हिमाचल प्रदेश में वक्फ बोर्ड के गठन में लंबे समय से हो रही देरी और वक्फ अधिनियम के कथित उल्लंघन को लेकर हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार सहित अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया है। अदालत ने साफ संकेत दिए हैं कि यदि कानून के प्रावधानों की अनदेखी हुई है, तो यह वक्फ संपत्तियों के संरक्षण और प्रशासन के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
शिमला: (HD News); हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश में वक्फ बोर्ड के गठन में देरी और नियमों के उल्लंघन को लेकर राज्य सरकार सहित अन्य को नोटिस जारी किए हैं। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने इस संबंध में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सभी प्रतिवादियों से जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 9 मार्च को निर्धारित की गई है।
हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकार द्वारा वक्फ अधिनियम, 1995 के प्रावधानों की लगातार अनदेखी की जा रही है, जिससे प्रदेश की वक्फ संपत्तियों के रखरखाव, संरक्षण और प्रशासन पर गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है। याचिका के अनुसार, वक्फ बोर्ड के अभाव में न केवल संपत्तियों की निगरानी प्रभावित हो रही है, बल्कि उनकी आय और उपयोग को लेकर भी पारदर्शिता खत्म होती जा रही है।

याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि 14 दिसंबर 2022 को राज्य सरकार ने वक्फ अधिनियम की धारा 99 के तहत वक्फ बोर्ड को भंग कर दिया था। इसके बाद लंबे समय तक बोर्ड का पुनर्गठन नहीं किया गया। आरोप है कि 1 नवंबर 2025 को सरकार ने मुस्लिम समुदाय से केवल एक सदस्य को नामित कर उन्हें अगले आदेश तक अंतरिम अध्यक्ष का कार्यभार सौंप दिया, जो वक्फ अधिनियम की धारा 13 और 14 का सीधा उल्लंघन है। इन धाराओं में वक्फ बोर्ड के उचित गठन और सदस्यों की नियुक्ति की स्पष्ट प्रक्रिया निर्धारित है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि नियमानुसार पूर्ण वक्फ बोर्ड का गठन न होने से वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन लगभग ठप हो गया है। बोर्ड के अभाव में वक्फ की उत्पत्ति, आय, उद्देश्य और लाभार्थियों से संबंधित रिकॉर्ड रखना बेहद कठिन हो गया है, जिससे संपत्तियों के दुरुपयोग का खतरा भी बढ़ गया है।

अधिवक्ता ने यह भी दलील दी कि यह सुनिश्चित करना लगभग असंभव हो गया है कि वक्फ की आय उसी उद्देश्य के लिए खर्च की जा रही है, जिसके लिए उसे स्थापित किया गया था। वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और निगरानी के लिए आवश्यक निर्देश देने वाली कोई वैधानिक संस्था मौजूद नहीं है। केवल एक अंतरिम अध्यक्ष के भरोसे पूरी व्यवस्था चलाना न सिर्फ कानूनी रूप से संदिग्ध है, बल्कि यह वक्फ संपत्तियों के हितों के भी प्रतिकूल है।
हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार से स्पष्ट जवाब दाखिल करने को कहा है। अब सभी की निगाहें 9 मार्च को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जहां इस अहम मामले में आगे की दिशा तय हो सकती है।
