हिमाचल प्रदेश में सरकार और पेंशनरों के बीच टकराव की स्थिति तेज़ होती जा रही है। लंबे समय से लंबित मांगों को लेकर अब प्रदेश के हजारों पेंशनरों ने सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने का ऐलान कर दिया है। पेंशनरों का आरोप है कि सरकार जानबूझकर उनकी उपेक्षा कर रही है और जीवनभर राज्य की सेवा करने वाले सेवानिवृत्त कर्मचारियों को उनका हक देने में टालमटोल की नीति अपना रही है। ज्वाइंट पेंशनर फ्रंट हिमाचल प्रदेश के नेतृत्व में पेंशनरों ने चेतावनी दी है कि यदि 2016 से लंबित एरियर, बकाया महंगाई भत्ता और मेडिकल बिलों का भुगतान शीघ्र नहीं किया गया, तो वे 14 अक्टूबर को राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे। यह केवल वेतन या भत्ते की मांग नहीं, बल्कि उन बुज़ुर्ग नागरिकों की अस्मिता और सम्मान का मुद्दा बन चुका है, जिन्होंने दशकों तक प्रदेश की सेवा की है। अब वे खुद को उपेक्षित और अपमानित महसूस कर रहे हैं। इस आंदोलन की पृष्ठभूमि न केवल प्रशासनिक असफलता, बल्कि राजनीतिक जवाबदेही की भी गहरी मांग करती है। 
शिमला: (HD News); हिमाचल प्रदेश में आर्थिक तंगी से जूझ रही सरकार के सामने अब एक और बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। प्रदेश के पेंशनरों ने सरकार की नीतियों और वादाखिलाफी के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया है। ज्वाइंट पेंशनर फ्रंट हिमाचल प्रदेश ने स्पष्ट किया है कि अगर सरकार ने समय रहते उनकी मांगों पर कार्रवाई नहीं की, तो 14 अक्टूबर को राज्यभर में पेंशनर सड़कों पर उतरकर जोरदार आंदोलन करेंगे।

पेंशनरों का आरोप है कि पिछले कई वर्षों से वे लगातार अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी समस्याओं को नजरअंदाज कर रही है। विशेष रूप से 2016 से लंबित वेतनमान का एरियर, मेडिकल बिलों का भुगतान और महंगाई भत्ते (DA) की अदायगी जैसे मुद्दों पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। पेंशनर नेताओं का कहना है कि सरकार केवल घोषणाएं कर रही है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई राहत नहीं दी जा रही।
ज्वाइंट पेंशनर फ्रंट के अध्यक्ष आत्मा राम शर्मा ने शिमला में आयोजित बैठक के बाद कहा कि पेंशनरों को न केवल समय पर पेंशन नहीं मिल रही है, बल्कि उनके मेडिकल बिलों का भुगतान वर्षों से लंबित है। उन्होंने बताया कि महंगाई भत्ता 16 प्रतिशत देय है, लेकिन सरकार अब तक केवल 3 प्रतिशत की घोषणा तक ही सीमित रही है, वह भी मई 2025 में घोषित होने के बावजूद आज तक लागू नहीं किया गया।

उन्होंने कहा कि सरकार की अनदेखी और टालमटोल की नीति से पेंशनरों का धैर्य अब जवाब दे चुका है। उन्होंने बताया कि कई बार ज्ञापन देने और अनुरोध करने के बावजूद सरकार ने मांगों पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई, जिससे अब पेंशनर खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
उधर, पेंशनरों के एक अन्य संगठन, ज्वाइंट एक्शन कमेटी हिमाचल प्रदेश ने भी इन्हीं मांगों को लेकर 17 अक्टूबर को धरना-प्रदर्शन की चेतावनी दी है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि अब पेंशनरों का आंदोलन दो अलग-अलग मंचों से संचालित होगा, जिससे सरकार पर दबाव और अधिक बढ़ने की संभावना है।

पेंशनरों की मुख्य मांगों में 2016 से लंबित एरियर का भुगतान, मेडिकल बिलों की अदायगी, देरी से मिल रही पेंशन की समस्या और लंबित महंगाई भत्ता शामिल हैं। पेंशनरों का कहना है कि ये मांगे कोई विशेष अनुकंपा नहीं हैं, बल्कि उनका संवैधानिक और वित्तीय अधिकार हैं, जिन्हें सरकार नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती।
सरकार पहले से ही गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रही है। ऐसे में पेंशनरों का यह आंदोलन राज्य की वित्तीय और राजनीतिक स्थिरता के लिए नई चुनौती बन सकता है। अगर समय रहते समाधान नहीं निकाला गया, तो यह मुद्दा आने वाले महीनों में बड़ा जनांदोलन बन सकता है।

हिमाचल प्रदेश के पेंशनरों का यह उग्र होता आंदोलन सरकार के लिए एक चेतावनी है कि वादा करके निभाना और सेवा के बदले सम्मान देना अब केवल चुनावी भाषणों तक सीमित नहीं रह सकता। प्रदेश की आर्थिक चुनौतियों के बीच पेंशनरों की जायज़ मांगों की अनदेखी करना एक सामाजिक और नैतिक विफलता भी है। यदि सरकार ने समय रहते समन्वय और समाधान की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह आंदोलन एक बड़े जनाक्रोश में तब्दील हो सकता है, जिसके दूरगामी राजनीतिक परिणाम भी सामने आ सकते हैं। यह ज़रूरी है कि सरकार पेंशनरों के साथ संवाद स्थापित करे और उनके अधिकारों को प्राथमिकता के आधार पर सुनिश्चित करे।

सरकार और पेंशनरों के बीच संवाद बहाल हो, ताकि बुज़ुर्गों को सड़कों पर उतरने की नौबत न आए। ये वही लोग हैं जिन्होंने जीवन भर प्रदेश की सेवा की है - अब उनकी सेवा का सम्मान लौटाना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है।