हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मंदिरों के धन और प्रबंधन पर सख्त दिशा-निर्देश जारी कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि मंदिर का पैसा सरकार का नहीं, बल्कि देवता की संपत्ति है, और ट्रस्टी केवल उसका संरक्षक है। भक्तों के दान का उपयोग अब केवल धार्मिक, सामाजिक और शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए ही होगा, जबकि निजी लाभ, सरकारी निर्माण या राजनीतिक गतिविधियों पर खर्च सख्त मना है। पढ़ें पूरी खबर..

शिमला: (HD News); हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मंदिरों के धन और प्रबंधन पर सख्त दिशा-निर्देश जारी करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि मंदिर का पैसा देवता की संपत्ति है, सरकार का नहीं, और ट्रस्टी केवल उसका संरक्षक है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और राकेश कैंथला की पीठ ने कश्मीर चंद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य मामले में यह निर्णय सुनाते हुए कहा कि मंदिर के धन का दुरुपयोग आपराधिक अंधविश्वास के दायरे में आता है।
🔹 मंदिरों के धन का सही उपयोग अनिवार्य
अदालत ने आदेश दिया कि मंदिरों को अपनी मासिक आय, परियोजनाओं का विवरण और ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से नोटिस बोर्ड या वेबसाइट पर प्रदर्शित करना होगा। भक्तों के दान का उपयोग केवल धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। इसके अलावा, मंदिर के धन का इस्तेमाल शिक्षा, सामाजिक सुधार, बुनियादी ढांचा और तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए किया जाना अनिवार्य होगा।

🔹 सख्त रोकें: व्यक्तिगत लाभ या सरकारी खर्च पर इस्तेमाल नहीं
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मंदिर का धन सड़कों, पुलों, सार्वजनिक भवनों या निजी उद्योगों में निवेश के लिए नहीं इस्तेमाल किया जा सकता। मंदिरों के वीआईपी अतिथियों के लिए उपहार, प्रसाद या अन्य खर्चों पर भी रोक लगाई गई है। अंतरधार्मिक, राजनीतिक या निजी गतिविधियों पर मंदिर का पैसा खर्च करना कठोर रूप से निषिद्ध रहेगा।

🔹 हिमाचल के प्रमुख मंदिरों की आय
भाषा एवं संस्कृति विभाग की रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल के 12 प्रमुख मंदिरों ने पिछले 10 वर्षों में 361 करोड़ रुपये की आय अर्जित की। इनमें ब्रजेश्वरी मंदिर (कांगड़ा), शूलिनी मंदिर (सोलन), हनोगी माता (मंडी), महामृत्युंजय मंदिर (सदर मंडी), ठाकुरद्वारा मंदिर (पांवटा), भीमाकाली मंदिर (सराहन), हनुमान मंदिर (जाखू), तारा देवी मंदिर (शिमला), संकटमोचन (शिमला), बाबा बालक नाथ मंदिर (दियोटसिद्ध), ज्वालामुखी मंदिर और राम गोपाल मंदिर (कांगड़ा) शामिल हैं।

🔹 भेदभाव और सामाजिक सुधार के लिए दिशा
हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि मंदिरों को छुआछूत और जातिगत भेदभाव को खत्म करने वाली गतिविधियों, जैसे अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिए। न्यायालय ने रामायण और प्राचीन भारतीय समाज के उदाहरणों से यह स्पष्ट किया कि सत्यवान-सावित्री, शबरी-निषादराज, दुष्यंत-शकुंतला जैसे कथानक हमें जाति, लिंग या स्थिति के आधार पर भेदभाव से बचने का संदेश देते हैं।

🔹 हिमाचल हाईकोर्ट का यह आदेश भक्तों और मंदिर प्रबंधन दोनों के लिए सख्त चेतावनी और मार्गदर्शन है। मंदिरों का धन अब पूरी तरह पारदर्शिता, धार्मिक उद्देश्य और सामाजिक सुधार के लिए उपयोग होगा। ट्रस्टी केवल संरक्षक हैं, और किसी भी दुरुपयोग पर कानूनी कार्रवाई तय है।
