कुफ्टा धार बस्ती क्षेत्र में आयोजित भव्य हिन्दू सम्मेलन सामाजिक एकता, सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रबोध का सशक्त मंच बनकर उभरा। हिन्दू सम्मेलन समिति कुफ्टा धार के तत्वावधान में हुए इस आयोजन में समाज के विभिन्न वर्गों की सक्रिय भागीदारी देखने को मिली, जहां विचार, संस्कार और दायित्व बोध के माध्यम से सामाजिक जागरण का स्पष्ट संदेश दिया गया। पढ़ें पूरी खबर.
शिमला: (HD News); हिन्दू सम्मेलन समिति कुफ्टा धार के तत्वावधान में आज कुफ्टा धार बस्ती क्षेत्र में भव्य हिन्दू सम्मेलन का आयोजन किया गया। स्थानीय समाज के विभिन्न वर्गों की उल्लेखनीय भागीदारी के साथ यह कार्यक्रम उत्साह, अनुशासन और सांस्कृतिक गरिमा के वातावरण में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। सम्मेलन का उद्देश्य समाज में संस्कार, एकता और राष्ट्रबोध को सुदृढ़ करना रहा।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता दीप राम गर्ग ने अपने विस्तृत उद्बोधन में समाज जीवन के अनेक महत्वपूर्ण आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण, परिवार प्रबोधन, स्वयं का भाव, सामाजिक समरसता तथा नागरिक कर्तव्य बोध जैसे विषयों पर गहन विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि एक सजग और कर्तव्यनिष्ठ नागरिक ही समाज और राष्ट्र को सही दिशा दे सकता है।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण बच्चों द्वारा प्रस्तुत की गई सरस्वती वंदना रही। इस भावपूर्ण प्रस्तुति ने पूरे वातावरण को आध्यात्मिक और संस्कारमय बना दिया, जिसे उपस्थित जनसमूह ने सराहना के साथ स्वीकार किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता खेम चंद जोशी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में सतेंदर पम्मी उपस्थित रहीं। इसके अतिरिक्त नगर संघ चालक उधम, शिमला विभाग विमर्श प्रमुख एवं हिन्दू सम्मेलन संयोजक अनुज पंत, सह जिला कार्यवाह हरीश, कार्यवाह माधव, नगर अशोक तथा शीतल (प्रान्त प्रबुद्ध महिला सम्पर्क प्रमुख, सेविका समिति) की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।
सम्मेलन का संचालन अनुशासन, शालीनता और सौहार्दपूर्ण वातावरण में किया गया। कार्यक्रम के माध्यम से समाज में सांस्कृतिक चेतना, आपसी समरसता और नागरिक जिम्मेदारियों के प्रति जागरूकता का सशक्त संदेश दिया गया।

कुफ्टा धार में आयोजित यह भव्य हिन्दू सम्मेलन केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने वाला सार्थक प्रयास है। सम्मेलन के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण, पारिवारिक मूल्यों, सामाजिक समरसता और नागरिक कर्तव्यों के प्रति जागरूकता का मजबूत संदेश दिया गया। विचारशील उद्बोधनों, सांस्कृतिक प्रस्तुतियों और अनुशासित आयोजन ने यह स्पष्ट किया कि संगठित और संस्कारयुक्त समाज ही राष्ट्र को सशक्त, समृद्ध और आत्मनिर्भर बना सकता है।