क्या "चंदा दो, टिकट लो" था कांग्रेस का फॉर्मूला ? ED की रिपोर्ट में विस्फोट, चैरिटी की आड़ में कांग्रेस ने खेला अरबों का खेल! नाम चैरिटी का, काम टिकट बांटने का ! क्या यही है कांग्रेस का असली राजनीतिक मॉडल ? पढ़ें विस्तार से..
नई दिल्ली: देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अब सवालों के कटघरे में है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ताज़ा रिपोर्ट ने नेशनल हेराल्ड केस में ऐसे सनसनीखेज खुलासे किए हैं, जो न केवल चौंकाने वाले हैं, बल्कि राजनीति के भीतर छुपी संपत्ति हड़पने की साज़िश को उजागर करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, “चैरिटी” की आड़ में अरबों की संपत्ति पर कब्जा किया गया, और जिन लोगों ने संस्था को “दान” दिया, उन्हें कांग्रेस से चुनावी टिकट मिल गया — क्या यही है कांग्रेस का असली राजनीतिक मॉडल ?
₹0 का निवेश, ₹2000 करोड़ की मिल्कियत पर कब्जा!
ED की रिपोर्ट बताती है कि Young Indian Pvt. Ltd., जिस पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी का सीधा नियंत्रण है, ने महज ₹50 लाख के कागज़ी सौदे के ज़रिए Associated Journals Limited (AJL) की बेशकीमती संपत्तियों पर कब्जा कर लिया। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह ₹50 लाख भी यंग इंडियन ने अपनी जेब से नहीं दिए, बल्कि एक कोलकाता की कंपनी Dotex Merchandise Pvt. Ltd. से उधार लिए गए थे।
इस डील में दिल्ली, मुंबई, भोपाल और पटना जैसी प्राइम लोकेशन पर बनी इमारतें यंग इंडियन के कब्जे में चली गईं, बिना एक भी चैरिटेबल काम किए।

चैरिटी के नाम पर राजनीति का काला खेल?
ED का दावा है कि Young Indian सिर्फ नाम की संस्था थी, जिसका असली उद्देश्य था AJL की संपत्तियों को हथियाना। न कोई सामाजिक कार्य, न कोई जनसेवा – केवल एक व्यवस्थित योजना के तहत अरबों की संपत्ति को अपने कब्जे में लेना। और यहां तक कि जिन लोगों ने संस्था को दान दिया, उन्हें कांग्रेस के टिकट भी मिल गए। यानी चैरिटी की आड़ में चल रही थी सियासी सौदेबाज़ी!
"प्रत्यक्ष राजनीतिक नेतृत्व द्वारा नियंत्रित धोखाधड़ी"
प्रवर्तन निदेशालय ने इस पूरे सौदे को "सीधे राजनीतिक नेतृत्व द्वारा रचित और नियंत्रित धोखाधड़ी" करार दिया है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडिस इस कंपनी के निदेशक रह चुके हैं। सोनिया और राहुल से पूछताछ हो चुकी है और मामला अदालत में चल रहा है।
कांग्रेस की प्रतिक्रिया – "कोई फर्क नहीं पड़ता"!
ED के इन गंभीर आरोपों पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने सफाई देते हुए कहा कि “एक पैसा भी इधर-उधर नहीं हुआ” और इसे राजनीतिक प्रतिशोध की संज्ञा दी। लेकिन क्या सिर्फ “राजनीतिक प्रतिशोध” कह देने से ₹2000 करोड़ की संपत्तियों का जवाब नहीं देना पड़ेगा?
राजनीति या मुनाफे की चैरिटी?
अब जब प्रवर्तन निदेशालय ने यह विस्फोटक रिपोर्ट अदालत में दाखिल कर दी है, तो सवाल सीधा है - क्या कांग्रेस ने सत्ता की सीढ़ी चढ़ने के लिए “दान दो, टिकट लो” का फार्मूला अपनाया था? या ये मामला भी एक बार फिर “राजनीति बनाम जांच एजेंसी” के दलदल में फंस जाएगा?
अब अदालत को तय करना है – क्या ये सिर्फ एक कानूनी विवाद है या भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा घोटाला..!!
यह लेख प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा अदालत में प्रस्तुत दस्तावेजों और मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें व्यक्त किए गए आरोपों की पुष्टि अदालत द्वारा की जानी शेष है। किसी भी व्यक्ति या संस्था को पूर्वाग्रह या दोषी ठहराने का उद्देश्य नहीं है। अंतिम निर्णय न्यायालय की प्रक्रिया और निर्णय पर निर्भर करेगा।
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