हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान IGMC में मानवता को शर्मसार करने वाले 'थप्पड़ कांड' का सच अब खुद आरोपी की जुबान से बाहर आ गया है। आरोपी डॉ. राघव ने अपने वीडियो बयान में यह स्वीकार कर लिया है कि अस्पताल के वार्ड में इलाज के नाम पर जो 'दंगल' सजा, उसकी पहली चिंगारी उनकी अपनी बदजुबानी और 'तू-तड़ाक' वाली मानसिकता से भड़की थी। यह रिपोर्ट केवल एक मारपीट की कहानी नहीं है, बल्कि सफेद कोट के पीछे छिपे उस रसूखदार अहंकार का पर्दाफाश है, जो एक बीमार और लाचार मरीज को इंसान समझने तक की फुर्सत नहीं रखता। जब रक्षक ही अपनी मर्यादा भूलकर लात-घूंसों पर उतर आए, तो इसे 'इलाज' नहीं, सरेआम 'गुंडागर्दी' कहा जाना चाहिए। पढ़ें विस्तार से -
जागरूक हिमाचल: अब हर मरीज की पैनी नजर, मोबाइल के कैमरे से बेनकाब होंगे अस्पताल के 'सफेदपोश' गुंडे..
शिमला: (HD News); शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (IGMC) में एक लाचार मरीज के साथ हुई दरिंदगी ने 'धरती के भगवान' कहे जाने वाले डॉक्टरों के चेहरे से नकाब उतार दिया है। जिस वायरल वीडियो ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया था, उसमें अब मुख्य आरोपी डॉ. राघव का जो वीडियो बयान सामने आया है, वह न्याय की मांग कर रही जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। डॉक्टर ने खुद स्वीकार किया है कि विवाद की जड़ उसकी अपनी ज़ुबान और बदतमीजी थी।
अहंकार की पराकाष्ठा: 'तू' से शुरू हुई डॉक्टर की 'दादागिरी'
डॉ. राघव ने अपने बयान में खुद यह माना है कि रूटीन चेकअप के दौरान उन्होंने मरीज से "तू-तड़ाक" में बात की। सवाल यह उठता है कि क्या डिग्री मिलते ही डॉक्टर अपनी तहजीब और मर्यादा भूल जाते हैं? एक मरीज जो अस्पताल में अपनी सांसें और स्वास्थ्य बचाने आता है, क्या उसे अस्पताल में सम्मान पाने का भी हक नहीं? जब मरीज ने डॉक्टर की इस बदतमीजी पर आपत्ति जताई, तो डॉक्टर ने अपनी गलती सुधारने के बजाय लात-घूंसों से उसका 'इलाज' करना शुरू कर दिया। यह किसी पेशेवर डॉक्टर का व्यवहार नहीं, बल्कि सड़क छाप गुंडों जैसी मानसिकता को दर्शाता है।
सफेद कोट का मतलब 'लाइसेंस टू किल' नहीं!
वीडियो बयान में डॉक्टर जिस तरह से अपनी सफाई पेश कर रहा है, उससे साफ है कि उसे अपनी गलती का कोई पछतावा नहीं है। बहस का जवाब कभी भी शारीरिक हिंसा नहीं हो सकता। यदि मरीज बदसलूकी कर रहा था, तो IGMC जैसे बड़े संस्थान में सुरक्षाकर्मियों की फौज खड़ी रहती है, प्रशासनिक अधिकारी मौजूद हैं और कानून का दरवाजा हमेशा खुला था। लेकिन डॉ. राघव ने कानून को अपनी जेब में समझा और एक बीमार व्यक्ति पर टूट पड़े। सफेद कोट पहनने का मतलब यह कतई नहीं है कि आपको किसी की खाल उधेड़ने या उस पर हाथ उठाने का लाइसेंस मिल गया है।

जांच का ढोंग नहीं, सलाखों के पीछे हो आरोपी
इस मामले ने साफ कर दिया है कि IGMC में कुछ डॉक्टर सेवा भाव नहीं, बल्कि 'अहंकार' के नशे में चूर होकर काम कर रहे हैं। जिस तरह से एक निहत्थे मरीज को पीटा गया, वह पहली नजर में ही एक गंभीर आपराधिक कृत्य है। ऐसे में केवल विभागीय निलंबन (Suspension) की खानापूर्ति करना जनता की आंखों में धूल झोंकने जैसा है। यह मामला सीधे तौर पर 'अटेम्प्ट टू मर्डर' और गंभीर चोट पहुँचाने का बनता है। प्रशासन को चाहिए कि जांच के नाम पर मामले को लंबा खींचने के बजाय, ऐसे हिंसक तत्वों को तुरंत सलाखों के पीछे भेजे ताकि भविष्य में कोई दूसरा डॉक्टर रक्षक से भक्षक बनने की जुर्रत न कर सके।
कानून सबके लिए बराबर, रसूख का न हो असर
अस्पताल प्रशासन और पुलिस को यह समझना होगा कि जनता इस मामले को बहुत करीब से देख रही है। गलती पर गलती करना और फिर खुद को पीड़ित दिखाने का ढोंग करना अब नहीं चलेगा। डॉ. राघव की अपनी स्वीकारोक्ति ने उनकी पूरी डिफेंस की धज्जियां उड़ा दी हैं। जब विवाद की शुरुआत ही डॉक्टर की बदजुबानी से हुई, तो आगे की सारी दलीलें बेमानी हैं। हिमाचल प्रदेश की जनता मांग करती है कि इस 'गुंडागर्दी' का हिसाब कानून की उसी किताब से हो, जिससे एक आम अपराधी का होता है।

बेशर्मी की हद: माफी नहीं, 'विक्टिम कार्ड' खेल रहा रसूखदार
डॉक्टर राघव की करतूत और उनका हिंसक चेहरा आज पूरी दुनिया के सामने जगजाहिर है। वायरल वीडियो चीख-चीख कर गवाही दे रहा है कि किस तरह सफ़ेद कोट की आड़ में एक लाचार मरीज को निशाना बनाया गया। लेकिन हैरानी की बात यह है कि रंगे हाथों पकड़े जाने के बावजूद डॉ. राघव के चेहरे पर रत्ती भर भी पछतावा नहीं है। मरीज और आम जनता से माफी मांगना तो दूर, वह वीडियो बयान जारी कर खुद को 'दंडाधिकारी' (Magistrate) साबित करने पर तुले हैं। यह केवल एक मारपीट नहीं, बल्कि कानून का सरेआम गला घोंटना है। अपनी गलती को सही ठहराने का यह ढोंग बता रहा है कि अहंकार की जड़ें कितनी गहरी हैं।
IGMC का 'सफ़ेद चोला' और समर्थन में खड़ा अहंकार का कुनबा
शर्मनाक तो यह है कि कुछ अन्य डॉक्टर भी इस सरेआम हुई गुंडागर्दी की पैरवी में उतर आए हैं। यह साबित करता है कि IGMC के गलियारों में अब 'सेवा' नहीं, बल्कि 'अहंकार' का सिंडिकेट चल रहा है। जब एक अपराधी के समर्थन में पूरा कुनबा खड़ा हो जाए, तो समझ लेना चाहिए कि दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली है। क्या डिग्री मिलते ही ये लोग खुद को संविधान और कानून से ऊपर समझने लगे हैं? आज डॉ. राघव का मुखौटा उतरा है, कल इस 'अहंकार के अस्पताल' में छिपे कई और चेहरे बेनकाब होंगे।

अब जाग चुका है हिमाचल: सावधान! हर मरीज की नज़र आप पर है
इस वीडियो के वायरल होने के बाद अब प्रदेश की जनता और अस्पताल आने वाले मरीज जागरूक हो चुके हैं। अब वह दौर चला गया जब डॉक्टर को 'भगवान' मानकर उनकी हर ज्यादती को चुपचाप सहा जाता था। डॉ. राघव जैसे तत्वों ने उस पवित्र रिश्ते को तार-तार कर दिया है। यह घटना एक चेतावनी है उन तमाम 'अहंकारी' डॉक्टरों के लिए जो रसूख के नशे में चूर हैं - याद रहे, अब हर मोबाइल एक कैमरा है और हर मरीज एक सजग प्रहरी। आज एक बेनकाब हुआ है, कल कतार लंबी हो सकती है। कानून की लाठी जब चलेगी, तो न कोट काम आएगा और न ही रसूख!
