सात महीने से बिना संगठन के चल रही हिमाचल कांग्रेस आज एक चौराहे पर खड़ी है - जहां उम्मीद, असंतोष और असमंजस तीनों साथ दिखते हैं। जमीनी कार्यकर्ता नेतृत्व के इंतजार में थक चुके हैं, और गुटबाजी पार्टी की आत्मा को भीतर से खा रही है। इस राजनीतिक सन्नाटे के बीच दिल्ली में मुकेश अग्निहोत्री और विक्रमादित्य सिंह की गांधी परिवार से मुलाकात ने फिर एक बार नई आशा की किरण जगाई है। सवाल अब यह है कि - क्या पार्टी समय रहते संतुलन बना पाएगी, या फिर एक और विभाजन की पटकथा तैयार होगी ?
शिमला: (HD News); दिल्ली में डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री और लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह की राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात ने हिमाचल कांग्रेस की सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है। मुलाकात सिर्फ एक औपचारिक निमंत्रण नहीं था—बल्कि इसके बहाने संगठन और पार्टी अध्यक्ष को लेकर चली आ रही अंदरूनी खींचतान और ज्यादा तीव्र हो गई है।

हिमाचल: कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर हलचल, मुकेश-विक्रमादित्य की राहुल गांधी-प्रियंका से मुलाकात, 23 जून को बड़ा ऐलान संभव ?
🎯 संगठन को लेकर खुली नाराजगी, हाईकमान की सख्ती का इंतजार
बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं ने आलाकमान के सामने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि प्रदेश में सात महीने से संगठन शून्यता है और पार्टी की जमीनी पकड़ लगातार कमजोर हो रही है। ऐसे में जल्द से जल्द प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और नई कार्यकारिणी का गठन जरूरी है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री सुक्खू अपने खास सिपहसालारों को प्रदेश की कमान सौंपना चाहते हैं, मगर होली लॉज खेमा पूरी तरह से अड़ गया है।

🧨 'एक गुट की सत्ता नहीं चलेगी' होली लॉज खेमा अड़ा
सीएम सुक्खू की ओर से विधायक संजय अवस्थी, सुरेश कुमार और विनोद सुल्तानपुरी के नाम आगे बढ़ाए गए हैं, लेकिन वीरभद्र समर्थकों ने इन तीनों नामों को सिरे से नकार दिया है। उनका तर्क है कि सीएम और पार्टी अध्यक्ष दोनों एक ही गुट से होने से पार्टी में एकतरफा सत्ता स्थापित हो जाएगी। अब यह साफ है कि कांग्रेस की अंतर्कलह खुलकर सतह पर आ चुकी है।
💥 विक्रमादित्य समर्थक फ्रंटफुट पर, सोशल मीडिया से बदली रणनीति
इसी कशमकश में कांग्रेस अध्यक्ष की रेस में विक्रमादित्य सिंह का नाम फिर से उभरा है। दिलचस्प बात यह है कि हाल ही में प्रतिभा सिंह पीसीसी प्रेसिडेंट नाम से एक फेसबुक पेज पर पोस्ट किया गया कि "2027 का सामना करने के लिए विक्रमादित्य ही सबसे उपयुक्त चेहरा हैं और होली लॉज को ही कमान सौंपी जाए।" इस रणनीति को वीरभद्र समर्थकों की सोशल मीडिया पिच माना जा रहा है, जो सुक्खू खेमा के खिलाफ एक सधी हुई चाल है।
⚡ अनिरुद्ध सिंह भी दौड़ में, पर शर्तें तय करेंगी बाज़ी
सूत्रों के अनुसार यदि सुक्खू खेमा अपने तीनों नामों पर सहमति नहीं बनवा पाता है, तो कैबिनेट मंत्री अनिरुद्ध सिंह को अध्यक्ष बनाने का प्लान-B रखा गया है। मगर अनिरुद्ध सिंह मंत्री पद के साथ ही अध्यक्ष बनने को तैयार हैं - मंत्री पद छोड़ने की शर्त मंजूर नहीं।
🚨 डिप्टी सीएम का नाम भी उछला, पर पद छोड़ने की शर्त बनी अड़चन
विपक्षी खेमा डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री का नाम भी अध्यक्ष पद के लिए सामने लाया था, लेकिन इसमें भी पेंच है - उन्हें डिप्टी सीएम पद छोड़ने की शर्त पर ही अध्यक्ष बनाया जा सकता है, जिस पर स्वयं मुकेश भी संकोच में हैं।
🧩 कुलदीप राठौर पर हाईकमान की सहमति, लेकिन...
इस बीच हाईकमान की पहली पसंद रहे ठियोग विधायक कुलदीप राठौर अध्यक्ष बनने से इनकार कर चुके हैं। हालांकि यदि उन्हें अपने तरीके से संगठन चलाने की छूट मिले तो वे फिर कमान संभाल सकते हैं। यह साफ है कि राठौर बिना 'फ्री हैंड' के राजी नहीं होंगे।
🏛️ 6 नवंबर से संगठन भंग, वर्कर्स में भारी नाराजगी
गौरतलब है कि बीते साल 6 नवंबर को मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रदेश कांग्रेस की राज्य, जिला और ब्लॉक कार्यकारिणी को भंग कर दिया था। तब से लेकर आज तक कांग्रेस बिना संगठन के चल रही है। ज़मीनी कार्यकर्ता नेतृत्वविहीन हालात से खफा हैं और अब आलाकमान की ओर उम्मीद भरी निगाहें लगाए बैठे हैं।
🕰️ 23 जून को बड़ा ऐलान संभव?
विक्रमादित्य सिंह ने आलाकमान को वीरभद्र जयंती पर शिमला आमंत्रित किया है। माना जा रहा है कि इस मौके पर अध्यक्ष और संगठन को लेकर बड़ी घोषणा हो सकती है। यह कार्यक्रम अब प्रदेश कांग्रेस के लिए टर्निंग पॉइंट बन सकता है
हिमाचल कांग्रेस आज ऐसे चौराहे पर खड़ी है, जहां से हर रास्ता किसी न किसी अंतर्विरोध की ओर जाता है। संगठन विहीन पार्टी के भीतर चल रही सत्ता और प्रतिनिधित्व की खींचतान ने न केवल नेतृत्व संकट को गहरा किया है, बल्कि कार्यकर्ताओं की उम्मीदों को भी झकझोर कर रख दिया है। दिल्ली में हुई चर्चाएं इस सियासी जमींदोज को ऊपर लाने की एक कोशिश हैं लेकिन क्या ये सिर्फ औपचारिक मुलाकातें हैं या कोई बड़ा संदेश? विक्रमादित्य सिंह की सक्रियता, सुक्खू की रणनीति और हाईकमान की चुप्पी के बीच कांग्रेस के भविष्य का नक्शा तैयार हो रहा है। अब फैसला सिर्फ चेहरा तय करने का नहीं, बल्कि उस दिशा का है जिसमें पार्टी आगे बढ़ेगी - एकजुटता की ओर या और अधिक विघटन की ओर।