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हिमाचल

कुल्लू की तीर्थन घाटी पर आपदा का साया, बांदल गांव में जमीन दरकने से दहशत में ग्रामीण, तस्वीरों में दिखा खतरे का मंजर - देखें पूरी खबर

September 16, 2025 02:26 PM
Om Prakash Thakur

हिमाचल प्रदेश की वादियों में बसे कुल्लू जिले का तीर्थन घाटी का बांदल गांव इन दिनों भयावह आपदा का सामना कर रहा है। लगातार बारिश और भूस्खलन से गांव की जमीन धंस रही है, जिससे खेत, रास्ते और मकान खतरे की जद में आ गए हैं। तस्वीरों में दिख रहा यह मंजर न सिर्फ ग्रामीणों की पीड़ा बयान करता है, बल्कि यह भी बताता है कि पहाड़ी इलाकों में आपदाओं का खतरा कितना गंभीर होता जा रहा है। पढ़ें विस्तार से..

कुल्लू: (HD News); हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत तीर्थन घाटी इस समय बड़े संकट से गुजर रही है। कुल्लू जिले का बांदल गांव लगातार जमीन धंसने की चपेट में है। हाल ही में सामने आई तस्वीरों ने हालात की गंभीरता को उजागर कर दिया है। इनमें साफ देखा जा सकता है कि गांव के ऊपर से लेकर नीचे तक पूरा पहाड़ जगह-जगह से दरक चुका है। हरे-भरे खेत और मकान अब मिट्टी और मलबे में दबते हुए नज़र आ रहे हैं।

भारी बारिश बनी आफ़त

बीते दिनों हुई लगातार बारिश ने गांव की जमीन को कमजोर कर दिया है। पहाड़ की सतह से बड़ी-बड़ी दरारें निकल आई हैं और कई जगह मिट्टी पूरी तरह बह गई है। खेतों की उपजाऊ मिट्टी खिसककर नीचे आ चुकी है, जिससे ग्रामीणों की सालभर की मेहनत पर पानी फिर गया है। तस्वीरों में साफ दिख रहा है कि कई घर सीधे धंसाव वाली ढलानों के बिल्कुल किनारे खड़े हैं। ये मकान किसी भी समय खतरे में आ सकते हैं। 

ग्रामीणों में दहशत का माहौल

गांव के लोगों में गहरी दहशत है। उनका कहना है कि हर गुजरते दिन के साथ जमीन का बड़ा हिस्सा खिसक रहा है। दिन में तो लोग किसी तरह संभाल लेते हैं लेकिन रात को सोना मुश्किल हो गया है, क्योंकि डर रहता है कि कहीं अचानक पूरी ज़मीन खिसक न जाए। कई परिवार मजबूरी में गांव छोड़कर सुरक्षित स्थानों की तलाश कर रहे हैं, जबकि कुछ लोग अभी भी अपने घरों में डटे हुए हैं।

लोगों का दर्द और परेशानी

स्थानीय निवासी बताते हैं कि उनके सामने रोज-रोज अपना घर और खेत टूटते हुए देखने की मजबूरी है। गांव के एक बुजुर्ग ने भावुक होकर कहा – "हमारी पूरी जिंदगी की कमाई इन मकानों और खेतों में लगी है। अब सब कुछ धीरे-धीरे जमीन में समा रहा है। बच्चे और महिलाएं डरे हुए हैं। हमें समझ नहीं आ रहा कि आगे कहां जाएं और कैसे जियें।"

तकनीकी कारण और विशेषज्ञों की राय

भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि बांदल गांव जिस ढलान पर बसा है, वहां की मिट्टी पहले से ही ढीली और अस्थिर है। लगातार बारिश से यह मिट्टी पानी सोख लेती है और दबाव बढ़ने पर खिसकने लगती है। इसके अलावा, इस क्षेत्र में अनियोजित सड़क निर्माण और भवन निर्माण ने भी पहाड़ की मजबूती को कमजोर किया है।

एक भूगर्भ विशेषज्ञ के मुताबिक – "इस इलाके की भू-संरचना कमजोर है और लगातार हो रहे कटाव और निर्माण कार्य ने जोखिम को और बढ़ा दिया है। यहां त्वरित भू-वैज्ञानिक सर्वे की आवश्यकता है ताकि सही पुनर्वास योजना बनाई जा सके।"

प्रशासन की सक्रियता पर सवाल

हालात की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन ने गांव का दौरा तो किया है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि अभी तक कोई ठोस राहत या पुनर्वास योजना सामने नहीं आई है। प्रभावित परिवार मांग कर रहे हैं कि गांव को तुरंत भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र घोषित किया जाए और विस्थापन की तैयारी शुरू हो। लोगों का कहना है कि अगर जल्द कदम नहीं उठाए गए तो नुकसान और बढ़ सकता है।

प्रकृति का चेतावनी संकेत

बांदल गांव की ये तस्वीरें सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि पूरे हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों के लिए चेतावनी हैं। जलवायु परिवर्तन, अंधाधुंध कटाई और अनियोजित निर्माण कार्य इन आपदाओं को और बढ़ा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर समय रहते ठोस और वैज्ञानिक कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में हिमाचल के कई और गांव इसी तरह खतरे की चपेट में आ सकते हैं। 

तीर्थन घाटी का बांदल गांव इस समय प्रकृति के बड़े संकट से जूझ रहा है। लगातार बारिश और भूस्खलन ने यहां की जमीन को इतना कमजोर कर दिया है कि पूरा गांव धीरे-धीरे धंसता जा रहा है। तस्वीरों में दिखाई दे रहे खतरे का मंजर यह साफ संदेश दे रहा है कि पहाड़ी क्षेत्रों में अब आपदा प्रबंधन की योजनाओं और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को तुरंत अपनाना होगा। ग्रामीणों का दर्द सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश के कई इलाकों की साझा पीड़ा है। यह आपदा हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि जलवायु परिवर्तन, अनियोजित विकास और मानवीय लापरवाही किस तरह हमारे अस्तित्व पर भारी पड़ रही है। अब जरूरी है कि प्रशासन, विशेषज्ञ और सरकार मिलकर प्रभावित परिवारों को सुरक्षित पुनर्वास दें और भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं।


डिस्क्लेमर : इस खबर में दी गई जानकारी स्थानीय स्रोतों, प्रत्यक्षदर्शियों और सोशल मीडिया में उपलब्ध तस्वीरों के आधार पर तैयार की गई है। प्रशासनिक और वैज्ञानिक आकलन में बदलाव संभव है। पाठकों से अनुरोध है कि स्थिति से संबंधित आधिकारिक अपडेट और दिशा-निर्देशों के लिए संबंधित विभागों की सूचनाओं पर भरोसा करें।

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