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हिमाचल | शिमला

शिमला IGMC कांड: डॉक्टर की 'हैवानियत' कैमरे में कैद, मरीज की ऑक्सीजन छीनी, फिर बरसाए थप्पड़! रक्षक की 'हैवानियत' पर सुलगा जन-आक्रोश; सस्पेंशन नहीं, अब बर्खास्तगी और जेल की मांग पर अड़े लोग - पढ़ें पूरी खबर..

December 22, 2025 08:09 PM
Om Prakash Thakur

हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित स्वास्थ्य संस्थान IGMC के गलियारों से आज एक ऐसी खौफनाक तस्वीर निकलकर सामने आई है, जिसने न केवल 'देवभूमि' के माथे पर कलंक लगा दिया है, बल्कि 'धरती के भगवान' कहे जाने वाले डॉक्टरों के चेहरे से मसीहाई का नकाब भी बेरहमी से नोच लिया है। जिसे लोग 'इलाज का मंदिर' समझकर अपनी जान सौंपने आते हैं, वहाँ मानवता को लहूलुहान करने वाला यह मंजर किसी भी संवेदनशील इंसान की रूह कंपा देने के लिए काफी है। सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैला यह वीडियो महज एक 'विवाद' नहीं, बल्कि साक्षात 'एक असहाय की हत्या की कोशिश' का वो जीवंत प्रमाण है, जिसने पूरे स्वास्थ्य सिस्टम की नैतिकता को कठघरे में खड़ा कर दिया है। पढ़ें विस्तार से..

शिमला: (HD News); हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान, इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (IGMC) में एक डॉक्टर द्वारा मरीज की सरेआम पिटाई ने 'देवभूमि' के माथे पर कलंक लगा दिया है। अस्पताल के सफेद गलियारों में जहाँ मरीजों को जीवनदान की उम्मीद होती है, वहाँ एक लाचार व्यक्ति को जिस तरह जलील और लहूलुहान किया गया, उसने पूरे प्रदेश के स्वास्थ्य सिस्टम की नैतिकता को कठघरे में खड़ा कर दिया है। कैमरे में कैद हुई डॉक्टर की यह 'गुंडई' अब केवल एक अस्पताल का विवाद नहीं, बल्कि आम जनता के सम्मान और सुरक्षा की लड़ाई बन चुकी है।

सांसों के लिए जद्दोजहद या अपराध? घटना की रोंगटे खड़े करने वाली सच्चाई

घटना की शुरुआत तब हुई जब पीड़ित मरीज, अर्जुन पंवार, अपनी गंभीर बीमारी की जांच (एंडोस्कोपी) के लिए IGMC पहुँचे थे। एंडोस्कोपी जैसी कष्टदायक प्रक्रिया से गुजरने के बाद अर्जुन को सांस लेने में भारी तकलीफ महसूस हुई। दर्द और कमजोरी से बेहाल मरीज राहत पाने के लिए पास के वार्ड में एक खाली पड़े बेड पर कुछ पल के लिए लेट गया। एक तड़पते मरीज का बेड का सहारा लेना वहां तैनात डॉक्टर को इतना नागवार गुजरा कि उसने अपनी पद की गरिमा और डॉक्टरी शपथ (Hippocratic Oath) को ताक पर रखकर मरीज पर थप्पड़ों की बरसात कर दी। यह कृत्य बताता है कि सफेद कोट के पीछे छिपी संवेदनहीनता कितनी भयानक हो सकती है।

वायरल वीडियो ने छीना प्रशासन का 'डिफेंस', अब आर-पार की जंग

शायद यह मामला भी रसूखदार फाइलों में दब जाता, यदि प्रत्यक्षदर्शियों ने इस हैवानियत का वीडियो न बनाया होता। सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैले इस वीडियो ने अस्पताल प्रशासन के उस 'ढुलमुल रवैये' की पोल खोल दी है, जो अक्सर ऐसी घटनाओं को 'आपसी कहासुनी' बताकर रफा-दफा कर देता है। वीडियो में साफ दिख रहा है कि मरीज की बेबसी के आगे डॉक्टर का अहंकार चरम पर था। इस विजुअल सबूत के बाद अब जनता का धैर्य जवाब दे गया है और अस्पताल परिसर 'इंसाफ' के नारों से गूंज उठा है।

'सस्पेंशन' महज एक छलावा, अब बर्खास्तगी और गिरफ्तारी से कम कुछ मंजूर नहीं

अस्पताल प्रशासन ने दबाव बढ़ते देख आरोपी डॉक्टर को 'सस्पेंड' कर दिया है, लेकिन प्रदर्शनकारी इसे न्याय नहीं, बल्कि केवल मामले को ठंडे बस्ते में डालने की साजिश मान रहे हैं। परिजनों और स्थानीय लोगों का आक्रोश इस बात पर है कि किसी प्रशासनिक अधिकारी या डॉक्टर के लिए कानून अलग क्यों हो? प्रदर्शनकारियों की मांग अब दो टूक है- आरोपी डॉक्टर और मारपीट में उसके सहयोगी डॉक्टर की सेवाएँ तुरंत बर्खास्त (Termination) की जाएं और उसके खिलाफ आईपीसी की गंभीर धाराओं के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तारी की जाए। लोगों का कहना है कि जब तक यह अपराधी डॉक्टर सलाखों के पीछे नहीं जाते, आंदोलन जारी रहेगा।

गंभीर सवाल: क्या रसूख के आगे घुटने टेक देगी न्याय व्यवस्था?

यह घटना हमारे सिस्टम से कुछ तीखे सवाल पूछती है: क्या अस्पताल अब इलाज के केंद्र नहीं, बल्कि यातना शिविर बन गए हैं? क्या सफेद कोट पहन लेने मात्र से किसी को एक असहाय नागरिक पर हाथ उठाने का लाइसेंस मिल जाता है? प्रशासन के ढुलमुल रवैये ने लोगों के मन में यह शंका पैदा कर दी है कि क्या कानून सबके लिए बराबर है या ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के लिए न्याय की परिभाषा अलग है ?

IGMC प्रशासन और सरकार के लिए यह केवल एक अनुशासनात्मक कार्रवाई का मामला नहीं है, बल्कि यह खोते हुए जन-विश्वास को बचाने की परीक्षा है। यदि इस बार भी 'लीपापोती' की गई, तो भविष्य में कोई भी आम नागरिक सरकारी अस्पतालों में खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पाएगा। शिमला की जनता अब जवाब नहीं, बल्कि सख्त से सख्त 'एक्शन' चाहती है।

बता दें कि "डिग्रियां और सफेद कोट किसी को 'इंसान' तो बना सकते हैं, लेकिन 'इंसानियत' अंदर से आती है। जब रक्षक ही भक्षक बनकर किसी की उखड़ती सांसों पर प्रहार करने लगे, तो समझ लेना चाहिए कि समाज का नैतिक पतन चरम पर है। न्याय की लड़ाई केवल एक मरीज की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह हर उस आम आदमी की लड़ाई है जो अस्पताल की दहलीज पर विश्वास लेकर आता है। चुप रहना अपराध को बढ़ावा देना है - उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक अहंकार की इस दीवार को न्याय के हथौड़े से तोड़ न दिया जाए।"

 

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