हिमाचल प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार के हालिया निर्णयों ने एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पहले सैकड़ों स्कूलों को बंद और मर्ज करने के बाद अब 28 स्कूलों का दर्जा घटाया गया है। यह वही प्रदेश है जहां स्व. वीरभद्र सिंह जैसे जननायक मुख्यमंत्रियों ने दूरदराज के इलाकों में एक बच्चे के लिए भी स्कूल खोलने में कभी हिचक नहीं दिखाई थी। आज वही प्रदेश “व्यवस्था परिवर्तन” के नाम पर दर्जनों स्कूलों की पहचान और अस्तित्व से समझौता कर रहा है। सरकार इसे आर्थिक विवशता बता रही है, मगर इसी आर्थिक स्थिति में चेयरमैनों का मानदेय ₹30, 000 से बढ़ाकर ₹1, 30, 000 किया जाना कई सवाल खड़े करता है। क्या यह वास्तव में आर्थिक सुधार की दिशा है या फिर प्राथमिकताओं की परिभाषा ही बदल चुकी है। पढ़ें विस्तार से..

शिमला: (HD News); हिमाचल प्रदेश सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को तर्कसंगत बनाने के नाम पर एक बड़ा कदम उठाया है। राज्य के 28 वरिष्ठ माध्यमिक और उच्च विद्यालयों का दर्जा घटा दिया गया है। शिक्षा विभाग की समीक्षा में पाया गया कि इन स्कूलों में 18 सितंबर 2025 तक विद्यार्थियों की संख्या पांच या उससे कम रही। इसी आधार पर सरकार ने इन स्कूलों का स्तर घटाने का निर्णय लिया और बुधवार को इस संबंध में अधिसूचना जारी की।
अधिसूचना के अनुसार, ऐसे विद्यालयों में मौजूदा कर्मचारियों, कार्यालय अभिलेखों, स्टॉक मदों, स्वीकृत पदों, भूमि एवं भवनों आदि के स्थानांतरण को लेकर अलग से दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे। साथ ही, इन विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों को निकटवर्ती या उनकी पसंद के अन्य विद्यालयों में स्थानांतरित किया जाएगा ताकि उनकी पढ़ाई पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह कदम शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ और व्यावहारिक बनाने के उद्देश्य से उठाया गया है। कम विद्यार्थियों वाले स्कूलों पर होने वाला अतिरिक्त खर्च अब उन क्षेत्रों में उपयोग किया जाएगा, जहां शिक्षा की गुणवत्ता और संसाधनों की वास्तविक आवश्यकता है।
सरकार द्वारा जारी सूची के अनुसार, 12 वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों का दर्जा घटाकर हाई स्कूल किया गया है। इनमें कांगड़ा जिले का जीएसएसएस भौंरा, मंडी का जीएसएसएस चंबी, सिरमौर का बरवास और शिमला जिले के कोटगढ़, जुब्बड़, दमयाना, बोसारी, रत्नाड़ी, कडीवान, झीना, बराच और बाघल विद्यालय शामिल हैं।

इन स्कूलों का दर्जा घटाया गया..
वहीं, 16 उच्च विद्यालयों का दर्जा घटाकर मिडिल स्कूल कर दिया गया है। इनमें कांगड़ा जिले का घरना, मंडी का त्रास्वान, सिरमौर का मलहोटी और शिमला जिले के लिंगजार, चनोग, मुनीष, ब्राल, अलावांग, कुहल, कांडा, जराशी, जनाहन, गैहा, कचेरी, नागान और गाहन विद्यालय शामिल हैं।

शिक्षा विभाग का कहना है कि यह निर्णय विद्यार्थियों की संख्या, संसाधनों की उपलब्धता और क्षेत्रीय शिक्षा संरचना के संतुलन को ध्यान में रखकर लिया गया है। सरकार का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक विद्यार्थी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले और शिक्षकों व अधोसंरचना का समुचित उपयोग हो।

इस निर्णय को प्रदेश में शिक्षा ढांचे के पुनर्गठन की दिशा में एक ठोस कदम के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में स्थानीय लोगों ने इस फैसले पर नाराज़गी भी जताई है और सरकार से मांग की है कि जिन इलाकों में बच्चों की संख्या अस्थायी रूप से घटी है, वहां पुनः समीक्षा की जाए।
राज्य की शिक्षा नीति के फैसले आज हिमाचल के भविष्य की दिशा तय कर रहे हैं। स्कूलों का दर्जा घटाना केवल भवनों या पदों की बात नहीं, बल्कि उस बच्चे की उम्मीदों से जुड़ा निर्णय है जो पहाड़ की किसी घाटी में पढ़ने का सपना देखता है। जब सरकारें आर्थिक मजबूरी का हवाला देकर शिक्षा पर समझौता करती हैं, तो असल में नुकसान किसी नीति का नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों का होता है।
