शिमला: हिमाचल प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीपीसीएल) के इंजीनियर विमल नेगी की रहस्यमयी मौत ने राज्य की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। हालांकि मामले की जांच अब सीबीआई के हाथों में है, लेकिन इसके बावजूद आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति थमने का नाम नहीं ले रही। भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोपों की तीव्र जंग जारी है, जिससे यह मामला अब न्याय से अधिक राजनीतिक बहस का विषय बनता जा रहा है।

भाजपा का रुख: सरकार पर पर्दा डालने का आरोप
भाजपा विधायक डॉ. जनक राज ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू एक तरफ मीडिया के सामने सीबीआई जांच का स्वागत करने की बात कर रहे हैं, जबकि दूसरी ओर उनकी सरकार के अधिकारी अदालत में जाकर जांच को चुनौती दे रहे हैं।
डॉ. जनक राज का बयान:
“सरकार का रवैया पूरी तरह से विरोधाभासी है। एक तरफ स्वागत, दूसरी तरफ विरोध – यह जनता को भ्रमित करने का प्रयास है। शिमला के एसपी केवल एक मोहरा हैं। असली ताकतवर लोग पर्दे के पीछे हैं और सरकार उन्हें संरक्षण दे रही है।”
उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष को मुख्यमंत्री की सलाह की कोई आवश्यकता नहीं है। विपक्ष जनता के हित में काम कर रहा है और सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाना उसका संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का समर्थन करते हुए कहा कि वह जनता की आवाज बनकर सरकार से जवाब मांग रहे हैं।
कांग्रेस का पलटवार: भाजपा पर ‘राजनीतिक रोटियां सेकने’ का आरोप
राजस्व एवं बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने भाजपा के आरोपों को खारिज करते हुए उन्हें राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया कदम बताया। उन्होंने कहा कि भाजपा अभी से सीबीआई जांच पर सवाल उठा रही है, जबकि यह प्रक्रिया अभी प्रारंभिक चरण में है।
जगत सिंह नेगी का बयान:
“जब सांसद रामस्वरूप शर्मा की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हुई थी या जब बिलासपुर में एक लड़की किडनैप हुई थी, तब भाजपा ने क्या किया ? क्या उन्होंने सीबीआई जांच की मांग की थी ? अब राजनीति करके सरकार को कटघरे में खड़ा करना एक दोहरा रवैया है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि कांग्रेस सरकार ने अब तक इस मामले में चार जांचें करवाई हैं। ऐसे में यह कहना कि सरकार पारदर्शिता नहीं बरत रही, सरासर गलत है।
न्याय बनाम राजनीति की लड़ाई
विमल नेगी की मौत का मामला अब महज़ एक आपराधिक जांच नहीं रहा, बल्कि यह राज्य की सियासत का केंद्र बन गया है। एक ओर भाजपा इसे न्याय की लड़ाई बता रही है, तो दूसरी ओर कांग्रेस इसे राजनीतिक अवसरवाद कह रही है। सीबीआई जांच की निष्पक्षता और प्रभावशीलता पर तो आने वाले समय में प्रकाश पड़ेगा, लेकिन वर्तमान में दोनों दल इस मुद्दे को अपने-अपने दृष्टिकोण से भुना रहे हैं।
जनता के लिए सबसे जरूरी सवाल यही है - क्या इस सियासी शोर के बीच सच्चाई सामने आएगी ? या फिर यह मामला भी कई अन्य संवेदनशील मामलों की तरह राजनीतिक गलियारों में गुम हो जाएगा ? अब निगाहें सीबीआई की कार्रवाई और न्याय प्रणाली की निष्पक्षता पर टिकी हैं।