा, सतपाल सती, रणधीर शर्मा और हरीश जनारथा इस समिति के सदस्य हैं।
विक्रमादित्य ने बुधवार को किया था एलान
प्रदेश में शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने बुधवार को अपने बयान में कहा था कि उत्तर प्रदेश की तर्ज पर हिमाचल प्रदेश में भी हर भोजनालय और फास्ट फूड की रेहड़ी पर दुकान मालिक की आईडी लगाई जाएगी, ताकि लोगों को किसी भी तरह की कोई परेशानी न हो। मंत्री के इस बयान के बाद सवाल उठ रहे हैं कि हिमाचल की कांग्रेस सरकार योगी आदित्यनाथ के एजेंडे पर क्यों आगे बढ़ रही है ?
देश में कांग्रेस की फिलहाल 3 राज्यों में सरकार है, जहां पर वो अपने दम पर सत्ता पर काबिज है। इन्हीं में एक राज्य है हिमाचल प्रदेश है यहां की सुक्खू सरकार इन दिनों ‘यूपी की योगी सरकार’ के नक्शेकदम पर चलती नजर रही है।
बीजेपी के हिंदुत्व वाले एजेंडे को लेकर कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी हमेशा सवाल खड़े करते रहे हैं। बीजेपी शासित राज्यों और केंद्र सरकार के फैसलों को लेकर कांग्रेस कहती रही है कि बीजेपी हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ा रही और RSS की सोच को पूरे देश पर थोपना चाहती है। इसके बावजूद हिमाचल की कांग्रेस सरकार क्यों योगी के हिंदुत्व वाले मॉडल को अपना रही है ?
बता दें कि मंत्री अनिरुद्ध सिंह को पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के सियासी वारिस और हिमाचल सरकार में मंत्री विक्रमादित्य सिंह का करीबी माना जाता है। इस तरह कांग्रेस के दोनों ही नेता इन दिनों हिंदुत्व के एजेंडे पर खुलकर उतर गए हैं। शिमला की अवैध मस्जिद का मामला अब दुकानदारों के नेमप्लेट तक पहुंच गया है। कांग्रेस से अब यह न निगलते बन रहा है और न उगलते.. अनिरद्ध सिंह ने सिर्फ मस्जिद का मामला ही नहीं उठाया बल्कि घुसपैठियों तक का जिक्र किया। उन्होंने कहा था कि संजौली बाजार में महिलाओं का चलना मुश्किल हो गया है। चोरियां हो रही हैं और लव जिहाद जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं, जो प्रदेश और देश के लिए खतरनाक हैं।
वहीं हिमाचल सरकार के मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने भी वक्फ बोर्ड के मुद्दे पर पार्टी लाइन से अलग बयान दिया था। उन्होंने वक्फ बोर्ड में सुधार की जरूरत बताते हुए सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा था "हिमाचल और हिमाचलियत के हित सर्वश्रेष्ठ, सर्वत्र हिमाचल का संपूर्ण विकास ; जय श्री राम ! समय के साथ हर कानून में तब्दीली लाना जरूरी है। वक्फ बोर्ड में भी बदलते समय के साथ सुधार की जरूरत है। इसके बाद योगी सरकार के एजेंडे को हिमाचल में आगे बढ़ा रहे हैं।
हिमाचल में हिंदुत्व की सियासत
धर्म की राजनीति से अभी तक अछूते रहे हिमाचल प्रदेश में हिंदुत्व की सियासत नई करवट लेती नजर आ रही है। हिमाचल की जनसंख्या में 97 फीसदी आबादी हिंदुओं की है और मुस्लिम समुदाय 2.1 फीसदी है। यहां मुसलमान प्रमुख रूप से शिमला, सिरमौर, चम्बा, कुल्लू और मनाली जैसे पर्यटक वाले इलाके में बसे हुए हैं। वहीं, कुछ मुस्लिम आबादी कांगड़ा और मंडी जिलों में भी है।
हिमाचल पहाड़ी राज्य है, जहां हिंदू धर्म का गहरा प्रभाव है। इसे देवभूमि यानी देवताओं की भूमि भी कहा जाता है। हिमाचल के कई क्षेत्रों का महाभारत और रामायण जैसे प्राचीन ग्रंथों में जिक्र मिलता है। देवभूमि होने के नाते यहां देवी-देवताओं का हर वर्ग पूरा सम्मान करता रहा है, लेकिन देवी-देवताओं को लेकर भी कभी चुनावी माहौल नहीं बनाया गया और न ही कभी सियासत हुई लेकिन, हिमाचल प्रदेश के डेमोग्राफी के आए बदलाव को लेकर इन दिनों हिंदुत्व की सियासत गर्मा गई है।
कांग्रेस नेताओं को अपनी सियासत की चिंता
कांग्रेस नेताओं को पार्टी से ज्यादा अपनी राजनीतिक चिंता है और उसे ही बचाने के लिए हिंदुत्व के एजेंडे पर चल रहे है। हिमाचल प्रदेश में कभी कोई मुस्लिम विधायक नहीं रहा और न ही किसी को लोकसभा में प्रतिनिधित्व का मौका मिल पाया है। हिमाचल में भी पिछले दिनों कुछ ऐसी घटनाएं देखी गई थी जिनमें कुछ हिदुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने मुस्लिमों को निशाना बनाया था। कांगड़ा ज़िले के नगरोटा में अन्य प्रदेशों से आकर दुकान चला रहे युवकों की पिटाई हुई थी। पुलवामा के हमले के बाद पालमपुर में कश्मीरी युवकों को निशाना बनाया गया था। इसके बाद शिमला की मस्जिद का मुद्दा उठने के बाद कई और भी मामले सामने आए हैं।
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही राज्य की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल होती चली गई है। यह बात किसी से छुपी नहीं है। जिस तरह के दावों और वादों को चुनाव के समय जनता के बीच रखकर कांग्रेस यहां सत्ता में आई उसे पूरा करने में राज्य सरकार के खजाने खाली हो रहे हैं और अब वहां सरकार के पसीने छूट रहे हैं। ऐसे में हिंदू संगठन और बीजेपी ने जिस तरह मुस्लिमों की आबादी से मस्जिद तक के मुद्दे को लेकर माहौल बनाया है, उसके बाद कांग्रेस भी अब उसी राह पर चल पड़ी है।