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शिमला लक्कड़ बाजार में हरे पेड़ों की कटान पर भड़की जनता, प्रशासन और वन विभाग पर गंभीर सवाल—पढ़ें पूरी खबर.

November 13, 2025 09:42 PM
Om Prakash Thakur

शिमला के लक्कड़ बाजार में हरे-भरे और स्वस्थ देवदार के पेड़ की कटान को लेकर गुरुवार को स्थानीय व्यापारियों व निवासियों का गुस्सा फूट पड़ा। प्रशासन द्वारा पेड़ को “खतरनाक” बताकर एसडीएम स्तर से अनुमति देने के बाद जब कटान शुरू हुई, तो लोगों ने मौके पर अवैज्ञानिक आधार और संभावित पक्षपात का आरोप लगाते हुए कार्रवाई को रोक दिया। पेड़ की असली स्थिति पर सवाल उठाए गए और विभागीय पारदर्शिता पर गंभीर संदेह प्रकट किया गया - पढें विस्तार से -

शिमला: (HD News); राजधानी शिमला के लक्कड़ बाजार में हरे-भरे पेड़ों की कटान को लेकर गुरुवार को स्थानीय लोगों और व्यापारियों का आक्रोश खुलकर सामने आया। क्षेत्र में प्रशासनिक अनुमति के आधार पर दो पेड़ पहले ही काटे जा चुके थे, लेकिन जैसे ही तीसरे और सबसे बड़े देवदार पर आरी चलने लगी, स्थानीय नागरिक और दुकानदार विरोध में उतर आए और कटान की प्रक्रिया को बीच में ही रुकवा दिया। लोगों का कहना है कि यह पेड़ पूरी तरह स्वस्थ, सीधा और किसी भी प्रकार के खतरे से मुक्त था, लेकिन इसे खतरनाक घोषित करके अनुमति देने का निर्णय गंभीर संदेह खड़ा करता है। घटना सत्संग भवन के समीप हुई, जहां पेड़ को काटने की अनुमति एसडीएम स्तर से जारी की गई थी। स्थानीय लोगों का दावा है कि न तो पेड़ झुका हुआ था और न ही उसमें किसी प्रकार का सड़न या कमजोरी के संकेत थे, जो इसे हटाने की कोई ठोस वजह साबित करते।

दुकानदार रामपाल ने आरोप लगाया कि प्रशासन ने किसी एक व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से इस पेड़ को खतरनाक बताकर कटान की अनुमति दी। उन्होंने बताया कि पेड़ की वास्तविक स्थिति देखने के बाद स्थानीयों ने तुरंत DFO और अन्य संबंधित अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन किसी अधिकारी ने मौके पर आने की जहमत नहीं उठाई। रामपाल के अनुसार यह लापरवाही और अनदेखी सामान्य प्रशासनिक गलती नहीं बल्कि एक “परिस्थिति-जनित लाभ” जैसा मामला प्रतीत होता है, जहां एक स्वस्थ पेड़ की बलि किसी खास व्यक्ति की सुविधा के लिए दी जा रही है। उनका कहना था कि शिमला जैसा पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील शहर, जहां हर हरा पेड़ प्राकृतिक धरोहर माना जाता है, वहां मनमाने तरीके से पेड़ काटना बहुत गंभीर मामला है।

स्थानीय व्यापारी और निवासियों ने भी इस कटान का विरोध करते हुए कहा कि शिमला की सांस्कृतिक और प्राकृतिक पहचान का हिस्सा रहे दशकों पुराने देवदार पेड़ों को बिना वैज्ञानिक सर्वे और स्पष्ट खतरे के प्रमाण के हटाना प्रशासन द्वारा गंभीर भूल है। उनका कहना था कि पेड़ों की स्थिति की आधिकारिक जांच ना तो स्थल पर मौजूद अधिकारियों द्वारा की गई और ना ही किसी विशेषज्ञ टीम ने उसे खतरा घोषित किया। इसके बावजूद पेड़ काटने की अनुमति जारी होना स्थानीय लोगों में विभागीय पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर रहा है। कई व्यापारियों ने यह भी कहा कि यदि विभाग इसी तरह मनमानी कटान जारी रखता है, तो वे इस पूरे मामले को लेकर हाई कोर्ट जाने के लिए बाध्य हो जाएंगे।

इसी बीच सत्संग भवन से जुड़ी संस्था के सचिव जे.आर. वर्मा ने सफाई दी कि पेड़ भविष्य में खतरा बन सकता था, इसलिए प्रशासन से इसे काटने का आग्रह किया गया था। वर्मा का दावा है कि अनुमति पूरी प्रक्रिया के तहत ली गई, लेकिन स्थानीय नागरिकों और व्यापारियों ने उनके बयान को खारिज करते हुए कहा कि यह “भविष्य के खतरे” का तर्क केवल एक औपचारिकता है, जबकि पेड़ की वास्तविक स्थिति किसी प्रकार की जोखिम की ओर इशारा नहीं करती थी। क्षेत्रवासियों ने कहा कि यदि हर स्वस्थ पेड़ को ‘संभावित खतरा’ बताकर काटने की अनुमति मिलती रही तो आने वाले वर्षो में शहर की हरियाली समाप्त हो जाएगी और यह तरीका किसी भी निजी हित को पूरा करने का हथियार बन जाएगा।

स्थानीयों लोगों ने यह आरोप भी लगाया कि प्रशासन और वन विभाग दोहरे मानदंड अपनाने के आदी हो गए हैं। जहां एक ओर स्वस्थ और सुरक्षित पेड़ हटाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वे पेड़ जो वास्तव में खतरा बने हुए हैं, उन्हें वर्षों से नजरअंदाज किया जा रहा है। US क्लब से जोधा निवास मार्ग पर सड़क के बीच खड़ा पुराना देवदार बरसात और बर्फबारी में कई बार वाहनों के टकराने का कारण बना है, लेकिन विभाग ने उसे हटाने के लिए अभी तक कोई कदम नहीं उठाया। इसी तरह स्टेट बैंक लक्कड़ बाजार से भराड़ी की ओर जाने वाले मार्ग पर एक और पेड़ सड़क के ठीक बीच खड़ा है, जिससे रोजाना खतरा बना रहता है, मगर विभाग उसे लेकर भी चुप्पी साधे हुए है। लोगों का कहना है कि जहां कार्रवाई वास्तव में होनी चाहिए, वहां विभाग असहाय बना रहता है, और जहां कोई वास्तविक खतरा नहीं है, वहां पेड़ों को निजी लाभ के लिए काटा जा रहा है।

स्थानीय लोगों ने एकजुट होकर मांग की है कि शहर में पेड़ों की कटान को लेकर पारदर्शी और वैज्ञानिक प्रक्रिया लागू की जाए। उन्होंने कहा कि पेड़ काटने से पहले विशेषज्ञों द्वारा विस्तृत सर्वे, तकनीकी रिपोर्ट और सार्वजनिक जानकारी आवश्यक होनी चाहिए। नागरिकों ने यह भी कहा कि किसी भी अधिकारी को बिना जन-सहमति और बिना खतरे के स्पष्ट प्रमाण के पेड़ काटने की अनुमति देने से रोका जाना चाहिए। स्थानीयों के अनुसार यह मुद्दा केवल एक पेड़ का नहीं बल्कि पूरे शहर की हरियाली, प्रशासनिक जवाबदेही और पर्यावरण संरक्षण की गंभीरता का सवाल है। स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि स्वस्थ पेड़ों को निजी हित में काटा जा रहा है, जबकि वे पेड़ जो वास्तव में दुर्घटना का खतरा बने हुए हैं, वर्षों से विभाग द्वारा नजरअंदाज किए जाते रहे हैं। 

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