यहां आज भी युग बीती परंपरा का बखूबी निर्वाह हो रहा है। धर्म शास्त्रों से जुड़े लोग त्रेतायुग में राक्षस राज जालंधर की पत्नी वृंदा को भगवान विष्णु द्वारा दिए वचन का पालन कर रहे हैं। त्रेतायुग में वृंदा बनी मां तुलसी का विवाह हिंदु रीति रिवाजों से भगवान सालिगराम से किया जाता है। आज कुनिहार के समीप बडोरी-लोहरा गांव में शास्त्रोक्त एवं परंपरागत हिंदू रीति रिवाज से भगवान शालिग्राम व तुलसी विवाह का आयोजन बड़ी धूमधाम से किया गया। पढ़ें विस्तार से..
कुनिहार: (हिमदर्शन समाचार); कुनिहार के समीप बडोरी-लोहरा गांव में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी के दूसरे दिन द्वादशी तिथि के पावन अवसर पर माँ तुलसी का भगवान शालिग्राम जो कि विष्णु भगवान का स्वरूप भी माना जाता है, के साथ शास्त्रोक्त एवं परंपरागत हिंदू रीति रिवाज के साथ विवाह उत्सव का आयोजन बहुत ही हर्षोल्लास एवं उमंग के साथ आयोजित किया गया ।
इस पावनमयी एवं धार्मिक भावनाओं से ओत प्रोत इस विवाह उत्सव के बारे में जानकारी देते हुए इस विवाह के आयोजन कर्ता जयदेव ने बताया की इस विवाह में आसपास गांव के सैकड़ो लोग सम्मिलित होकर के आनंदानुभूति के साक्षी बने l
तुलसी विवाह के लिए ग्राम पट्टाब्रोरी के ठाकुरद्वारे से शालिग्राम की बारात को सुसज्जित एवं साजो बाज के साथ प्रातः उषाकाल की उगती किरणों के साथ बडोरी-लोहरा गांव पहुंची, जहां पर सभी ग्राम वासियों ने हृदय की गहराइयों से भगवान शालिग्राम एवं उनके साथ आए बारात के सभी लोगो का स्वागत एवं आदर सत्कार किया और उसके उपरांत भारतीय हिंदू शास्त्रों के अनुसार भगवान शालिग्राम एवं माता तुलसी का विवाह उत्सव क़ो विधि विधान पूर्वक किया गया।
हिंदू परंपरा एवं पौराणिक मिथको के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी के दूसरे दिन हर वर्ष द्वादशी तिथि के पावन अवसर पर माँ तुलसी का विवाह आयोजित करने की मान्यता है। माँ तुलसी को लक्ष्मी का स्वरूप भी माना जाता है। वैसे भी भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है। इसी कारण तुलसी के पत्तों के साथ भगवान विष्णु जी की पूजा करने से वे अति प्रसन्न होते हैं।
तुलसी विवाह का हमारे हिंदू शास्त्रों में बहुत ही महत्व बताया जाता है कहते हैं कि माँ तुलसी का भगवान शालिग्राम के साथ विवाह को करवाने वाले को उतना ही फल मिलता है जितना किसी व्यक्ति को कन्यादान को करने से मिलता है। साथ ही वह व्यक्ति पुण्य का भागीदार बनकर मनवांछित फल को प्राप्त करता है। इस पावनमयी विवाह के अंतर्गत भजन संकीर्तन के उपरांत नारायण सेवा के रूप में इस विवाह उत्सव में सम्मिलित लोगों को भोजन के लिए भंडारे की व्यवस्था की गई थी l