रूद्राक्ष का एक अर्थ है रूद्र यानी शिव की आंख या आंख के आंसू। कहते हैं सती की मृत्यु से शिव को बहुत दुख हुआ और उनके आंसू कई जगह बहे। उनसे रूद्राक्ष के बीज उत्पन्न हुआ। रूद्राक्ष स्वयं भगवान शिव ही हैं । इनमें एक अनोखा स्पंदन होता है, साधक की ऊर्जा को सुरक्षित कर देता है। बाहरी शक्तियां उसे परेशान नहीं कर पाती हैं।
ज्योतिष के आधार पर किसी भी ग्रह की शांति के लिए रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। असली रत्न अत्यधिक महंगा होने के कारण हर व्यक्ति उसे धारण नहीं कर सकता है। चंद्र ग्रह के कारण होने वाले रोग या कष्ट हो तो रूद्राक्ष से बिल्कुल दूर हो जाते है। शिव पुराण में कहा गया है कि रूद्राक्ष या इसकी भस्म को धारण करके ‘ऊँ नमः शिवाय’ का जाप कराने वाला मुनष्य शिव रूप हो जाता है।
रूद्राक्ष एक मुखी से लेकर दस मुखी तक होते हैं। 15 और 21 मुखी रूद्राक्ष भी मिलने लगे हैं। यह दुर्लभ होने के साथ महंगे भी होते हैं। रूद्राक्ष के विभिन्न मुखों की पहचान उस पर पाई जाने वाली धार से होती है। नेपाल में एक से 27 मुखी तक के रूद्राक्ष मिलते हैं। रूद्राक्ष पहनने में किसी विशेष सावधानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन उसे धारण करने के बाद शुचिता बरतने की अपेक्षा तो की ही जाती है।
अतः रूद्राक्ष को रात में उतारकर रख देना चाहिए और प्रातः स्नान से निवृत्त होकर मंत्र जाप करके धारण करना चाहिए। रूद्राक्ष में चूंकि दैवीय शक्तियां हैं अतः स्त्रियां भी इसे धारण कर सकती हैं। गौरीशंकर और गौरीगणेश रूद्राक्ष खासकर स्त्रियों के लिए ही हैं।