हिमाचल प्रदेश की राजनीति में जहाँ सत्ता का चेहरा अक्सर औपचारिकताओं और प्रोटोकॉल के पीछे छिपा रहता है, वहीं हाल ही में मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा बेसहारा बच्चों के साथ किया गया एक वीडियो संवाद चर्चा का विषय बना हुआ है। इसे एक ओर 'सुक्खाश्रय योजना' के प्रभावी प्रचार के रूप में देखा जा रहा है, तो दूसरी ओर यह एक 'अभिभावक' मुख्यमंत्री की अपने 'राज्य के बच्चों' के प्रति उस संवेदनशीलता का प्रमाण भी है, जो फाइलों से निकलकर सीधे जनता के दिलों तक पहुँचती है। संवाद के दौरान जब मुख्यमंत्री ने भाइयों के लिए पढ़ाई छोड़ने वाली बहन का हौसला बढ़ाया और चेन्नई में मजदूरी कर रहे उसके नाबालिग भाई को वापस लाकर शिक्षा देने का संकल्प लिया, तो यह स्पष्ट हो गया कि सरकारी योजनाएं केवल शब्दों का जाल नहीं, बल्कि बदलती जिंदगियों की हकीकत हैं। भले ही आलोचक इसे चुनावी या राजनैतिक ब्रैंडिंग का हिस्सा मानें, लेकिन इस 'प्रचार' के पीछे छिपी करुणा ने उन तीन मासूम जिंदगियों को वह संबल दिया है, जिसकी कमी उन्हें वर्षों से खल रही थी। पढ़ें विस्तार से -
शिमला: (HD News); हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एक बार फिर राजनीति से ऊपर उठकर मानवीय संवेदनाओं की एक नई मिसाल पेश की है। मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉल के माध्यम से प्रदेश के उन बेसहारा बच्चों से संवाद किया, जिनके जीवन से माता-पिता का साया उठ चुका है। इस बातचीत के दौरान मुख्यमंत्री किसी सत्तासीन राजनेता के रूप में नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार और संवेदनशील अभिभावक की भूमिका में नजर आए। उन्होंने बच्चों को स्पष्ट संदेश दिया कि अब वे खुद को अनाथ न समझें, क्योंकि 'राज्य' ही उनका परिवार है और उनकी हर जरूरत सरकार की प्राथमिकता है।

बहन के त्याग और संघर्ष ने किया भावुक:
संवाद के दौरान एक हृदयस्पर्शी क्षण तब आया जब एक 18 वर्षीय बेटी ने अपनी आपबीती सुनाई। उसने बताया कि छोटे भाइयों की परवरिश और देखभाल के लिए उसने 10वीं के बाद अपनी पढ़ाई की बलि दे दी। इस मार्मिक संघर्ष को सुनकर मुख्यमंत्री भावुक हो उठे। उन्होंने तुरंत बेटी को ढांढस बंधाया और कहा कि उसे अब अपने भविष्य की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। मुख्यमंत्री ने उसे पुन: पढ़ाई शुरू करने (प्लस वन और प्लस टू) के लिए प्रेरित किया और घोषणा की कि उसकी और उसके भाइयों की शिक्षा, हॉस्टल और उज्ज्वल भविष्य का पूरा खर्च सरकार वहन करेगी।
चेन्नई से होगी भाई की वापसी; कर्ज के बोझ से मिलेगी मुक्ति:
मुख्यमंत्री ने बातचीत के दौरान व्यवस्था परिवर्तन का साहसिक परिचय देते हुए कड़े निर्देश जारी किए। जब उन्हें पता चला कि परिवार का एक 15 वर्षीय नाबालिग भाई अपनी आजीविका के लिए चेन्नई में बोझा ढोने जैसा कठिन कार्य कर रहा है, तो उन्होंने तुरंत प्रशासन को उसे वापस हिमाचल लाने और शिक्षा से जोड़ने के आदेश दिए। साथ ही, बच्चों की जमीन पर बकाया ₹95, 000 के कर्ज की जानकारी मिलते ही मुख्यमंत्री ने डीसी को इस समस्या का तुरंत समाधान करने और बच्चों को आर्थिक गुलामी से मुक्त कराने के निर्देश दिए।

'चिल्ड्रन ऑफ द स्टेट' का सपना हो रहा साकार:
मुख्यमंत्री ने दोहराया कि हिमाचल प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है, जिसने कानून बनाकर बेसहारा बच्चों को 'चिल्ड्रन ऑफ द स्टेट' का दर्जा दिया है। उन्होंने बच्चों से कहा कि वे केवल बड़े सपने देखें और कड़ी मेहनत करें, क्योंकि उनकी राह में आने वाली हर वित्तीय और सामाजिक बाधा को 'सुक्खाश्रय योजना' के माध्यम से दूर किया जाएगा। यह संवाद केवल एक सरकारी आश्वासन नहीं था, बल्कि उन हजारों बेसहारा बच्चों के लिए आशा की एक नई किरण है, जो अब सरकार के संरक्षण में एक सम्मानजनक और सुरक्षित जीवन की ओर अग्रसर हैं।

कुल मिलाकर, भले ही इसे सुक्खाश्रय योजना के प्रचार के रूप में देखा जाए, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि यह 'प्रचार' उन बच्चों के लिए एक जीवनदान (Lifeline) के रूप में आया है। यदि सरकारी प्रचार के माध्यम से एक नाबालिग भाई मजदूरी के दलदल से बाहर निकलता है और एक बेटी दोबारा स्कूल पहुँचती है, तो यह 'प्रचार' और 'जनहित' के बीच एक सकारात्मक संतुलन स्थापित करता है। इस विश्लेषण का उद्देश्य किसी राजनैतिक विचारधारा का समर्थन या विरोध करना नहीं है, बल्कि यह केवल प्रशासनिक निर्णयों के सामाजिक महत्व का एक स्वतंत्र मूल्यांकन प्रस्तुत करता है।