हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में संजौली में एक मस्जिद में हुए अवैध निर्माण को लेकर खूब विवाद हुआ। सड़क से लेकर विधानसभा सदन तथा देश भर में अवैध मस्जिद निर्माण मामला सुर्खियों में रहा। कैबिनेट मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा सत्र के दौरान हुई चर्चा में स्पष्ट तौर पर कहा था कि "शिमला के संजौली इलाके में मस्जिद अवैध रूप से बनी है। इसका मालिकाना हक भी हिमाचल प्रदेश सरकार के पास है। इस जमीन पर कब्जा भी अवैध है। इस मामले को लेकर सड़कों पर जोरदार विरोध प्रदर्शन भी हुए। इसी घटनाक्रम के मध्य मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष मोहम्मद लतीफ एमसी शिमला में एक हलफनामा दायर करते है जिसको देखते हुए एमसी कोर्ट सिर्फ अवैध निर्माण को गिराने के आदेश देता है। इस आदेश के मुताबिक अवैध निर्माण को गिराने का कार्य भी शुरू हो गया है। लेकिन घटिया राजनीति के चलते कुछ शरारती तत्व इस मामले को और उलझाने में लगे है। अब यह अवैध निर्माण मामला जिला अदालत में चलेगा। अब देखना ये है कि अबैध मस्जिद निर्माण ही हटेगा या फिर सारी जमीन ही जिस पर सरकार का मालिकाना हक बताया जा रहा है सरकार के कब्जे में आएगी, पढ़ें विस्तार से..
शिमला: (HD News); शिमला के संजौली में जो 5 मंजिला मस्जिद बनाई गई है वहां पुरानी छोटी मस्जिद की जगह एक अवैध इमारत खड़ी कर दी गई है। आरोप है कि इस मस्जिद को बिना किसी मंजूरी के 5 मंजिल तक बनाया गया है। जमीन पर मस्जिद बनी है उसका मालिकाना हक भी हिमाचल प्रदेश सरकार के पास है। एमसी कोर्ट ने इस अवैध निर्माण को गिराने के आदेश दे दिए थे और अवैध निर्माण तोड़ने का कार्य भी कानूनी दाव पेच के चलते धीमी गति से चला हुआ है। लेकिन अब अवैध ढांचे को गिराने को लेकर नगर निगम आयुक्त कोर्ट के फैसले को हिमाचल प्रदेश मुस्लिम संगठन ने कोर्ट में चुनौती दे दी है। इसको लेकर मुस्लिम संगठन की ओर से कोर्ट में याचिका दायर की गई है। इस मामले पर 6 नवम्बर को सुनवाई की जानी प्रस्तावित है। इस फैसले को मुस्लिम समुदाय ने जिला अदालत में चुनौती दी है।
इसमें फैसले को यह आधार बनाकर चुनौती दी गई है कि मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष के तौर पर मोहम्मद लतीफ ने जो हल्फनामा दायर किया है, वह उसके लिए अधिकृत नहीं हैं, हालांकि इस भवन से और लोगों की भावनाएं भी जुड़ी हुई हैं। इसलिए उनका पक्ष भी इसमें सुना जाना चाहिए।
मुस्लिम पक्ष से जुड़ी तीन वेलफेयर सोसाइटी ने नगर निगम आयुक्त के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी है। सोसाइटी ने जिला अदालत में दायर याचिका में कहा है कि नगर निगम आयुक्त के कोर्ट का फैसला डिफेक्टिड है। उन्होंने यह फैसला संजौली मस्जिद कमेटी के नगर निगम को दिए हलफनामे के आधार पर दिया है। सोसाइटी ने जिला अदालत में दायर याचिका में कहा है कि मस्जिद कमेटी कोई रजिस्टर नहीं है, ऐसे में उनके अध्यक्ष मोहमद लतीफ द्वारा दिया गया हलफनामा गैर कानूनी है।
जिला अदालत में याचिका दायर करने वाली मुस्लिम वेलफेयर सोसाइटी पोंटा साहिब के सदस्य नाजाक्त अली हाशमी ने बताया कि तीन अलग अलग कमेटी व सोसाइटी ने जिला अदालत में नगर निगम आयुक्त के फैसले को चुनौती दी है।
आयुक्त कोर्ट के फैसले को बताया डिफेक्टिड
उन्होंने दावा किया कि जिला अदालत में उनकी याचिका स्वीकार हो गई है और 6 नवंबर को मामला जिला अदालत में लिस्ट हुआ है। हाशमी ने बताया कि उन्होंने जिला अदालत में दायर याचिका में मांग की है कि नगर निगम आयुक्त ने मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष मोहमद लतीफ के हलफनामे के आधार पर अपना फैसला सुनाया है। जो डिफेक्टिड है।
मुस्लिम पक्ष ने दावा किया है कि मस्जिद कमेटी कोई रजिस्टर संस्था नहीं है। ऐसे में उनका हलफनामा गैर कानूनी है। इसलिए मुस्लिम पक्ष ने जिला अदालत में दायर याचिका में अपील की है कि मामले में मुस्लिम समुदाय की भावनाएं जुड़ी हुई है। ऐसे में उनका पक्ष भी सुना जाना चाइए।
उन्होंने बताया कि जिला अदालत में याचिका दायर करने में मुस्लिम वेलफेयर सोसायटी पोंटा साहिब, जामा मस्जिद मैनेजमेंट कमेटी बिलासपुर और अल हुदा एजुकेशनल सोसायटी दीनक मंडी शामिल है। जिन्होंने नगर निगम आयुक्त के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी है।
5 अक्टूबर को आया था नगर निगम आयुक्त कोर्ट का फैसला
बता दें कि हिमाचल प्रदेश के शिमला के संजौली में स्थित मस्जिद निर्माण विवाद मामले में नगर निगम आयुक्त के कोर्ट ने 5 अक्टूबर को मस्जिद कमेटी व वक्फ बोर्ड के नगर निगम आयुक्त को दिए हलफनामे पर फैसला सुनाया। मस्जिद की ऊपरी तीन मंजिल गिराने के आदेश दिए थे। जिसके बाद मस्जिद कमेटी ने विवादित हिस्से को हटाने का कार्य शुरू कर दिया। मस्जिद का एटिक लगभग हटा भी दिया है। लेकिन अब मुस्लिम पक्ष ने मामले को जिला अदालत में चुनौती दी है। जिसके कारण मामले में नया पेंच फंस गया है।
न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जाने को तैयार
संगठन के प्रवक्ता नजाकत अली हाशमी ने मीडिया के माध्यम से कह चुकें है कि आयुक्त कोर्ट का फैसला सही नहीं है। यह फैसला तथ्यों पर नहीं दिया गया है। इस फैसले से मुस्लिम समुदाय के लोगों की आस्था को ठेस पहुंचेगी। इसके खिलाफ मुस्लिम समुदाय कोर्ट जाएगा। उन्होंने कहा कि न्याय के लिए मुस्लिम समुदाय के लोग आखिरी तक सुप्रीम कोर्ट तक जाने को तैयार है।