हिमाचल प्रदेश में पंचायती व्यवस्था को नए सिरे से दुरुस्त करने की दिशा में सुक्खू सरकार ने अहम कदम बढ़ाया है। राज्य के तीन जिलों कुल्लू, सोलन और कांगड़ा में पंचायतों के पुनर्गठन की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू कर दी गई है। हालांकि, सरकार की अंतिम अधिसूचना अभी जारी होना शेष है, लेकिन पंचायती राज विभाग ने पहले चरण में प्रस्तावित बदलावों को सार्वजनिक करते हुए आपत्तियां और सुझाव आमंत्रित किए हैं। पढ़ें विस्तार से -
शिमला: (HD News); हिमाचल प्रदेश में सत्ता के विकेंद्रीकरण और ग्रामीण प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करने की दिशा में सुक्खू सरकार ने एक बड़ा दांव खेला है। प्रदेश के तीन प्रमुख जिलों - कुल्लू, सोलन और कांगड़ा - में पंचायतों के पुनर्गठन की सुगबुगाहट अब धरातल पर उतर आई है। पंचायती राज विभाग ने इस बाबत औपचारिक आदेश जारी कर दिए हैं, जिससे स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में कई ग्राम पंचायतों का भूगोल पूरी तरह बदल जाएगा।

प्रशासनिक सुगमता या चुनावी बिसात ?
सरकार का तर्क है कि यह कवायद प्रशासनिक जटिलताओं को खत्म करने, जनसंख्या के संतुलन और विकास योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए की जा रही है। हालांकि, अधिसूचना जारी होने से पहले ही राजनीतिक गलियारों और ग्रामीण क्षेत्रों में इसे लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। विभाग ने स्पष्ट किया है कि यह केवल एक प्रस्तावित ड्राफ्ट है, जिस पर जनता की मुहर लगनी अभी बाकी है।
जिलावार रिपोर्ट: कहाँ, क्या बदलने वाला है?
1. सोलन: सबसे बड़ा 'री-स्ट्रक्चरिंग' हब
पुनर्गठन की सबसे व्यापक मार सोलन जिले पर पड़ती दिख रही है। यहाँ आधा दर्जन से अधिक ग्राम सभाओं में काट-छांट प्रस्तावित है:
नालागढ़: ग्राम सभा 'चमदार' से घाट, दल्छाम्ब, पट्टा और रौडी गांव को बाहर करने की तैयारी।
कुनिहार: धैना और बटेड गांव अब अपनी पुरानी ग्राम सभा का हिस्सा नहीं रहेंगे।
धर्मपुर व सोलन: जाबली से रानी गांव, सुल्तानपुर से घलयाना, बोहली से नेरीकलां और बीशा से बजौर गांव को अलग करने का प्रस्ताव है।

2. कांगड़ा: कई विकास खंडों में भारी फेरबदल
प्रदेश के सबसे बड़े जिले कांगड़ा में भी बदलाव की बयार तेज है:
पालमपुर: चंदपुर लांघा ग्राम सभा से चौरनाली गांव को अपवर्जित (Exclude) किया जाएगा।
सुराणी व घलौर: सिहोरपाई से जज्बार, घलौर से दरोली और बग ग्राम सभा से गहल व जयाडा गांव अलग होंगे।
नगरोटा सूरियां: न्यागल ग्राम सभा से भटोली गांव को बाहर निकालने का ब्लूप्रिंट तैयार है।
3. कुल्लू: निरमंड में हलचल
कुल्लू जिले में फिलहाल सीमित लेकिन रणनीतिक बदलाव प्रस्तावित है। यहाँ विकास खंड निरमंड की कोटी ग्राम सभा से ब्यूणी गांव को अलग करने की प्रक्रिया शुरू की गई है।
7 दिन का 'अल्टीमेटम': जनता के पास है अपनी बात रखने का मौकापंचायती राज विभाग ने इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए लोकतांत्रिक रास्ता अपनाया है। प्रभावित क्षेत्रों के ग्रामीणों और हितधारकों को अपनी आपत्तियां और सुझाव दर्ज कराने के लिए मात्र 7 दिनों का समय दिया गया है। विभाग के सचिव द्वारा जारी आदेशों के अनुसार, इन सुझावों की समीक्षा के बाद ही सरकार अंतिम अधिसूचना (Final Notification) जारी करेगी।
"यह केवल सीमाओं का बदलाव नहीं, बल्कि शासन को जनता के द्वार तक ले जाने की एक प्रक्रिया है। हम चाहते हैं कि हर गांव का अपना प्रशासनिक अस्तित्व व्यावहारिक हो।"

— सूत्र, पंचायती राज विभाग
भविष्य की चुनौतियां
पंचायतों का यह पुनर्गठन जहाँ विकास की नई इबारत लिख सकता है, वहीं सीमा विवाद और स्थानीय राजनीति के चलते असंतोष की चिंगारी भी भड़क सकती है। अब गेंद जनता के पाले में है क्या ग्रामीण इन बदलावों को सहर्ष स्वीकार करेंगे या आपत्तियों का अंबार सरकार की मुश्किल बढ़ाएगा? अगले एक सप्ताह में हिमाचल की ग्रामीण राजनीति की दिशा तय हो जाएगी।
पंचायत पुनर्गठन की यह प्रक्रिया प्रशासनिक दृष्टि से अहम मानी जा रही है, क्योंकि इससे पंचायतों की भौगोलिक और प्रशासनिक संरचना में बदलाव होगा। अब सभी की निगाहें सरकार की अंतिम अधिसूचना और जनता से मिलने वाले सुझावों पर टिकी हैं, जो इस पुनर्गठन की दिशा और दशा तय करेंगे।
