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धार्मिक स्थान

अनेक रहस्यों से भरा है हुआ है माता शिकारी देवी का मंदिर, जानिए माँ शिकारी देवी से जुड़ी रोचक कहानी

March 12, 2020 06:46 AM

शिकारी देवी मंदिर जंजैहली से लगभग 18 किलोमीटर दूर है और वन का क्षेत्र सड़क से जुड़ा हुआ है। यह 3359 एमआरटी की ऊंचाई पर स्थित है। शिकारी शिखर के रास्ते पर घने जंगलों अद्भुत हैं। मंडी जिले का सर्वोच्च शिखर होने के नाते इसे मंडी का क्राउन भी कहा जाता है। विशाल हरे चरागाह, मनोरंजक सूर्योदय और सूर्यास्त, बर्फ सीमाओं के मनोरम दृश्य इस जगह को प्रकृति प्रेमियों के लिए पसंदीदा बनाते हैं।

सर्दियों के दौरान इस जगह बहुत बर्फ होती है। पैदल पथ से करसोग से संपर्क किया जा सकता है जो शिकारी देवी से सिर्फ 21 किमी दूर है। शिकारी शिखर पर, शिकारियों की देवी शिकारी देवी का एक छत रहित मंदिर है और यह मंदिर पांडवों द्वारा स्थापित किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि ऋषि मार्कंडे ने भी इस जगह पर कई सालों तक ध्यान किया। यह देखा गया है कि इस तथ्य के बावजूद कि मंदिर की कोई छत नहीं है, मंदिर परिसर में सर्दियों के दौरान कोई बर्फ नहीं देखा जाता है जब इस मंदिर के आसपास का पूरा क्षेत्र बर्फ से कई फीट तक ढंका होता है। आगंतुक शिकरी से विभिन्न ट्रेक मार्गों के माध्यम से चिंडी, करसोग, जंजैहली यात्रा कर सकते हैं।

मंडी: हिमाचल प्रदेश का प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर धार्मिक स्थल शिकारी देवी मंदिर करसोग जंजैहली घाटी में 11, 000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। सर्दियों में यहां बर्फ गिरती है लेकिन गर्मियों में काफी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक दर्शनों लिए यहां पहुंचते हैं। इस मंदिर का इतिहास बहुत ही अद्भुत और रमणीक है। देवदार के ऊंचे-ऊंचे वृक्षों के बीच में बसा यह धार्मिक स्थल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। इसका प्राकृतिक सौंदर्य श्रद्धालुओं का मन मोह लेता है। यह मंदिर गर्मियों के दिनों में दर्शनों के लिए खुला रहता है हालांकि सर्दी के दिनों में बर्फ पडऩे के कारण श्रद्धालु कम संख्या में यहां पहुंच पाते हैं।

मंदिर के ऊपर छत का न होना रहस्यमयी -

यह प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर कई अद्भुत रहस्यों से भरा है। इस मंदिर के ऊपर छत का निर्माण न होना भी अपने आप में एक रहस्य ही बना हुआ है। कहा जाता है कि कई बार मंदिर की छत बनाने का काम शुरू किया गया लेकिन हर बार कोशिश नाकाम रही। मंदिर के ऊपर छत नहीं ठहर पाई। यह माता का ही चमत्कार है कि आज तक की गई सारी कोशिशें भी शिकारी माता को छत प्रदान न कर सकीं और आज भी ये मंदिर छत के बिना ही है।

जिस जगह पर यह मंदिर स्थापित है, वह बहुत घने जंगल के मध्य में स्थित है। अत्यधिक जंगल होने के कारण यहां जंगली जीव-जन्तु भी बहुतयात में हैं। जब पांडव अज्ञातवास के दौरान शिकार खेलने के लिए यहां पहुंचे तो माता शिकारी देवी ने उन्हें दर्शन दिए। इसके बाद पांडवों ने माता का मंदिर बनाया और इस मंदिर का नाम शिकारी देवी पड़ा। पांडवों ने शक्ति रूप में विध्यमान माता की तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर माता ने उन्हें महाभारत के युद्ध में कौरवों से विजयी प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया। पांडवों यहां से जाते वक्त मां के मंदिर का निर्माण किया परन्तु यह कोई भी जानता कि आखिर इस मंदिर की छत का निर्माण पांडवों द्वारा क्यों नहीं किया गया।

माँ की मूर्तियों पर नही टिकती बर्फ-

दूसरा चमत्कार यह है कि जब सर्दियों में बर्फ गिरती है तो मंदिर के आसपास ही गिरती है लेकिन मां की मूर्ति के ऊपर बर्फ टिक नहीं पाती और पिघल जाती है और मां की मूर्ति के आसपास बर्फ का ढेर लग जाता है। प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक जो भी श्रद्धालु मां के दरबार में आकर मन्नत मांगता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। बता दें कि निचले क्षेत्रों में इस समय भीषण गर्मी पड़ रही है, वहीं इस मंदिर का तापमान हमेशा 10 डिग्री सैल्सियस के आसपास ही रहता है और यहां आकर श्रद्धालु अपने आप को गौरवशाली महसूस करते हैं।

यहां आकर श्रद्धालु अपने आप को महसूस करते हैं गौरवशाली

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