शिमला के मातृ शिशु अस्पताल (KNH) एक बार फिर लापरवाही के गंभीर आरोपों की जद में है। यह कोई पहली घटना नहीं है - इससे पहले भी डिलीवरी के दौरान जच्चा-बच्चा की अनदेखी, इलाज में लापरवाही और मेडिकल रिकॉर्ड गायब करने जैसे आरोप इस अस्पताल पर लग चुके हैं। ताज़ा मामले में 27 वर्षीय महिला की सीजेरियन डिलीवरी के महज 24 घंटे बाद संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है, जिससे अस्पताल की कार्यप्रणाली और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। परिजनों ने डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ पर सीधी लापरवाही के आरोप लगाए हैं, जबकि प्रशासन इसे "अचानक मौत" करार दे रहा है। पढ़ें विस्तार से..
शिमला : (HD News); शिमला के मातृ शिशु अस्पताल (KNH) एक बार फिर लापरवाही के आरोपों के घेरे में आ गया है। यह कोई पहली घटना नहीं है इससे पहले भी इसी अस्पताल पर डिलीवरी के दौरान जच्चा-बच्चा की अनदेखी, लापरवाह इलाज और मरीजों के मेडिकल रिकॉर्ड गायब करने जैसे गंभीर आरोप लगते रहे हैं। बावजूद इसके अस्पताल प्रशासन ने कभी जिम्मेदारी नहीं ली, और अब एक और मां की जान इसी प्रणाली की भेंट चढ़ गई है।
गढ़ावग गांव की रहने वाली 27 वर्षीय अर्चना शर्मा ने गुरुवार सुबह करीब 11:30 बजे सीजेरियन ऑपरेशन के जरिए एक बेटे को जन्म दिया था। ऑपरेशन सफल रहा और परिवार ने राहत की सांस ली। लेकिन यह राहत चंद घंटों की मेहमान साबित हुई। शुक्रवार सुबह करीब 8:30 बजे अर्चना की अचानक मौत हो गई। यह केवल एक संयोग नहीं, बल्कि लापरवाही का वह उदाहरण है जिसकी आशंका परिजन पहले से जता रहे थे।

परिजनों का आरोप है कि शुक्रवार सुबह नर्सिंग स्टाफ ने अर्चना को जबरन दूसरे कमरे में पैदल चलकर जाने को कहा। वह सीजेरियन ऑपरेशन के बाद बेहद कमजोर थी, लेकिन बावजूद इसके उसे उठाने की कोशिश की गई। इस दौरान उसे चक्कर आया, ब्लीडिंग शुरू हो गई और कुछ ही मिनटों में उसकी मौत हो गई। अस्पताल में न तो समय रहते प्राथमिक उपचार दिया गया, न ही ब्लीडिंग को रोका गया। ऑपरेशन के बाद निगरानी की घोर कमी और संवेदनहीन व्यवहार ने एक स्वस्थ मां को मौत के मुंह में धकेल दिया।
परिजनों का गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि अर्चना को ICU या विशेष निगरानी में रखने की कोई व्यवस्था नहीं की गई। सीजेरियन के बाद आमतौर पर डॉक्टर 24 से 48 घंटे तक विशेष देखरेख की सलाह देते हैं, लेकिन KNH अस्पताल ने इस प्राथमिक जिम्मेदारी को भी नजरअंदाज कर दिया। यह न सिर्फ मेडिकल प्रोटोकॉल का उल्लंघन है, बल्कि मानवीयता की खुली हत्या भी है।
KNH के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. सुंदर सिंह नेगी ने हर बार की तरह इस बार भी वही घिसा-पिटा बयान दिया — “महिला की अचानक मौत हो गई। सुबह तक वह सामान्य थी और रूटीन के तहत शिफ्ट किया जा रहा था।” अस्पताल प्रशासन ने इस परंपरागत प्रतिक्रिया के साथ एक बार फिर पल्ला झाड़ लिया और ‘इंटरनल इंक्वायरी’ के आदेश देकर अपनी जिम्मेदारी खत्म मान ली।
लेकिन सवाल यह है - हर बार 'अचानक मौत' का बहाना आखिर क्यों? क्या इस शब्द के पीछे छुपी जा रही है लापरवाही, गैरजिम्मेदारी और सिस्टम की विफलता ? क्या अस्पताल की चारदीवारी में आम नागरिकों की जान यूं ही दम तोड़ती रहेगी और प्रशासन हर बार जांच रिपोर्ट की आड़ में सच्चाई से मुंह मोड़ता रहेगा ?
इस घटना के बाद अर्चना का परिवार पूरी तरह टूट चुका है। अब एक नवजात शिशु और एक चार वर्षीय बच्ची मां की ममता से वंचित हो चुके हैं। परिजनों ने मांग की है कि दोषी डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ को निलंबित किया जाए और उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई हो। परिवार का स्पष्ट कहना है कि यह महज दुर्घटना नहीं, बल्कि सुनियोजित लापरवाही है जिसकी कीमत उन्हें अपनों की जान देकर चुकानी पड़ी है।
KNH की यह एक और शर्मनाक घटना यह दर्शाती है कि सरकारी अस्पतालों में आमजन की जान की कोई कीमत नहीं रह गई है। न कोई जिम्मेदार होता है, न कोई जवाबदेह। एक मां की मौत को महज “दुर्भाग्य” बताकर प्रशासन एक बार फिर अपने दायित्व से भाग रहा है। लेकिन अब सवाल उठना ज़रूरी है - क्या हर मौत के बाद बस एक ‘इंटरनल जांच’ ही काफी है ? या अब वक्त आ गया है कि ऐसे संस्थानों को जवाबदेह बनाया जाए ?
यह मामला अब 'इंसाफ बनाम सिस्टम' की लड़ाई बन चुका है। हिमाचल का आम आदमी यह मांग करता है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच करवाई जाए, और तीन दिन की ‘रुटीन रिपोर्टिंग’ की जगह दोषियों को चिन्हित कर सार्वजनिक रूप से सजा दी जाए। ताकि आने वाले दिनों में कोई और मां, कोई और परिवार इस दर्द से न गुज़रे।