शिमला: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नाम पर बैंकों में उपभोक्ताओं को मिलने वाली सुविधाओं की कटौतियों की दिन प्रतिदिन संख्या बढ़ती जा रही है और शुल्क में इजाफा होता जा रहा है। जिन सुविधाओं के नाम पर यह कटौतियां हो रही उन सुविधाओं में कटौतियां होती जा रही है। फिर चाहे ATM की सुविधा हो या फिर मिनिमम बैलेंस हो या फिर अन्य कई चीजें। किसी भी विषय में जानकारी करने पर बैंक कर्मचारी हाथ खड़े कर देते हैं और कहते हैं उच्चाधिकारियों से बात कीजिए। इस विषय में उन्हें कुछ भी नहीं मालूम है। और जब बैंक अधिकारियों से बात करतें है तो उनका जवाब होता है कि जो भी कटौतियां होती हैं, वह कंप्यूटर स्वतः करता हैं । उनमें उन लोगों की कोई भी भूमिका नहीं है। मैनेजर भी इस विषय में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं होते हैं।
महात्मा गांधी के द्वारा कहे गए वचन आज बैंक कर्मचारियों के लिए कोई मायने नहीं रखते है। पीछे उनकी फोटो टंगी रहती है और टेबल के आगे उनके कहे शब्दों के खिलाफ बैंक कर्मचारी कार्य कर रहे होतें हैं। बैंकों में इस प्रकार की सूचनाएं भी लिखी होती है कि बैंक कर्मचारियों से अभद्रता करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी और इसके लिए सजा 3 साल का कठोर दंड दिया जाएगा।
बैंकों में हो रही छुट्टी के कारण ATM मशीन भी बोल जाती हैं जिससे ग्राहकों को काफी समस्या का सामना करना पड़ता है। जबकि ATM चार्जेज क्वार्टरली क्वार्टरली बैंक द्वारा काट लिया जाता है। लेकिन सुविधाएं पूरी नहीं मिलती हैं।
"एटीएम में पैसा न होने पर बैंक को खेद है। हम आपको पैसा मुहैया कराने की सेवा उपलब्ध नहीं करवा पाए इस पर जुर्माने के तौर पर 100 रु. आपके खाते में जमा कर दिए गए हैं।" क्या आप कभी अपने बैंक से किसी ऐसे मैसेज की उम्मीद कर सकते हैं ? यदि नहीं, तो क्यों नहीं ? ये भी तो बैंक की सेवा है, जिसका उसने वादा किया है। जरूरत पड़ने पर अपने ग्राहकों को पैसे अदा करने का। चाहे मशीन हो या बैंक काउंटर पर बैठे कर्मचारी के जरिए।
अगर पिज्जा डिलीवरी में देरी हो जाए तो कंपनी अपने ग्राहक को पिज्जा मुफ्त में देने की पेशकश करती है। किसी ऑनलाइन कंपनी की तरफ से आपको गलत सामान डिलीवर हो जाए तो कंपनी आपको हुई परेशानी के बदले आपको मुआवजा देती है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये कंपनियां ग्राहकों की कद्र करते हैं, लेकिन बैंकों के मामले में ये बात लागू नहीं होती। अगर ऐसा नहीं होता तो बैंक अपनी मनमानी क्यों करते ?
एटीएम में पैसे हैं या नहीं हैं, भले ही लोग इधर-उधर भटक रहे हों, लेकिन बैंकों को कोई फर्क नहीं पड़ता। अधिकतर लोगों को एटीएम से खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। ऐसे में एटीएम में पैसे न होने पर बैंकों को भी ग्राहकों को जुर्माना देना चाहिए, लेकिन बैंक ग्राहकों को एक भी रुपया नहीं देते। वहीं अगर आपके खाते में न्यूनतम अकाउंट बैलेंस जरा सा कम हुआ तो बैंक तुरंत पेनाल्टी लगाकर अपनी जेब गरम कर लेते हैं।
जब मिनिमम अकाउंट बैलेंस कम होने पर बैंक जुर्माना लगाते हैं तो एटीएम में पैसे न होने पर मुआवजा क्यों नहीं देते ?
बैंक को क्यों देना चाहिए ग्राहकों को मुआवजा ?
किसी भी बैंक के ग्राहक को उसका पैसा देना बैंक के लिए जरूरी है, जो भारतीय रिजर्व बैंक का नियम भी है। अब भले ही बैंक के काउंटर से ये पैसा ग्राहक को मिले या फिर एटीएम से। ऐसे में एटीएम से पैसे नहीं मिलने का सीधा मतलब यही है कि ग्राहक को बैंक से पैसे नहीं मिले, क्योंकि एटीएम की व्यवस्था बैंकों द्वारा ही की गई है। वहीं दूसरी ओर, बैंक ये दावा करते हैं कि वह एटीएम की सुविधा मुफ्त में दे रहे हैं, लेकिन एटीएम कार्ड का सालाना चार्ज काट लेते हैं। जब एटीएम की सुविधा के लिए हम पैसे दे रहे हैं, तो वो सुविधा न मिलने पर मुआवजा क्यों नहीं मिलना चाहिए ?
आखिर जब बैंक ग्राहकों की गलती पर तरह-तरह के जुर्माने लगाकर कमाई करते हैं तो जब बैंकों की वजह से ग्राहकों के दिक्कत का सामना करना पड़ता है तो उन्हें उसका मुआवजा क्यों नहीं मिलना चाहिए ? अगर आप एक निश्चित सीमा से अधिक एटीएम ट्रांजेक्शन कर देते हैं तो आपको प्रति ट्रांजेक्शन 20 रुपए का चार्ज देना पड़ता है। हर बैंक की मुफ्त ट्रांजेक्शन की सीमा अलग-अलग है। लेकिन अगर एटीएम में पैसे नहीं हो तो बैंक मुआवजा क्यों नहीं देते ?
आखिरी मजबूरी में ही ग्राहक निकालता है पैसे
बैंकों का तर्क है कि कैश की दिक्कत होने की वजह से हर एटीएम में पैसे नहीं मिल पा रहे हैं। बैंक ने अपनी मजबूरी तो गिना दी, लेकिन ग्राहकों की मजबूरी कभी नहीं समझता। आखिर एक ग्राहक मजबूर होकर ही तो अपने खाते से पैसे निकालता है, जबकि उसे पता है कि न्यूनतम अकाउंट बैलेंस रखना जरूरी है। बावजूद इसके, बैंक उस मजबूरी का फायदा उठाते हैं और अपनी कमाई करते हैं। लेकिन भगवान कहे जाने वाले ग्राहक की मजबूरी न तो बैंकों को दिखती है ना ही सरकार को, वरना एटीएम में पैसे न होने की स्थिति में मुआवजा मिलने के नियम को काफी पहले लागू कर दिया गया होता।
न्यूनतम बैलेंस से बैंक करते हैं मोटी कमाई
अगर सिर्फ मिनिमम अकाउंट बैलेंस से बैंकों को होने वाली कमाई की बात करें तो आंकड़े हैरान करने के लिए काफी हैं। इससे बैंकों की कितनी कमाई होती है, इसका अदांजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अप्रैल से लेकर नवंबर 2017 तक यानी महज 8 महीने में भारतीय स्टेट बैंक को मिनिमम अकाउंट बैलेंस पर लगाए गए जुर्माने से ही 1771 करोड़ रुपए की कमाई हुई थी। हालांकि, उसके बाद बैंक ने चार्जेज कम कर दिए थे। ये जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि जुलाई से सितंबर 2017 तक की तिमाही में बैंक को 1581 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ। यानी जितना SBI ने एक तिमाही में मुनाफा कमाया, उससे अधिक तो 8 महीने में मिनिमम बैलेंस न रखने की वजह से कमा लिया है। अब मिनिमम अकाउंट बैलेंस के अतिरिक बैंकों ने करंट एकाउंट होल्डर से सालाना 1800 रुपये प्लस 18 प्रतिशत जीएसटी बसूलना शुरू कर दिया है। अब आप आंकलन करो कि देश मे करोड़ों करंट एकाउंट होल्डर है। अब बैंक अपनी इस मनमानी से कितना अरबों रुपये बिना कुछ किये कराए जोड़ रहे है।
एटीएम को लेकर पहले से है ये नियम
अगर आप किसी एटीएम से ट्रांजेक्शन करें और आपके पैसे खाते से कट जाएं, लेकिन मशीन से पैसे नहीं निकलें, तो 7 दिनों तक वो पैसे वापस आपके खाते में आ जाएंगे. यूं तो यह प्रोसेस अपने आप हो जाती है, लेकिन अगर 7 दिन में भी पैसे आपके खाते में नहीं आते हैं तो आपको ट्रांजेक्शन होने के 30 दिन के अंदर-अंदर इसकी शिकायत करनी होगी. 7 दिन में अगर बैंक आपके पैसे वापस नहीं करता है तो उसे रोजाना 100 रुपए के हिसाब से ग्राहक को मुआवजा देना होगा। जब एटीएम पर फेल होने वाली ट्रांजेक्शन के लिए बैंक अपने ग्राहकों को मुआवजा दे सकते हैं तो फिर एटीएम में पैसे न होने के लिए मुआवजे का नियम क्यों नहीं है ?
जो मशीनें खराब पड़ी रहती हैं, उनका क्या?
अक्सर ही आपको ऐसे एटीएम मिल जाएंगे, जो खराब रहते हैं। एटीएम में घुसने से पहले ही वो बोर्ड दिख जाता है, जिसमें लिखा रहता है कि एटीएम काम नहीं कर रहा है। जब एटीएम की सुविधा के लिए पैसे नियत समय पर बैंक को मिल जाते हैं तो इन मशीनों को बनवाया क्यों नहीं जाता ? एटीएम खराब होने की वजह से कई बार तो ग्राहकों को भटका तक पड़ जाता है। ग्राहकों को होने वाली इस परेशानी की ओर अभी तक न तो बैंक ध्यान देते हैं, न ही सभी बैंकों को मालिक रिजर्व बैंक ध्यान देता है और न ही लोगों के हितैषी होने का दावा करने वाली सरकार। भगवान कहा जाने वाला ग्राहक अपने ही पैसों के लिए दर-दर भटकता आपको अक्सर ही मिल जाएगा और कई बार तो आपका भी हाल कुछ ऐसा ही हो जाता होगा।
समझने वाली बात ये है कि बैंक मनमानी कर रहे हैं। जिन नियमों से उन्हें फायदा होता है, उसका सख्ती से पालन हो रहा है और जो नियम ग्राहकों को फायदा पहुंचाएं, ऐसे नियम बनने ही नहीं दिए जा रहे हैं। सवाल अंत में वही है कि जब अकाउंट में पैसे कम होने पर बैंक जुर्माना लगा सकते हैं तो एटीएम में पैसे न होने पर वह ग्राहकों को मुआवजा क्यों नहीं देते?
इस बारे में सोचिए और अपनी राय हमें बताइए। अगर आप भी चाहते हैं कि ऐसा नियम बने, जिससे एटीएम में पैसा न होने पर ग्राहक को मुआवजा मिले तो नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट जरूर करें...