हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाव की सुगबुगाहट के बीच लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने बड़ा बयान देकर सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। उन्होंने दो टूक कहा कि प्रदेश कांग्रेस को ऐसा अध्यक्ष चाहिए जो सिर्फ नाम का नहीं, बल्कि जमीन से जुड़ा, प्रभावशाली और निर्णायक नेतृत्व देने वाला हो। विक्रमादित्य ने "रबड़ स्टंप" शब्द का इस्तेमाल कर साफ किया कि अब संगठन को मजबूत करने के लिए दिखावटी नहीं, दमदार नेतृत्व की जरूरत है।
शिमला: (HD News); हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चल रही चर्चाओं के बीच लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह का बयान राजनीतिक हलकों में हलचल पैदा कर गया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद किसी "रबड़ स्टंप" को नहीं सौंपा जाना चाहिए, बल्कि यह जिम्मेदारी एक मजबूत और प्रभावशाली नेता को मिलनी चाहिए।
विक्रमादित्य सिंह का यह बयान संगठनात्मक पुनर्गठन की संभावनाओं के बीच आया है। उन्होंने कहा कि अंतिम निर्णय पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व ही लेगा, लेकिन प्रदेश स्तर पर एक प्रभावशाली और जमीनी पकड़ रखने वाले नेता को संगठन की कमान सौंपना समय की मांग है। उनका मानना है कि ऐसा व्यक्ति जो कम से कम 3 से 4 जिलों में व्यक्तिगत प्रभाव रखता हो, वही संगठन को मजबूती प्रदान कर सकता है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कांग्रेस को सत्ता में लाने का श्रेय अकेले किसी एक व्यक्ति को नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं को संयुक्त रूप से जाता है।

यह बयान ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस पार्टी आंतरिक संगठनात्मक बदलाव की ओर बढ़ रही है, और इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि विक्रमादित्य सिंह प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर गंभीरता से अपनी दावेदारी या समर्थन दर्ज करा रहे हैं।
गौरतलब है कि विक्रमादित्य सिंह का यह बयान महज संगठनात्मक बदलाव की मांग भर नहीं, बल्कि कांग्रेस की भावी रणनीति और सियासी दिशा को लेकर एक सशक्त संकेत है। उन्होंने साफ कर दिया है कि अब पार्टी को ऐसे नेतृत्व की दरकार है, जो न केवल जनता के बीच गहरी पकड़ रखता हो, बल्कि संगठन में नई ऊर्जा, स्पष्ट दृष्टि और निर्णायक ताकत भी भर सके। उनका “रबड़ स्टंप” वाला तीखा बयान यह दर्शाता है कि अब समझौतावादी नेतृत्व से काम नहीं चलेगा — कांग्रेस को एक प्रभावी, सशक्त और ज़मीन से जुड़ा चेहरा चाहिए। यह टिप्पणी न केवल आंतरिक लोकतंत्र को जगाने वाली है, बल्कि नेतृत्व चयन प्रक्रिया में गंभीर पुनर्विचार की आवश्यकता की ओर भी संकेत करती है।
