शिमला: (HD News); सिडनी स्थित न्यू साउथ वेल्स के अन्तर्राट्रीय कन्वेशन सैंटर सिडनी में चल रहे 67वें राष्ट्रमण्डल संसदीय सम्मेलन के दूसरे दिन विश्व समुदाय के जन प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए हिमाचल प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष श्री कुलदीप सिंह पठानियां ने कहा कि भारत दुनियां का सबसे बड़ा, लोकप्रिय तथा मजबूत लोकतन्त्र है जिस पर हम 140 करोड़ भारतवासियों को गर्व है। पठानियां ने कहा कि हमारा संसदीय ढांचा इसे और भी मजबूती प्रदान करता है। जहाँ देश के अन्दर केन्द्र में राज्य सभा तथा लोक सभा है वहीं बड़े राज्यों में विधान परिषद व विधान सभा दोनों की व्यवस्था है जबकि छोटे राज्यों में विधान सभा तथा विधान मण्डल की व्यवस्था है।
लोक सभा तथा विधान सभा के सदस्या सीधे तौर पर जनता के मतों से चुनकर आते हैं जबकि राज्य सभा तथा विधान परिषद सदस्य का चुनाव सम्बन्धित राज्यों के विधान सभा सदस्यों द्वारा किया जाता है। पठानियां ने कहा कि विधान पालिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका हमारे संविधान के अभिन्न अंग हैं जबकि मिडिया लोकतन्त्र का चौथा मजबूत स्तभं है।
सम्मेलन के दूसरे दिन के सत्र के लिए चयनित विषय “पुलों का निर्माण: स्वदेशी लोगों के साथ सार्थक जुड़ाव के लिए संसदीय रूपरेखा” (Building Bridges: Parliamentary Frameworks for Meaningfully Engaging with indiqueons Peoples) पर अपना सम्बोधन देते हुए पठानियां ने कहा कि स्वदेशी लोगों के साथ जुड़ने के लिए मजबूत संसदीय ढाँचे की स्थापना केवल नीतिगत समायोजन का मामला नहीं है बल्कि मान्यता, सम्मान और मेल – मिलाप में निहित एक गहन नैतिक और कानूनी अनिवार्यता है।
स्वदेशी समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली ऐतिहासिक हाशिए पर और प्रणालीगत असमानताएं शासन और विधायी प्रक्रियाओं के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण की मांग करती है। यह जुड़ाव सांकेतिक नहीं होना चाहिए, बल्कि सह- दृढ़ संकल्प और पारस्परिक सम्मान के सिद्वांतो पर आधारित होना चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि स्वदेशी आवाजें निर्णय लेने की प्रक्रियाओं का अभिन्न अंग है जो उनके जीवन को प्रभावित करती है। इसे प्राप्त करने के लिए संसदों को स्वदेशी लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा (यूएनडीआरआईपी) जैसे अन्तर्राष्ट्रीय उपकरणों के साथ तालमेल बिठाते हुए अपने विधायी ढांचे में स्वदेशी अधिकारों को शामिल करने को प्राथमिकता देनी चाहिए।
इसके लिए न केवल परामर्श करने बल्कि स्वदेशी समुदायों के साथ सहयोग करने, उनकी संप्रभुता और अंतर्निहित अधिकारों को पहचानने की निरंतर प्रतिबद्वता की आवश्यकता है। प्रभावी जुड़ाव में संवाद के लिए समर्पित मंच बनाना शामिल है, जैसे संयुक्त समितियाँ या परषिदें, जो स्वदेशी नेताओं और संसदीय प्रतिनिधियों के बीच सीधे संचार की सुविधा प्रदान करती हैं। ऐसी संरचनाएं पारंपरिक शासन प्रणालियों और राज्य तंत्रों के बीच अंतर को पाटने, विश्वास को बढ़ावा देने और यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकती है कि सार्वजनिक नीति में स्वदेशी दृष्टिकोंण प्रतिबिंबित हो। सार्थक जुड़ाव का एक प्रमुख पहलू स्वदेशी आत्मनिर्णय की मान्यता मे निहित है।
संसदों को पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण से आगे बढ़ना चाहिए और इसके बजाए स्वदेशी समुदायों को उन क्षेत्रों में नेतृत्व करने के लिए सशक्त बनाना चाहिए जो उन्हें प्रभावित करते हैं। इसे साझा निर्णय – निर्माण ढांचे के माधयम से प्राप्त किया जा सकता है जो स्वदेशी शासन संरचनाओं और सामुदायिक आकांक्षाओं का सम्मान करता है। स्वदेशी लोगों के साथ सार्थक रूप से जुड़ने का प्रयास केवल प्रतिनिधित्व के बारे में नहीं है, यह समाज में उनके उचित स्थान को स्वीकार करने और यह सुनिश्चित करने के बारे में है कि उनकी आवाजें सत्ता के गलियारे में गूंजे।
सम्बोधन के दौरान विधान सभा उपाध्यक्ष विनय कुमार तथा विधान सभा सचिव यशपाल शर्मा भी सभागार में मौजूद थे। गौरतलब है कि यह सम्मेलन 3 नवम्बर को शुरू हुआ था तथा 8 नवम्बर, 2024 तक चलेगा।