चुनाव से पहले मुफ्त सुविधाओं के वादों से वोट बटोरने वाली सरकार अब ग्रामीण जनता की जेब पर सीधा वार करने जा रही है। हिमाचल के गांवों में अब मुफ्त पानी का दौर खत्म होने वाला है। सरकार ने पंचायतों को पानी की दरें तय करने और बिल वसूलने का पूरा अधिकार दे दिया है। यानी अब गांवों में नलों से बहता पानी मुफ्त नहीं, बल्कि मासिक बिल के साथ मिलेगा। यह फैसला न केवल ग्रामीण परिवारों पर नया आर्थिक बोझ डालेगा, बल्कि चुनावी वादों की सच्चाई भी बेनकाब करेगा। पढ़ें विस्तार से..
शिमला : (HD News); चुनाव आते ही राजनीतिक दल जनता को रिझाने के लिए मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और यहां तक कि हर महिला को नकद राशि देने तक के लुभावने सपने बेचते हैं। लेकिन सत्ता की कुर्सी मिलते ही इन वादों दफना दिया जाता है और जनता पर महंगाई का पहाड़ तोड़ दिया जाता है। पहले प्रदेश भर के अस्पतालों में रोगी पर्ची मुफ्त थी, अब 10 रुपये वसूलने का फरमान सुनाया गया । विरोध होने पर सरकार ने चालाकी से कह दिया कि फैसला अस्पताल लें। और अब बारी है गांव के नलों से बहते मुफ्त पानी की - सरकार पंचायतों को पानी की दरें ठोकने और बिल वसूलने का हक देकर ग्रामीणों की जेब पर सीधा वार करने जा रही है।
“गांवों का नल अब मुफ्त नहीं - सरकार ने पंचायतों को दिया पानी का बिल वसूलने का अधिकार !”
हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में अब पानी की दरें तय करने और बिल वसूलने का अधिकार पूरी तरह पंचायतों के हाथ में होगा। दरें तय करने से पहले पंचायतों को प्रस्ताव ग्राम सभा में पेश करना होगा, और प्रस्ताव पारित होने के बाद ही नई दरें लागू होंगी। पानी के बिलों से प्राप्त पूरी राशि पंचायतों के पास रहेगी, जिसे जल योजनाओं के रखरखाव में खर्च किया जाएगा।

गौरतलब है कि अभी तक ग्रामीण क्षेत्रों में पानी मुफ्त मिलता था और कोई बिल नहीं वसूला जाता था। लेकिन अब पंचायतें मासिक बिल जारी कर सकेंगी, जिसकी राशि पूरी तरह उनके विवेक पर होगी। प्रदेश सरकार ने जल शक्ति विभाग के कर्मचारियों की कमी का हवाला देकर पेयजल स्कीमों का संचालन, मरम्मत और जल स्रोतों का संरक्षण पंचायतों को सौंप दिया है। इसके लिए 354 करोड़ रुपये जारी करने की तैयारी भी की जा रही है।
योजना के तहत जल रक्षक टैंकों की सफाई करेंगे, जबकि पानी की सप्लाई छोड़ने का काम बेलदार या कीमैन संभालेंगे। जल स्रोतों की जियो टैगिंग कर उनका स्तर भी मॉनिटर किया जाएगा।
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने कहा, "ग्राम सभा के प्रस्ताव के बाद ही बिल की राशि तय होगी। लोगों से मासिक कितना बिल लिया जाएगा, यह पंचायतों के अधिकार में होगा।"
सरकार का यह फैसला ग्रामीण जल प्रबंधन में पंचायतों की जिम्मेदारी बढ़ाने के नाम पर असल में गांवों के प्राकृतिक जल स्रोतों पर सीधा “टैक्स” लगाने जैसा है। यह अब पानी का बिल नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों पर वसूली कहलाएगा। मुफ्त पानी की परंपरा खत्म कर मासिक भुगतान की शुरुआत जहां पंचायतों को आर्थिक रूप से मजबूत करेगी, वहीं यह कदम ग्रामीण जनता के लिए एक नई आर्थिक मार और चुनावी वादों की हकीकत का खुला सबूत साबित होगा।
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