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हिमाचल | शिमला

युग हत्याकांड: इंसाफ की आस में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा पीड़ित परिवार, हाईकोर्ट के फैसले को कड़ी चुनौती, शीर्ष अदालत में न्याय की गुहार - पढ़ें पूरी खबर..

December 12, 2025 09:04 AM
Om Prakash Thakur

राजधानी शिमला के इतिहास में सबसे जघन्य और दिल दहला देने वाले 'युग हत्याकांड' में न्याय की उम्मीद अब देश की सर्वोच्च अदालत पर टिकी है। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा मुख्य आरोपी को बरी करने और दो अन्य दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने के फैसले से असंतुष्ट, मासूम युग के पिता विनोद गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। शीर्ष अदालत ने उनकी विशेष अनुमति याचिका (SLP) को स्वीकार कर लिया है, जिससे पीड़ित परिवार में इंसाफ की आस फिर से जाग उठी है। विनोद गुप्ता का स्पष्ट आरोप है कि हाईकोर्ट ने तकनीकी आधार पर उस आरोपी को बरी कर दिया, जिसकी इस बरबरतापूर्ण हत्या में प्रमुख भूमिका थी।

शिमला: (HD News); राजधानी शिमला को झकझोर कर रख देने वाले बहुचर्चित युग हत्याकांड में न्याय की लड़ाई अब देश की सर्वोच्च अदालत की चौखट तक पहुंच गई है। मासूम युग के पिता विनोद गुप्ता ने हिमाचल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की है, जिसे शीर्ष अदालत ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। यह कदम पीड़ित परिवार के लिए उम्मीद की एक नई किरण है, जो हाईकोर्ट द्वारा आरोपियों को दी गई राहत से आहत था।

हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल और विरोधाभास

विवाद का मुख्य कारण इसी वर्ष सितंबर में आया हिमाचल हाईकोर्ट का वह फैसला है, जिसने निचली अदालत के 'मृत्युदंड' के निर्णय को पूरी तरह पलट दिया। हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए एक आरोपी तेजिंद्र पाल को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया, जबकि दोषी चंद्र शर्मा और विक्रांत बख्शी की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। पीड़ित पिता का स्पष्ट आरोप है कि हत्या की साजिश में जिस शख्स की प्रमुख संलिप्तता थी, उसे ही अदालत ने बरी कर दिया है। गौरतलब है कि 5 सितंबर 2018 को जिला अदालत ने अपराध की जघन्यता को देखते हुए तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी।

दिल दहला देने वाली दरिंदगी की दास्तां

यह मामला केवल एक हत्या का नहीं, बल्कि मानवता को शर्मसार कर देने वाली क्रूरता का है। 14 जून 2014 को शिमला के राम बाजार से 4 वर्षीय मासूम युग का अपहरण किया गया था। सीआईडी की जांच ने खुलासा किया कि दरिंदों ने बच्चे को एक सप्ताह तक भूखा-प्यासा रखकर अमानवीय यातनाएं दीं और अंततः उसे भराड़ी स्थित नगर निगम के पेयजल टैंक में जिंदा फेंक दिया। दो साल बाद, 2016 में आरोपी विक्रांत बख्शी की निशानदेही पर टैंक से युग के कंकाल की बरामदगी ने पूरे प्रदेश को सन्न कर दिया था। 100 से अधिक गवाहों और तमाम सबूतों के बावजूद, अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर है।

यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या शीर्ष अदालत साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन कर दोषियों के लिए कठोरतम सजा सुनिश्चित करती है, ताकि पीड़ित परिवार को 10 साल बाद पूर्ण न्याय मिल सके।

डिस्क्लेमर: यह खबर अदालती दस्तावेजों और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है। मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इस लेख में व्यक्त किए गए विचार और तथ्य सूचनात्मक उद्देश्य के लिए हैं और इसे अंतिम न्यायिक निष्कर्ष नहीं माना जाना चाहिए।

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