पितृपक्ष 2025 का शुभ आरंभ 8 सितंबर से होने जा रहा है और यह 21 सितंबर तक चलेगा। हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दौरान पितरों के तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करने से पूर्वज संतुष्ट होते हैं और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। यह 16 दिन का धार्मिक पर्व आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर अमावस्या तक चलता है। इस दौरान हर तिथि का अपना विशेष महत्व होता है और उसी के अनुसार श्राद्ध किए जाते हैं। प्रतिपदा से लेकर सर्वपितृ अमावस्या तक, हर दिन की पूजा और दान से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। आइए, जानें पितृपक्ष 2025 का पूरा कैलेंडर और हर तिथि पर कौन सा श्राद्ध करना शुभ रहेगा।
सनातन परंपरा में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। यह वह कालखंड है जब दिवंगत आत्माओं की शांति और मोक्ष के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किए जाते हैं। मान्यता है कि इस अवधि में की गई पूजा, दान और पितरों का स्मरण परिवार को सुख, समृद्धि और उन्नति प्रदान करता है।

पंचांग के अनुसार, इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत 08 सितंबर 2025 (सोमवार) से हो रही है और इसका समापन 21 सितंबर 2025 (रविवार) को सर्वपितृ अमावस्या के साथ होगा। कुल 16 दिनों तक चलने वाले इस पावन काल में प्रतिदिन अलग-अलग तिथि के अनुसार श्राद्ध किए जाएंगे।
पितृपक्ष 2025 का श्राद्ध कैलेंडर
प्रतिपदा श्राद्ध – 08 सितंबर 2025
द्वितीया श्राद्ध – 09 सितंबर 2025
तृतीया श्राद्ध – 10 सितंबर 2025
चतुर्थी श्राद्ध – 10 सितंबर 2025
पंचमी श्राद्ध – 12 सितंबर 2025
षष्ठी श्राद्ध – 12 सितंबर 2025
सप्तमी श्राद्ध – 13 सितंबर 2025
अष्टमी श्राद्ध – 14 सितंबर 2025
नवमी श्राद्ध – 15 सितंबर 2025
दशमी श्राद्ध – 16 सितंबर 2025
एकादशी श्राद्ध – 17 सितंबर 2025
द्वादशी श्राद्ध – 18 सितंबर 2025
त्रयोदशी श्राद्ध – 19 सितंबर 2025
चतुर्दशी श्राद्ध – 20 सितंबर 2025
सर्वपितृ अमावस्या – 21 सितंबर 2025
पितृपक्ष का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष में पितरों के लिए किए गए श्राद्ध और दान-पुण्य से वे संतुष्ट होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। जिन लोगों को अपने पूर्वजों की तिथि ज्ञात नहीं होती, वे सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कर सकते हैं।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और पंचांग गणनाओं पर आधारित है। इसे केवल सामान्य जानकारी के रूप में प्रकाशित किया गया है। किसी भी विधि-विधान से पूर्व योग्य पंडित या आचार्य से परामर्श अवश्य करें।