शिमला : (HD News); हिमाचल प्रदेश इस समय लगातार बाढ़ और भूस्खलन (Himachal floods & landslides) की मार झेल रहा है। जगह-जगह सड़कों का टूटना, नदियों का उफान और बादल फटना आम हो गया है। सवाल उठता है क्या इन आपदाओं के पीछे केवल फोरलेन निर्माण जिम्मेदार हैं या फिर इतिहास बताता है कि बिना फोरलेन के भी पहाड़ों ने तबाही झेली है ? 
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1978 का क्लाउडबर्स्ट – बिना फोरलेन भी तबाही का साक्षी
सन 1978 में चंबा जिले के ब्रेही क्षेत्र में भीषण क्लाउडबर्स्ट (Himachal cloudburst) हुआ। भरमौर-चंबा सड़क पूरी तरह गायब हो गई और चंबा-पठानकोट मार्ग बनीखेत तक बंद रहा। चंबा-तीसा और चंबा-साहू सड़कें महीनों तक बाधित रहीं। उस समय न तो फोरलेन थे और न ही भारी मशीनरी, फिर भी आपदा ने पूरे इलाके को तबाह कर दिया। यह स्पष्ट करता है कि हिमाचल की आपदाओं को केवल फोरलेन से जोड़ना अधूरा सच है।

1995 की बारिश – 16 दिन तक कटऑफ रहा चंबा
सन 1995 में भारी बारिश और भूस्खलन ने चंबा जिले को बाहरी दुनिया से पूरी तरह काट दिया। भरमौर-चंबा (64 किमी) सड़क टूट गई और जिला 16 दिन तक कटऑफ रहा। न बिजली, न संचार और न ही परिवहन—पूरा जिला एक तरह से अलग-थलग हो गया। यह वह दौर था जब हिमाचल में कहीं भी फोरलेन सड़कें नहीं थीं।
किन्नौर और लाहौल-स्पीति – बिना फोरलेन भी हर साल खतरे में
आज भी किन्नौर और लाहौल-स्पीति जैसे दुर्गम इलाकों में फोरलेन सड़कें नहीं बनीं, लेकिन वहां हर साल भूस्खलन और बाढ़ गांवों को तबाह करते हैं। किन्नौर में नदियों के किनारे घर बह जाते हैं, जबकि लाहौल-स्पीति में पुल और सड़कें टूटना आम है। इससे साफ होता है कि प्राकृतिक आपदाएं सिर्फ फोरलेन का नतीजा नहीं हैं।
क्यों बढ़ रही हैं हिमाचल की आपदाएं?
1. भौगोलिक संरचना – हिमाचल का 90% हिस्सा landslide-prone zone में आता है। ढलानदार पहाड़ हल्की बारिश से भी खिसक जाते हैं।
2. जलवायु परिवर्तन – Climate change के कारण मानसून का पैटर्न बदला है। अचानक भारी बारिश और cloudburst की घटनाएं बढ़ गई हैं।
3. अवैज्ञानिक निर्माण – चाहे ग्रामीण सड़कें हों या फोरलेन, इंजीनियरिंग मानकों की अनदेखी पहाड़ों को कमजोर बनाती है।
4. जंगलों का कटान और शहरीकरण – Deforestation और नदियों के किनारे अनियोजित निर्माण आपदाओं को और खतरनाक बना रहे हैं।
क्या फोरलेन ही जिम्मेदार हैं?
सच यह है कि फोरलेन परियोजनाओं ने पहाड़ों पर दबाव बढ़ाया है, लेकिन 1978 और 1995 जैसी आपदाएं तब भी आई थीं जब सड़कें मात्र सिंगल लेन थीं। यानी असली कारण प्राकृतिक परिस्थितियां, जलवायु परिवर्तन और अवैज्ञानिक विकास मॉडल हैं।
समाधान – कैसे रोकें हिमाचल की आपदाएं?
सस्टेनेबल डेवलपमेंट: हर निर्माण कार्य पर्यावरणीय नियमों के अनुसार हो।
जियोलॉजिकल सर्वे: प्रत्येक प्रोजेक्ट से पहले भूगर्भीय अध्ययन अनिवार्य किया जाए।
वन संरक्षण: जंगलों की कटाई रोकी जाए और बड़े स्तर पर वृक्षारोपण हो।
आपदा प्रबंधन: स्थानीय स्तर पर मजबूत Disaster Management सिस्टम तैयार किया जाए।
हिमाचल की आपदाओं का इतिहास साफ कहता है कि तबाही केवल फोरलेन की देन नहीं है। 1978 और 1995 में भी बिना फोरलेन के पहाड़ों ने भयावह तबाही झेली थी। फर्क बस इतना है कि अब जनसंख्या, निर्माण और दबाव बढ़ चुका है। असली सवाल यह है कि क्या हम विकास को प्रकृति के साथ संतुलित कर पा रहे हैं? यदि नीति-निर्माता और समाज इस दिशा में गंभीर नहीं हुए, तो आने वाली पीढ़ियां भी यही पूछेंगी—“तबाही क्यों हुई?”