जुब्बल (शिमला) – साढ़े चार साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रंजू नेगटा ने आखिरकार जुब्बल पंचायत की प्रधान पद की कमान संभाली। 2021 के पंचायत चुनाव में महज एक वोट से हार के बाद उन्होंने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और उच्च न्यायालय ने उनकी जीत सुनिश्चित की। यह घटना न केवल लोकतंत्र में वोट की अहमियत को रेखांकित करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि न्यायपालिका की भूमिका हर नागरिक के हक और सही चुनाव सुनिश्चित करने में निर्णायक होती है।
शिमला : (HD News);जिला शिमला के जुब्बल में शुक्रवार को एसडीएम गुरमीत नेगी ने रंजू नेगटा को प्रधान पद की शपथ दिलाई। रंजू नेगटा को वर्ष 2021 में हुए पंचायत चुनाव में महज एक वोट से हार मिली थी, जिसकी लड़ाई उन्होंने उच्च न्यायालय में लड़ी और आखिरकार जीत हासिल की।
विकास खंड जुब्बल की सारी पंचायत में रंजू नेगटा और अनु रांगटा प्रधान पद के लिए आमने-सामने थीं। 21 जनवरी 2021 को घोषित नतीजों में अनु रांगटा को 247 वोट और रंजू नेगटा को 246 वोट मिले थे। रंजू ने चुनाव परिणाम पर आपत्ति जताते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उनका आरोप था कि उनके पक्ष में पड़े कई वोट अवैध तरीके से खारिज किए गए और कुछ वोट अनुचित रूप से मान्य कर लिए गए।

उच्च न्यायालय ने चुनावी रिकॉर्ड मंगवाकर वोटों की दोबारा गिनती करवाई। रीकाउटिंग के दौरान स्पष्ट हुआ कि अनु रांगटा को 244 और रंजू नेगटा को 245 वोट मिले। 26 सितंबर को न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया और रंजू को सारी पंचायत की प्रधान घोषित किया। न्यायालय के आदेश के अनुसार, 14 अक्टूबर को उपायुक्त शिमला ने अधिसूचना जारी की।
रंजू नेगटा ने कहा कि यह उनके लिए लगभग पांच साल की कानूनी लड़ाई के बाद ऐतिहासिक पल है। उन्होंने कहा, "पांच साल पहले सारी चुनाव में हुई धांधली का अब खुलासा हुआ और न्याय की जीत हुई है।"
हालांकि, उनका कार्यकाल सिर्फ दो माह तक रहेगा क्योंकि दिसंबर या जनवरी में नए पंचायत चुनाव होने हैं।
प्रदेश भर में पंचायत चुनावों में महज 1, 2 या 4 वोटों के अंतर से हार के कई मामले सामने आए, जिनमें वोटों की गिनती में गड़बड़ी हुई थी। अधिकांश उम्मीदवार लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन रंजू नेगटा ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अंततः जीत हासिल की। यह घटना दिखाती है कि हर वोट की अहमियत होती है और न्यायपालिका लोकतंत्र की रक्षा में निर्णायक भूमिका निभाती है। साथ ही यह याद दिलाती है कि वोटों की गिनती में लापरवाही करने वालों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए, ताकि भविष्य में लोकतंत्र और शासन व्यवस्था के साथ कोई खिलवाड़ न कर सके।
