शिमला, 6 सितम्बर 2025 (HD News): हिमाचल प्रदेश सरकार ने पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया है। पंचायती राज विभाग की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, अब पंचायतों में सदस्यों और सभापतियों के पदों का आरक्षण नए सिरे से तय किया जाएगा। यह प्रक्रिया हिमाचल प्रदेश पंचायती राज (निर्वाचन) द्वितीय संशोधन नियम, 2025 के प्रावधानों के तहत लागू होगी।
नया रोस्टर लागू
निर्वाचन नियमों में संशोधन के बाद यह प्रावधान किया गया है कि पंचायत चुनावों में स्थानों का आरक्षण अब ऐसे किया जाएगा मानो यह प्रक्रिया पहली बार शुरू हो रही हो। यानी, आगामी पंचायत चुनावों में आरक्षित स्थानों और पदों की गणना शुरुआत से की जाएगी और उसके बाद यह आरक्षण चक्रानुक्रम (Rotation) के आधार पर लागू होगा।
ग्राम पंचायतों में आरक्षण
ग्राम पंचायत स्तर पर सबसे पहले अनुसूचित जाति (SC) के लिए स्थान आरक्षित किए जाएंगे। आरक्षण की पहचान पंचायत क्षेत्र में SC जनसंख्या के प्रतिशत के आधार पर होगी। जिस वार्ड में SC आबादी का प्रतिशत सबसे अधिक होगा, वही पहले आरक्षित होगा। यदि किसी पंचायत क्षेत्र में SC जनसंख्या 5% से कम है तो वहां कोई आरक्षण लागू नहीं होगा। आरक्षित वार्डों में से 50 प्रतिशत सीटें SC महिलाओं के लिए निर्धारित की जाएंगी।

इसी प्रक्रिया को अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए भी अपनाया जाएगा। ST को उनके जनसंख्या अनुपात में सीटें मिलेंगी और इनमें से 50 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित होंगी।
इसके बाद सामान्य महिलाओं के लिए आरक्षण तय होगा। पंचायतों में कुल सीटों का 50 प्रतिशत महिलाओं (SC, ST और सामान्य) के लिए आरक्षित रहेगा। उदाहरण के लिए, यदि किसी पंचायत में कुल 9 वार्ड हैं और उनमें से 3 वार्ड पहले ही SC/ST महिलाओं के लिए आरक्षित हो चुके हैं, तो शेष वार्डों में से 2 वार्ड सामान्य महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाएंगे।
पंचायत समिति और जिला परिषद का आरक्षण
ग्राम पंचायतों के बाद पंचायत समिति और जिला परिषद स्तर पर भी आरक्षण की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। यहां अनुसूचित जाति और जनजाति के साथ-साथ पिछड़ा वर्ग (OBC) को भी आरक्षण दिया जाएगा। पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण उनकी जनसंख्या के अनुपात में होगा, लेकिन यह 15% से अधिक नहीं होगा।
यदि किसी पंचायत समिति या जिला परिषद क्षेत्र में OBC की जनसंख्या 5% से कम है तो वहां आरक्षण लागू नहीं होगा। OBC वर्ग को जो भी सीटें मिलेंगी, उनमें से 50% सीटें OBC महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। साथ ही, पंचायत समिति और जिला परिषद में भी कुल सीटों का 50% महिलाओं के लिए सुनिश्चित किया गया है।
प्रधान और अध्यक्ष पदों का आरक्षण
ग्राम पंचायत प्रधानों के पदों का आरक्षण विकासखंड स्तर पर किया जाएगा। प्रत्येक विकासखंड में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण मिलेगा। यहां भी वही नियम लागू होंगे – यानी 5% से कम जनसंख्या होने पर आरक्षण नहीं होगा और कुल आरक्षित पदों में से 50% पद महिलाओं को दिए जाएंगे।
इसी प्रकार पंचायत समिति अध्यक्षों के पदों का आरक्षण जिला स्तर पर तय किया जाएगा। अध्यक्ष पदों पर भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग को आरक्षण मिलेगा और हर श्रेणी में महिलाओं की 50% हिस्सेदारी सुनिश्चित होगी।
आधार वर्ष और विवादित आंकड़े
पंचायती राज विभाग ने स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं के आरक्षण के लिए जनगणना 2011 के आंकड़े आधार होंगे, जबकि पिछड़ा वर्ग का आरक्षण वर्ष 1993-94 में हिमाचल प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा किए गए सर्वेक्षण के आंकड़ों पर आधारित रहेगा। पिछली बार कुछ पंचायतों में OBC आरक्षण को लेकर विवाद हुआ था क्योंकि वहां इस वर्ग का कोई प्रत्याशी ही नहीं मिला। इस बार ऐसे वार्डों और पंचायतों को आरक्षण सूची से बाहर रखा जाएगा।
विशेष प्रावधान
अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में सभापतियों के पदों का आरक्षण PESA अधिनियम के तहत किया जाएगा। यानी इन क्षेत्रों के सभी पद अनुसूचित जनजाति के लिए ही आरक्षित रहेंगे।
विभाग का सख्त निर्देश
सरकार ने यह भी साफ किया है कि आरक्षण प्रक्रिया के दौरान हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम, 1994 और इसके अंतर्गत अधिसूचित नियमों का पालन कड़ाई से होना चाहिए। यदि किसी स्तर पर त्रुटि होती है तो उसकी जिम्मेदारी संबंधित अधिकारी की होगी। इस संशोधन से पंचायत चुनावों में महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को अधिक अवसर मिलेंगे।
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा पंचायत चुनावों में आरक्षण से जुड़े नियमों में किया गया यह संशोधन स्थानीय लोकतंत्र को और अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। नए रोस्टर और 50% महिला आरक्षण से ग्रामीण क्षेत्रों में राजनीतिक भागीदारी बढ़ेगी और समाज के सभी वर्गों को अवसर मिलेंगे। हालांकि, यह भी उतना ही ज़रूरी होगा कि आरक्षण प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से लागू की जाए, ताकि किसी वर्ग या पंचायत के साथ भेदभाव न हो और लोकतंत्र की जड़ें और अधिक मजबूत हों।
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