हिमाचल प्रदेश का सराज क्षेत्र इस समय कुदरत के सबसे भयावह प्रकोप का गवाह बना हुआ है। बीते सोमवार रात बादल फटने की विनाशकारी घटना ने पूरे इलाके को तबाही के अंधकार में धकेल दिया। तेज बारिश, बाढ़ और भूस्खलन से न केवल जनजीवन पूरी तरह चरमरा गया है, बल्कि सैकड़ों परिवारों का सबकुछ तबाह हो गया। मलबे में दबी ज़िंदगियों की तलाश अब ड्रोन और सेना के हवाले है। अब तक 17 लोगों की मौत हो चुकी है और 54 लोग अब भी लापता हैं। आपदा की गंभीरता को देखते हुए राहत और बचाव कार्यों में तेज़ी लाई गई है, लेकिन दुर्गम पहाड़ी इलाकों और टूटी सड़कों ने प्रशासन की चुनौती को और बढ़ा दिया है।
मंडी: (HD News); हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के सराज क्षेत्र में सोमवार रात बादल फटने की विनाशकारी घटना ने समूचे इलाके को हिला कर रख दिया है। पांच दिन बीतने के बाद भी जनजीवन अभी तक पटरी पर नहीं लौट पाया है। इस आपदा में अब तक 17 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 54 लोग अब भी लापता हैं। राहत एवं बचाव कार्यों के लिए एनडीआरएफ, एसडीआरएफ के साथ सेना की टुकड़ी को भी मैदान में उतारा गया है। थुनाग और जंजैहली जैसे दुर्गम इलाकों में युद्धस्तर पर राहत अभियान चलाया जा रहा है। कई इलाकों में ड्रोन की मदद से मलबे में दबे और बाढ़ में बहे लोगों की तलाश की जा रही है।
थुनाग और जंजैहली की तस्वीरें डरावनी, मलबे में तब्दील हुए बाजार और गांव
सराज क्षेत्र के थुनाग और जंजैहली में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। थुनाग का मुख्य बाजार कीचड़ और मलबे के ढेर में तब्दील हो चुका है। जंजैहली के बूंगरैलचौक में 13 मकान बाढ़ में बह गए हैं, जबकि छह घर पूरी तरह जमींदोज हो चुके हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि अवैध मलबा डंपिंग ने इस तबाही को और बढ़ा दिया। प्रशासन भी स्वीकार कर रहा है कि सड़कों के अवरुद्ध होने से राहत कार्यों में बाधाएं आ रही हैं। थुनाग के डेजी गांव से शुक्रवार को सेना ने 65 लोगों को सुरक्षित निकाला है। गोहर उपमंडल के पंगलियूर में बाढ़ में लापता महिला पार्वती देवी का शव बरामद कर लिया गया है, जिसकी पहचान देहरा में हुई।

स्याठी में 27 घर पूरी तरह तबाह, जोगिंद्रनगर में जमीन खिसकने से संकट
धर्मपुर क्षेत्र के स्याठी गांव में तबाही का आलम ऐसा है कि 27 घर पूरी तरह मटियामेट हो चुके हैं और 11 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हैं। वहीं जोगिंद्रनगर की पिपली पंचायत में भूस्खलन के चलते बागला और पोहल गांव के 20 घर खतरे की जद में हैं। भू-धंसाव से कभी भी बड़ी तबाही हो सकती है।
सड़कों से कटे लोग, बिजली-पानी ठप, राशन हवाई मार्ग से पहुंचाया जा रहा
प्राकृतिक आपदा के चलते पूरे सराज क्षेत्र की सड़कों, बिजली, पानी और संचार व्यवस्था पर असर पड़ा है। सड़क संपर्क टूटने से सेना ने हेलिकॉप्टर से राशन, पानी, दवाइयां और तिरपाल जैसी जरूरी सामग्री पहुंचाई है। शुक्रवार को हेलिकॉप्टर के ज़रिए 40 राशन किट, 20 तिरपाल, 120 पानी की बोतलें, दो दवा बॉक्स और कुछ कपड़े भेजे गए। लेकिन इन तक पहुंचने के लिए स्थानीय लोगों को कई किलोमीटर पैदल सफर करना पड़ रहा है।
सीएम सुक्खू ने किराया देने का किया एलान, पर लोग बोले - ज़मीनी हालात भयावह
मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने अपने घर खो चुके लोगों को 5, 000 रुपये प्रति माह किराया देने का ऐलान किया है। हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि जब तक सड़कें नहीं खुलेंगी और मूलभूत सुविधाएं बहाल नहीं होंगी, तब तक राहत महज घोषणा ही रहेगी। प्रशासन बगस्याड़ से थुनाग और करसोग से जंजैहली तक की सड़कें बहाल करने में जुटा है।
पहाड़ों की गलत कटिंग से हो रहा नुकसान
मुख्यमंत्री ने कहा कि बड़ी-बड़ी कंपनियों को उनकी मशीनरी देखकर ठेके दे दिए जाते हैं। उन्हें हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों की भौगोलिक परिस्थितियों की जानकारी नहीं होती। वे सुविधानुसार पहाड़ों की कटिंग कर देती हैं, जिससे नुकसान होता है। उन्होंने एनएचएआई को सलाह दी कि ऐसे ठेके स्थानीय ठेकेदारों को दिए जाएं।
मौसम विभाग का अलर्ट जारी: खतरा अभी टला नहीं
हिमाचल प्रदेश के छह जिलों कांगड़ा, मंडी, चंबा, सिरमौर, शिमला और कुल्लू में शनिवार को भारी बारिश का ऑरेंज अलर्ट और रविवार को कांगड़ा, सिरमौर और मंडी के लिए रेड अलर्ट जारी किया गया है। मौसम विभाग ने 8 जुलाई तक प्रदेशभर में रुक-रुक कर भारी बारिश की चेतावनी दी है, जिससे राहत व बचाव कार्यों पर और असर पड़ सकता है।
सराज की इस त्रासदी ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि प्राकृतिक आपदाओं के सामने इंसान कितना बेबस है, और विकास के नाम पर की गई अनियोजित छेड़छाड़ किस तरह भारी पड़ सकती है। ड्रोन, सेना और राहत दलों के अथक प्रयासों के बावजूद मलबे में फंसी ज़िंदगियों को तलाशना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। सरकार की घोषणाएं राहत का संकेत तो देती हैं, लेकिन जब तक ज़मीनी व्यवस्था बहाल नहीं होती, तब तक प्रभावित लोगों का दर्द कम नहीं होगा। इस आपदा से सबक लेते हुए अब वक्त आ गया है कि हिमाचल जैसे संवेदनशील पहाड़ी राज्यों में आपदा प्रबंधन को केवल कागजों में नहीं, जमीनी सच्चाई के अनुसार सशक्त किया जाए ताकि अगली बार ‘तबाही’ की आशंका को ‘तैयारी’ से टाला जा सके।