भाई दूज का पर्व भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के प्रेम, स्नेह और विश्वास का अनोखा उत्सव माना जाता है। यह दीपावली के ठीक दो दिन बाद मनाया जाता है और इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु और समृद्धि की कामना करती हैं, जबकि भाई अपनी बहनों की रक्षा और स्नेह का वचन देते हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है - क्योंकि यह पारिवारिक संबंधों में प्रेम, सम्मान और एकता की भावना को सशक्त बनाता है। पढ़ें विस्तार से..
शिमला (HD News): दीपावली के पांच दिवसीय उत्सव का समापन भाई दूज के पावन पर्व के साथ होता है। यह दिन भाई-बहन के अटूट रिश्ते, स्नेह, प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। दीपावली के ठीक दो दिन बाद मनाया जाने वाला यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आता है, इसलिए इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं, वहीं भाई अपनी बहन की रक्षा और स्नेह का वचन देते हैं।

भाई दूज की आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं..
भाई दूज केवल एक पारिवारिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह उस सांस्कृतिक बंधन का प्रतीक है जिसने भारतीय समाज में रिश्तों की गरिमा और आत्मीयता को पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवित रखा है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि भले ही समय बदल जाए, प्रेम और संबंधों की महक कभी फीकी नहीं पड़ती।

भाई दूज 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त :
इस वर्ष भाई दूज का पर्व 23 अक्टूबर 2025 (मंगलवार) को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 22 अक्टूबर की रात 8 बजकर 16 मिनट से आरंभ होकर 23 अक्टूबर की रात 10 बजकर 46 मिनट तक रहेगी।
भाई दूज का शुभ मुहूर्त व समय 
🕉️ भाई दूज 2025 शुभ मुहूर्त
हिंदू धर्म में उदयातिथि का विशेष महत्व होता है, इसलिए पर्व का उत्सव 23 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा। तिलक और पूजन का शुभ मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 13 मिनट से 3 बजकर 28 मिनट तक रहेगा। इन पवित्र क्षणों में बहनों द्वारा किया गया तिलक भाई के जीवन में मंगलता, दीर्घायु और समृद्धि लाता है।

भाई दूज का महत्व — प्रेम और आशीर्वाद का उत्सव :
भाई दूज पर्व उस पवित्र बंधन का उत्सव है जिसमें स्नेह और सुरक्षा का भाव समाहित है। इस दिन बहनें व्रत रखकर अपने भाइयों के दीर्घायु जीवन और समृद्धि की प्रार्थना करती हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार देकर स्नेह, कृतज्ञता और संरक्षण का वचन देते हैं। यह त्योहार भारतीय परिवार व्यवस्था की उस आत्मीयता का प्रतीक है, जहां स्नेह, समर्पण और परस्पर आदर जीवन का अभिन्न अंग हैं।
भाई दूज हमें यह भी सिखाता है कि आधुनिक जीवन की व्यस्तता में भी पारिवारिक संबंधों को समय देना और उन्हें सहेजना आवश्यक है। यह त्योहार प्रेम, सहयोग और विश्वास का संदेश देता है — क्योंकि यही रिश्तों की असली शक्ति है।

भाई दूज की पौराणिक कथा — यम और यमुना का पवित्र मिलन -
भाई दूज से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कथा सूर्यदेव की पुत्री यमुना और उनके भाई यमराज की है। कथा के अनुसार, यमुना अपने भाई यमराज से अत्यंत स्नेह करती थीं और उन्हें बार-बार अपने घर आने का निमंत्रण देती थीं। यमराज अपने कर्तव्यों में व्यस्त होने के कारण उनकी इच्छा पूरी नहीं कर पाते थे।
एक दिन, यमराज ने अपनी बहन की मनुहार स्वीकार की और कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन उसके घर पहुंचे। यमुना ने हर्षित होकर अपने भाई का तिलक किया, दीप जलाया और प्रेमपूर्वक भोजन कराया। यमराज अपनी बहन के स्नेह से प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि इस दिन जो भी भाई अपनी बहन से तिलक करवाएगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा और वह दीर्घायु व सुखी जीवन प्राप्त करेगा।
इसी वरदान के कारण इस पर्व को यम द्वितीया कहा जाता है। यह कथा आज भी भाई-बहन के प्रेम, श्रद्धा और समर्पण की अमर मिसाल बनी हुई है।
भाई दूज की पूजा विधि — परंपरा और भावनाओं का संगम -
भाई दूज की पूजा में शुद्धता, आस्था और स्नेह का विशेष महत्व है। इस दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। संभव हो तो यमुना या किसी पवित्र नदी में स्नान करना अत्यंत शुभ माना गया है।
इसके बाद बहनें मिट्टी या गोबर से दूज का चौक बनाकर भगवान गणेश और यम देवता की पूजा करें। भाई को लकड़ी के पाटे पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर बैठाएं।
फिर निम्न विधि से पूजा करें —
- भाई के माथे पर रोली, हल्दी और चावल से तिलक लगाएं।
- भाई के दाहिने हाथ में कलावा बांधें।
- मिठाई खिलाएं और घी का दीपक जलाकर आरती करें।
- भाई की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करें।
- भाई, बहन के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें और उपहार अर्पित करें।
यह अनुष्ठान केवल पूजा भर नहीं, बल्कि उस भावनात्मक रिश्ते का प्रतीक है जिसमें बहन का स्नेह और भाई का वचन एक-दूसरे को पूर्णता प्रदान करते हैं।
आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश -
भाई दूज हमें यह संदेश देता है कि प्रेम, विश्वास और समर्पण से ही परिवार और समाज का आधार मजबूत होता है। यह पर्व आधुनिक जीवन में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना सदियों पहले था — क्योंकि रिश्तों का मोल समय नहीं, भावनाएं तय करती हैं।
भाई दूज हर उस भाई-बहन को जोड़ता है जो एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ रहते हैं, चाहे उनके बीच दूरी ही क्यों न हो। यह दिन याद दिलाता है कि प्रेम और परिवार ही जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति हैं।
विशेष आयोजन : श्री राधा कृष्ण मंदिर, शिमला -
भाई दूज के शुभ अवसर पर श्री राधा कृष्ण मंदिर, शिमला में विशेष पूजा-अर्चना और श्रृंगार दर्शन का आयोजन किया गया है। भक्तगण बड़ी संख्या में पहुंचकर भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के दिव्य दर्शन कर रहे हैं। मंदिर परिसर में दीप जलाने और आरती में सम्मिलित होने के लिए श्रद्धालुओं का उत्साह चरम पर है।
भाई दूज केवल एक पर्व नहीं, बल्कि वह भावना है जो भाई और बहन को स्नेह, संरक्षण और विश्वास की डोर से जोड़ती है। दीपावली के बाद आने वाला यह त्यौहार प्रकाश, प्रेम और परिवार की ऊष्मा का प्रतीक है। यह दिन हमें अपने रिश्तों की अहमियत समझने और उन्हें सहेजने की प्रेरणा देता है।
डिस्क्लेमर (Disclaimer) - इस लेख में दी गई जानकारी प्रामाणिक धार्मिक ग्रंथों, पंचांगों और ज्योतिषीय मान्यताओं के आधार पर तैयार की गई है। समय और तिथि स्थानानुसार भिन्न हो सकते हैं। पाठकों से निवेदन है कि किसी भी विशेष पूजा या विधि से पहले अपने स्थानीय पुरोहित या ज्योतिषाचार्य से परामर्श अवश्य करें। इस लेख का उद्देश्य केवल धार्मिक एवं सांस्कृतिक जानकारी प्रदान करना है, न कि किसी प्रकार की आस्था या परंपरा को प्रभावित करना।