हिमाचल प्रदेश पुलिस महकमे में इन दिनों अंदरूनी उठापटक खुलकर सामने आ रही है। हाईकोर्ट की सख्त फटकार के बाद अब एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने अपनी ही संस्था के शीर्ष पदाधिकारी पर बड़े आरोप लगाए हैं। SP शिमला संजीव कुमार गांधी द्वारा डीजीपी पर लगाए गए आरोप न केवल हैरान करने वाले हैं, बल्कि पुलिस महकमे की कार्यशैली और विश्वसनीयता पर भी गंभीर सवाल खड़े करते हैं।
शिमला: (HD News); विमल नेगी मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद, एसपी शिमला संजीव कुमार गांधी ने अपने ही उच्च अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। शिमला में मीडिया से बात करते हुए एसपी गांधी ने दावा किया कि डीजीपी ने कोर्ट में झूठा शपथ पत्र दायर किया है और जांच प्रक्रिया में अनावश्यक हस्तक्षेप किया।
एसपी संजीव गांधी का कहना है कि डीजीपी द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ की कोशिश की गई, जिससे पुलिस विभाग की विश्वसनीयता पर गंभीर आंच आई है। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि CID द्वारा की गई एक गोपनीय जांच रिपोर्ट को चोरी कर बाहर पहुंचाया गया, जिसमें DGP कार्यालय के स्टाफ की भूमिका उजागर हुई है।

उन्होंने आरोप लगाया कि तत्कालीन डीजीपी संजय कुंडू के कार्यकाल में एक व्यापारी निशांत शर्मा के केस में कोर्ट को गुमराह करने वाला एफिडेविट दायर किया गया, और अधीनस्थ अधिकारियों पर दबाव डालकर झूठी रिपोर्ट तैयार करवाई गई।
NSG के नाम पर गढ़ा गया फर्जी सबूत
एसपी गांधी ने एक और सनसनीखेज दावा करते हुए कहा कि एक मामले में NSG की मदद से एक फर्जी सबूत तैयार कर कुछ अधिकारियों को झूठे मामले में फंसाने की साजिश रची गई, जिसमें झूठे IED ब्लास्ट का जिक्र किया गया था।
"यह टकराव अफसर बनाम अफसर नहीं, सिस्टम बनाम सत्ता है" एसपी गांधी ने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने समय-समय पर राज्य सरकार और एडवोकेट जनरल को इन सभी मामलों की जानकारी दी, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने कहा,
"यह विवाद केवल एक अधिकारी बनाम अधिकारी की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह उस गहरी दरार को उजागर करता है जो सत्ता, तंत्र और जवाबदेही के बीच मौजूद है।"
गौरतलब है कि किसी को भी दोषी या निर्दोष करार देना तब तक उचित नहीं है, जब तक कि निष्पक्ष, पारदर्शी और स्वतंत्र जांच पूरी न हो जाए। यह विवाद केवल दो अधिकारियों के बीच की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह पूरे पुलिस तंत्र की कार्यप्रणाली, जवाबदेही और जनता के भरोसे की असली परीक्षा है। एसपी शिमला द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों ने राज्य की पुलिस व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर बहस छेड़ दी है। यदि इन आरोपों में सच्चाई है, तो यह न केवल कानून व्यवस्था के लिए चुनौती है, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की पारदर्शिता और विश्वसनीयता के लिए भी खतरा है। अब निगाहें राज्य सरकार और न्यायपालिका पर हैं—क्या इन आरोपों की निष्पक्ष जांच होगी, या फिर यह मामला भी फाइलों में दबा दिया जाएगा?