"हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने न्यायपालिका की सख्ती और मानवीय संवेदना का एक अनूठा उदाहरण पेश किया है। कोर्ट ने दो अलग-अलग मगर ऐतिहासिक फैसलों में प्रशासन और सरकार को कड़ा संदेश दिया है। एक तरफ जहाँ शिमला के ऐतिहासिक लोअर बाजार को 'टिक-टिक करते टाइम बम' और अतिक्रमण का अड्डा बनाने वाले रसूखदार दुकानदारों पर कोर्ट का चाबुक चला है, वहीं दूसरी तरफ सिस्टम की बेरुखी झेल रहे एक माली को 20 साल बाद न्याय देकर हजारों अस्थायी कर्मचारियों की उम्मीदें जगा दी हैं। पढ़िए, हाईकोर्ट के वो दो फैसले जिन्होंने आज पूरे प्रदेश में हड़कंप और राहत दोनों का माहौल बना दिया है..."
शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शिमला के लोअर बाजार में लगातार बढ़ते अतिक्रमण, आग के गंभीर खतरे और बुनियादी जनसुविधाओं की कमी को लेकर कड़ा और स्पष्ट रुख अपनाया है। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश जियालाल भारद्वाज की खंडपीठ ने नगर निगम शिमला को निर्देश दिए हैं कि कार्रवाई केवल रेहड़ी-फड़ी वालों (तहबाजारियों) तक सीमित न रहे, बल्कि उन दुकानदारों के खिलाफ भी सख्त कदम उठाए जाएं, जिन्होंने अपनी दुकानों के आगे सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा कर रखा है।

दुकानदार भी दोषी, वेंडरों से वसूली बर्दाश्त नहीं
अदालत ने स्पष्ट टिप्पणी करते हुए कहा कि लोअर बाजार में अतिक्रमण के लिए सिर्फ वेंडर ही जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि कई दुकानदार भी इसमें बराबर के भागीदार हैं। कोर्ट के संज्ञान में आया है कि कुछ दुकानदार अपनी दुकानों के आगे अवैध रूप से लोगों को बैठने की अनुमति देते हैं और बदले में उनसे पैसे वसूलते हैं। अदालत ने दो टूक कहा कि इस तरह की गतिविधियां किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हैं और नगर निगम को ऐसे दुकानदारों के खिलाफ भी कार्रवाई की पूरी छूट है।
150 साल पुरानी इमारतें, आग लगने पर बन सकता है भयावह मंजर
हाईकोर्ट ने लोअर बाजार की भौगोलिक और संरचनात्मक स्थिति पर गंभीर चिंता जताई। अदालत ने कहा कि यह क्षेत्र अत्यंत तंग और भीड़भाड़ वाला है, जहां की अधिकांश इमारतें 150 साल से अधिक पुरानी और लकड़ी की बनी हैं। ऐसे में आग की एक छोटी-सी घटना भी बड़ी आपदा का रूप ले सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आपातकालीन वाहनों की निर्बाध आवाजाही के लिए लोअर बाजार को अतिक्रमण मुक्त रखना अनिवार्य है।

बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव, प्रशासन को समाधान के निर्देश
अदालत के समक्ष यह भी सामने आया कि लोअर बाजार में पीने के पानी, वरिष्ठ नागरिकों व महिलाओं के बैठने के लिए बेंच, कचरा प्रबंधन और आपातकालीन वाहनों की पार्किंग जैसी मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है। कोर्ट ने प्रशासन और नगर निगम को निर्देश दिए हैं कि इन समस्याओं का ठोस समाधान तलाशा जाए। इसके साथ ही पुलिस प्रशासन को भी आदेश दिए गए हैं कि अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई में नगर निगम को हरसंभव सहयोग प्रदान किया जाए। मामले की अगली सुनवाई 10 मार्च 2026 को होगी। यह आदेश वर्ष 2014 में दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान पारित किया गया।
तहबाजारी संगठन की आपत्ति, नया मामला दायर करने की छूट
लोअर बाजार में अतिक्रमण हटाने की नगर निगम की कार्रवाई को लेकर तहबाजारी संगठन ने हाईकोर्ट में आपत्तियां दर्ज कराईं। संगठन की ओर से दलील दी गई कि लोअर बाजार एक राष्ट्रीय बाजार है और प्रशासन की कार्रवाई से सबसे ज्यादा गरीब वेंडर प्रभावित हो रहे हैं। एसोसिएशन ने लोअर बाजार को नो-वेंडिंग जोन घोषित करने की कार्रवाई को रद्द करने की मांग की थी। हालांकि सुनवाई के दौरान तकनीकी खामियां सामने आने पर संगठन ने आवेदन वापस लेने की अनुमति मांगी। अदालत ने भविष्य में उचित कानूनी प्रक्रिया के तहत नया मामला दायर करने की स्वतंत्रता देते हुए आवेदन वापस लेने की अनुमति दे दी।

20 साल से कार्यरत माली को नियमित करने के आदेश, हाईकोर्ट ने शोषण बताया
हाईकोर्ट ने एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में 20 वर्षों से कार्यरत माली को नियमित करने के आदेश दिए हैं। न्यायाधीश संदीप शर्मा की अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी कर्मचारी का वेतन किस फंड से दिया जा रहा है, यह उसकी नियमितीकरण की पात्रता तय करने का आधार नहीं हो सकता। अदालत ने उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता का दावा खारिज किया गया था।
अदालत ने निर्देश दिए कि याचिकाकर्ता को 8 वर्ष की निरंतर सेवा पूरी करने के बाद माली के पद पर नियमित किया जाए। हालांकि याचिकाकर्ता द्वारा अदालत आने में देरी के कारण उसे 9 साल का पिछला बकाया वेतन नहीं मिलेगा, लेकिन यह अवधि वरिष्ठता और अन्य सेवा लाभों के लिए गिनी जाएगी। वित्तीय लाभ याचिका दायर करने की तिथि से 3 वर्ष पूर्व से देय होंगे।
सरकार के तर्क खारिज, लंबे समय तक सेवा लेना शोषण
कोर्ट ने सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया कि वेतन पीटीए फंड से दिया गया था। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता पिछले 20 वर्षों से सरकारी संस्थान की देखरेख में सेवाएं दे रहा है और इतने लंबे समय तक काम लेने के बाद उसे नियमित न करना शोषण के समान है। अदालत ने सैनी राम बनाम हिमाचल प्रदेश सरकार मामले का हवाला देते हुए दोहराया कि केवल वेतन का स्रोत नियमितीकरण तय नहीं कर सकता। याचिकाकर्ता सुरेंद्र कुमार, वर्तमान में राजकीय डिग्री कॉलेज देहरी, कांगड़ा में माली के पद पर कार्यरत हैं।
हाईकोर्ट के इन दोनों फैसलों ने यह साफ कर दिया है कि जनसुरक्षा और कर्मचारियों के मौलिक अधिकारों के साथ समझौता अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लोअर बाजार के मामले में कोर्ट ने जहां भविष्य की किसी बड़ी आपदा को रोकने के लिए प्रशासन की नींद तोड़ी है, वहीं माली के नियमितीकरण का आदेश देकर सरकार को यह याद दिलाया है कि 'फंड की कमी' किसी के जीवन के 20 साल बर्बाद करने का आधार नहीं हो सकती। अब गेंद प्रशासन और सरकार के पाले में है कि वे इन अदालती आदेशों को धरातल पर कितनी ईमानदारी से लागू करते हैं। प्रदेश की जनता और हजारों कर्मचारी अब टकटकी लगाए कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं।"