हिमाचल कांग्रेस में नेतृत्व बदलने की लंबी सियासी जद्दोजहद आखिर खत्म हो गई है। करीब एक साल से संगठनात्मक शून्य और खींचतान झेल रही पार्टी ने निर्णायक कदम उठाते हुए रेणुका से विधायक और अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले विनय कुमार को प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी है। विनय कुमार ने तत्काल प्रभाव से विधानसभा उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर नए समीकरणों को और स्पष्ट कर दिया। यह बदलाव न केवल अंदरूनी शक्ति संतुलन को दर्शाता है, बल्कि 2027 विधानसभा चुनावों से पहले दलित वोट बैंक को साधने की हाईकमान की रणनीति भी उजागर करता है। सियासी संकेत साफ हैं- कांग्रेस अब बिखराव नहीं, नियंत्रण और एकजुटता के संदेश के साथ मैदान में उतरना चाहती है। पढ़ें विस्तार से..
शिमला: (HD News); हिमाचल प्रदेश कांग्रेस संगठन में करीब एक साल से चली खींचतान और अनिश्चितता आखिर थम गई है। पार्टी आलाकमान ने लंबे मंथन के बाद अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले रेणुका से विधायक विनय कुमार को प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त करने पर मुहर लगा दी। नियुक्ति के तुरंत बाद ही विनय कुमार ने विधानसभा उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा सौंप दिया, जिसे स्पीकर कुलदीप सिंह पठानिया ने मंजूर भी कर लिया। यह कदम साफ इशारा करता है कि कांग्रेस हाईकमान अब संगठन को पूरी शक्ति और स्पष्ट नेतृत्व रेखा के साथ आगे बढ़ाना चाहता है।

पिछले वर्ष नवंबर में प्रतिभा सिंह का तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के बाद से प्रदेश संगठन भंग चल रहा था और वह कार्यवाहक अध्यक्ष की भूमिका निभा रही थीं। इस अवधि में शिमला संसदीय क्षेत्र से जुड़े पांच बड़े नेताओं - विनय कुमार, शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर, पूर्व अध्यक्ष व राष्ट्रीय प्रवक्ता कुलदीप सिंह राठौर, कसौली विधायक विनोद सुल्तानपुरी और अर्की विधायक संजय अवस्थी को इस पद का प्रमुख दावेदार माना जा रहा था। ऐसे में विनय कुमार के नाम पर सहमति बनना संगठनात्मक और सियासी समीकरणों में अहम बदलाव के संकेत देता है।

कांग्रेस हाईकमान का यह निर्णय केवल संगठनात्मक शून्य को भरने तक सीमित नहीं है, बल्कि 2027 विधानसभा चुनावों की तैयारी में दलित वोट बैंक को साधने की स्पष्ट रणनीति भी दिखाता है। हिमाचल में राजपूतों के बाद अनुसूचित जाति की आबादी सबसे अधिक है, ऐसे में विनय कुमार की ताजपोशी को राजनीतिक रूप से दूरगामी कदम माना जा रहा है। खास बात यह कि विनय कुमार न तो मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के विरोधी खेमे में गिने जाते हैं, न उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री से उनकी दूरी है - बल्कि दोनों से संबंध मधुर बताए जाते हैं। यही नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के भी करीबी रह चुके और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से नियमित मुलाकात रखने वाले विनय कुमार पर किसी भी खेमे का विरोध न होना उनके चयन को और मजबूत करता है।

पंचायती राज और शहरी निकाय चुनावों से ठीक पहले आया यह फैसला कांग्रेस के लिए सांसों में नई हवा जैसा है। एक साल की माथापच्ची, असमंजस और संगठनहीनता के बाद पार्टी को अब नया कप्तान मिल गया है - और अब नजर रहेगी कि विनय कुमार संगठन को कितनी तेजी और कितनी एकजुटता के साथ पटरी पर लाते हैं।